Ground Report: ‘कोइरीपुर’ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के मरीज निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर

Crumbling Ceilings, Broken Windows, Lack Of Drinking Water, Dysfunctional Toilets And Missing Medical Equipment Are Some Of The Issues Plaguing Koiripur Phc

”यहां की छत किसी भी समय गिर सकती है. यहां मरीजों को भर्ती करना सख्त वर्जित है. देखभाल तो दूर यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में मुफ्त दी जाने वाली दवा भी प्राइवेट फार्मेसियों से खरीदनी पड़ती हैं. वह चुनाव जीत गए, और गायब हो गए. हमने उन्हें अपने गांव में कभी नहीं देखा, हमारी बेहतरी के लिए कुछ करना तो दूर की बात है”.

यूपी के सुल्तानपुर के कोइरीपुर नगर पंचायत की निवासी रौची देवी (42) स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) की बदहाली के बारे में बात करते हुए गुस्सा हो जा जाती हैं. उनका गुस्सा पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष सुधीर साहू पर फूटा, जिनका कार्यकाल हाल ही में खत्म हुआ है

कोइरीपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की जमीनी हक़ीकत

Dr Sunil Kumar, The Medical Officer At The Koiripur Phc, Hands Over Medicines To A PatientBilal Khan|101Reporters

राउची की बहू ज़रिया देवी (19) को हाल ही में गर्भावस्था से संबंधित जटिलता का सामना करना पड़ा, और पीएचसी में सुविधाओं की कमी ने समस्या को और बढ़ा दिया. उसे आठ किमी दूर स्थित चंदा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) ले जाना पड़ा. हालांकि ज़रिया ने वहां एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन आगे की समस्याओं के कारण उन्हें एक निजी अस्पताल में जाना पड़ा. राउची जिनके पति और बेटे मजदूरी करते हैं.

वो बताती हैं, ”प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में डॉक्टरों ने कहा कि नवजात के पेट में पानी था. सीएचसी इस स्थिति का इलाज करने के लिए सुसज्जित नहीं था, इसलिए हमारे पास चंदा के एक निजी अस्पताल पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था”. 2011 की जनगणना के अनुसार, कोइरीपुर नगर पंचायत की जनसंख्या 8,927 है.

साहू जो 10-11 मई को हुए चुनाव में एक बार फिर अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए थे. उनके मुताबिक इस बार मतदाता सूची में 7,800 मतदाता थे. जबकि इलाके के नवनिर्वाचित चेयरमैन कासिम राईन ने 101 रिपोर्टर्स को बताया कि कोइरीपुर शहर की अधिकांश आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है. उन्होंने कहा, “वे वही लोग हैं जो एक दशक से अधिक समय से पीएचसी की खराब स्थिति के कारण बुरी तरह पीड़ित हैं”.

राउची गुस्सा जाहिर करते हुए कहती हैं, ”ऐसे व्यक्ति को वोट देने का क्या मतलब है, जिसे लोगों की परवाह नहीं है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस बार नगर पंचायत चुनाव के दौरान यह मुद्दा क्यों उछला. हम सभी पीएचसी मुद्दे से तंग आ चुके थे. चूंकि हमें एहसास हुआ कि साहू कुछ नहीं करेगा. यही कारण रहा कि हमने किनारा कर लिया.”.

स्थानीय मरीज निजी अस्पतालों में जाने को मज़बूर हैं

Mithailal Resorted To Medicines Given To Him By A Local Quack After Finding That He CouldnBilal Khan|101Reporters

आदर्श रूप से, एक पीएचसी में महिलाओं, विशेषकर गर्भवती महिलाओं के इलाज के लिए एक एमबीबीएस डॉक्टर, दो से तीन महिला कर्मचारी, अस्पताल के बिस्तर, बुनियादी जांच की सुविधाएं, और एक OPD होना चाहिए. भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक पीएचसी पहाड़ी, आदिवासी, या कठिन क्षेत्रों में 20,000 और मैदानी क्षेत्रों में 30,000 की आबादी को सेवा प्रदान करता है.

यहां एक MBBS चिकित्सा अधिकारी, और छह इनडोर/ऑब्जर्वेशन बेड की आवश्यकता होती है. यह छह उप-केंद्रों के लिए सीएचसी की रेफरल इकाई के रूप में भी कार्य करता है.

वहीं, कोइरीपुर में पीएचसी का भवन इतना जर्जर है कि डॉक्टर वहां काम करने से डरते हैं. छत के हिस्से कभी भी गिर सकते हैं. चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुनील कुमार ने 101 रिपोर्टर्स से कहा- ”हमारे पास बुनियादी समस्याओं, जैसे सर्दी, खांसी, और घाव के लिए दवाएं हैं. चिकित्सा जांच के लिए उपकरण उपलब्ध नहीं हैं,”

बहराइच के मूल निवासी डॉ. कुमार ने बताया, ”पीएचसी में मरीजों को भर्ती करने के लिए कुछ बिस्तरों वाला एक बड़ा कमरा है, लेकिन इलाज की कोई सुविधा नहीं है. अगर सब कुछ सही होता तो भी जर्जर इमारत के कारण किसी भी मरीज को यहां भर्ती नहीं किया जाता. छत के हिस्से अक्सर गिर जाते हैं,”

डॉ. कुमार ने दावा किया कि सुविधाओं की कमी से डॉक्टर भी समान रूप से प्रभावित हो रहे हैं, और उन्होंने मुद्दों के बारे में सक्षम अधिकारियों को लिखा है. पीने के पानी की तक की कोई सुविधा नहीं है. हम इसे स्वयं खरीदते हैं. शौचालय इतनी ख़राब स्थिति में है कि हम इसका उपयोग नहीं कर सकते.

इस मामले पर जब साहू से पूछा गया कि क्या वह पीएचसी की खराब स्थिति के कारण चुनाव हारे हैं, तो उन्होंने कहा- ”स्वास्थ्य सेवा यहां एक बड़ा मुद्दा है, और लोग मांग कर रहे हैं कि पीएचसी को सुसज्जित किया जाए. लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह मेरी हार का कारण था”.

आगे विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि पीएचसी भवन एक निजी संपत्ति थी जिसका मासिक किराया 1 रुपये था. नतीजतन, सरकार भी इसकी स्थिति में सुधार के लिए कुछ नहीं कर सकी. इसे गैर-किराये की संपत्ति बनाने और सरकार को सौंपने में मुझे लगभग एक साल लग गया.

साहू ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग मरम्मत कार्य शुरू करने की प्रक्रिया में है. उन्होंने बताया- ”मैं पहले से ही संबंधित अधिकारियों के संपर्क में रहा हूं. मैं अब चेयरमैन नहीं हूं, लेकिन प्रयासरत्न हूं. क्योंकि मैं भारतीय जनता पार्टी से हूं, जो राज्य में सत्ता में है. मैं पीएचसी सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना जारी रखूंगा.”

पीएचसी सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए क्या?

Crumbling Ceilings, Broken Windows, Lack Of Drinking Water, Dysfunctional Toilets And Missing Medical Equipment Are Some Of The Issues Plaguing Koiripur Phc Bilal Khan|101Reporters

जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. डीके त्रिपाठी कोइरीपुर पीएचसी की स्थिति से अवगत थे, लेकिन उन्होंने मरम्मत की समय सीमा, या इसमें आने वाले खर्च पर कोई टिप्पणी नहीं की. त्रिपाठी बताते हैं- ”इमारत को पुनर्निर्माण की आवश्यकता है. हमने संबंधित जूनियर इंजीनियर से एस्टीमेट बनाने को कहा है. मैं यह नहीं कह सकता कि इस मुद्दे को सुलझाने में कितना समय लगेगा.”

इस बीच, साहू ने अनुमान लगाया कि पीएचसी की मरम्मत और आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं से लैस करने के लिए लगभग 1 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी.

फिलहाल कोइरीपुर के लोगों के पास इलाज के लिए चांदा सीएचसी जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. कई लोग इलाज से बचने की कोशिश करते हैं, क्योंकि खर्च अधिक होता है. मिठाईलाल पिछले तीन वर्षों से सांस संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, लेकिन केवल दो बार ही सीएचसी गए हैं. उन्होंने कहीं, और बेहतर इलाज कराने के बारे में नहीं सोचा, क्योंकि वह इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकते थे.

मिठाईलाल ने कहा- ”सीएचसी के डॉक्टर ने 10 दिनों के लिए दवाओं का सुझाव दिया. इसे मरीजों को मुफ्त दिया जाना चाहिए, लेकिन स्टॉक ही नहीं था. जब मैं एक निजी फार्मेसी में गया, तो मुझे पता चला कि दवा की कीमत 10 दिनों के लिए 3,000 रुपये होगी. यह बिल्कुल भी किफायती नहीं था. इसलिए, मैंने एक ‘हकीम’ से परामर्श किया, जिसने 500 से 700 रुपये प्रति माह की लागत वाली एक दवा का सुझाव दिया’

मिठाईलाल सामान्य रूप से सांस नहीं ले पाते हैं, और पैर कांपने के कारण 10 से 15 मिनट तक खड़ा नहीं रह पाते हैं. वो अफसोस जताते हुए कहते हैं- ”मैं पिछले तीन वर्षों से काम नहीं कर रहा हूं. मेरे बेटे बीस साल के हैं और मेहनत-मजदूरी कर कुछ कमाते हैं. दोनों केवल आठवीं कक्षा तक ही पढ़ सके. जैसे-तैसे मेरा घर चलता है”.

मिठाईलाल की तरह सरोज कुमारी को भी जब पता चला कि दवा की कीमत प्रति सप्ताह 700 रुपये होगी तो उन्होंने सीएचसी में डॉक्टर द्वारा सुझाए गए उपचार का पालन नहीं किया. वो कहती हैं- ”मेरे बेटे के गले में बलगम जमा हो गया था. पीएचसी डॉक्टर ने हमें सीएचसी रेफर कर दिया, जहां फार्मेसी में दवाएं उपलब्ध नहीं थीं. चूंकि मेरे पास बाहर से दवा खरीदने के लिए 700 रुपये नहीं थे, इसलिए इलाज से परहेज किया”

सरोज ने कहा, “हम परिवार में सात सदस्य हैं, और कमाने वाला केवल एक ही है. मेरा बेटा तिरबहावन कुमार (21) अब कमजोर और कुपोषित लगने लगा है”.

राउची ने दावा किया कि उनका पोता तीन दिनों के लिए चंदा के निजी अस्पताल में भर्ती था, और बिल 16,000 रुपये आया. उन्होंने बताया- ”हमारे लिए एक साथ इतना पैसा रखना दूर की कौड़ी है. मेरे पति और बेटा जो कमाते हैं. उससे बमुश्किल से हमारे परिवार के सात लोगों के लिए खाना का इंतजाम होता है. हमारे पास पैसे उधार लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. हमें नहीं पता कि हम इसे कब चुकाएंगे.”

यह पूछे जाने पर कि वे सुल्तानपुर के जिला अस्पताल क्यों नहीं गए, उन्होंने कहा कि यह 40 किमी दूर था, और इसमें खर्च करने के लिए उनके पास पैसा नहीं था. वो कहती हैं- ”बच्चे को जिला अस्पताल में भर्ती करने का मतलब है कि हमें तीन से चार दिनों के लिए आवास की व्यवस्था करनी होगी. हमें दिन में तीन बार खाना भी खरीदना पड़ता है. हमारे पास इतना पैसा नहीं है. घर पर दूसरे बच्चों का भी पेट पालना है”

नए चेयरमैन राईन पर उम्मीदें जताते हुए राउची ने कहा, ”हमें उनसे काफी उम्मीदें हैं. वह एक समय उस पद पर थे, और उन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया. इस बीच, राईन ने कहा कि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान पीएचसी का मुद्दा उठाया था. अब जब लोगों ने उन्हें चुना है तो उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता पीएचसी को पूरी तरह कार्यात्मक बनाना होगा. वो इसके लिए संबंधित अधिकारियों से बात करने की बात कहते हैं.  उनका दावा है कि वो अधिकारियों से उनकी प्रक्रिया में तेजी लाने का अनुरोध करेंगे. उम्मीद है ‘कोइरीपुर’ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की सूरत आने वाले दिनों में बदलेगी.