भारतीय बिजनेस टाइकून रतन टाटा निस्संदेह हमारे देश के सबसे पसंदीदा और सम्मानित व्यक्तित्वों में से एक है. वह बिजनेस विजन रखने के अलावा उदार परोपकारी भी हैं जो प्रसिद्धि या सफलता से कभी भ्रमित नहीं हुए. 82 वर्षीय बिजनेसमैन ने निश्चित रूप से हमें लाइफ के इम्पोर्टेंट लेसन सिखाए हैं जो हमें बेहतर इंसान बनने में मदद कर सकते हैं और इसीलिए भारत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने उनका नाम नहीं सुना है या उनसे प्रेरित नहीं हुआ.
रतन टाटा (Ratan Tata) ही नहीं टाटा समूह (Tata Group) की हर पीढ़ी ने भारत को सुंदर बनाने में तन और मन समर्पित किया और देश के विकास में अहम भूमिका निभाई. जरूरतमंद छात्रों को उनकी उच्च शिक्षा (Higher education) के लिए मदद करने से लेकर भारत की पहली ओलंपिक भागीदारी तक, राष्ट्र निर्माण में रतन टाटा के परिवार के सदस्यों के अविश्वसनीय योगदान पर एक नज़र डालते हैं.
1. जमशेदजी टाटा – भारतीय उद्योग के जनक
जमशेदजी टाटा, जिन्हें अक्सर इंडियन इंडस्ट्री के पिता के रूप में जाना जाता है, ने 1870 के दशक में एक कपड़ा मिल के साथ अपनी उद्यमशीलता (Entrepreneurial) की यात्रा शुरू की. उनके विजन ने भारत में स्टील और पावर इंडस्ट्रीज़ को मोटिवेट किया, तकनीकी शिक्षा (Technical education) की नींव रखी और देश को औद्योगिक राष्ट्रों (Industrialised nations) की श्रेणी में शामिल करने अपना योगदान दिया
जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata), टाटा समूह के संस्थापक थे, जो वर्तमान में विश्व स्तर पर दस इंडस्ट्रीज़ में कुल 31 कंपनियां चला रहा है. भारत के पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें उद्योग जगत में ‘वन-मैन प्लानिंग कमीशन’ कहा था. जमशेदजी टाटा सिर्फ एक उद्यमी नहीं थे, जिन्होंने भारत को औद्योगिक देशों की लीग में अपनी जगह बनाने में मदद की. वह एक देशभक्त और मानवतावादी थे, जिनके आदर्शों और विजन ने एक असाधारण व्यापारिक समूह को आकार दिया.
2. जमशेदजी टाटा – भारत के प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों में से एक
जमशेदजी के परोपकारी सिद्धांत(philanthropic principles) इस विश्वास में निहित थे कि भारत को गरीबी से बाहर निकलने के लिए अपने बेहतरीन दिमाग का इस्तेमाल करना होगा.
चैरिटी और हैंडआउट्स उनका तरीका नहीं था, इसलिए उन्होंने 1892 में जेएन टाटा एंडोमेंट की स्थापना की, जो शिक्षा के क्षेत्र में टाटा का पहला कदम था. टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा ने भारत के युवाओं में इन्वेस्ट किया. टाटा परिवार की इस पहल ने भारतीय छात्रों को जाति या पंथ की परवाह किए बिना, देश के बाहर हायर स्टडीज़ करने में सक्षम बनाया.
3. सर दोराबजी टाटा – भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना
सर दोराबजी टाटा(Sir Dorabji Tata) टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के बेटे थे. सर दोराबजी टाटा को न केवल अपने पिता से बिजनेसमैन स्किल विरासत में मिली, बल्कि उनकी निस्वार्थभावना और समाज का कल्याण करने की भावना विरासत में मिली.
27 मई, 1909 को, सर दोराबजी टाटा ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर की स्थापना की, और 1912 में इंस्टीट्यूट को डोनेशन दिया. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय को डोनेशन और भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च में संस्कृत की पढ़ाई के लिए एक सीमित का गठन किया.
4. सर दोराबजी टाटा: भारत के ओलंपिक सपने को साकार किया
सर दोराबजी टाटा का खेलों के प्रति प्रेम उनकी परोपकारी गतिविधियों से झलकता है. उन्होंने 100 साल पहले भारतीय ओलंपिक आंदोलन (Indian Olympic movement) की शुरुआत की थी. 1919 में, उन्होंने चार एथलीटों और दो पहलवानों को Antwerp Games में भाग लेने के लिए फैसिलिटी दीं. भारतीय ओलंपिक परिषद के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने 1924 के पेरिस ओलंपियाड (Paris Olympiad) में भारतीय दल को फाइनेंश्ड किया.
जैसा कि हम 23 जून को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाते हैं, हम भारतीय ओलंपिक संघ के संस्थापक अध्यक्ष सर दोराबजी टाटा को याद करते हैं, जिनके अथक प्रयासों ने भारतीय दल के लिए अपने पहले ओलंपिक में भाग लेना संभव बना दिया. भारत ने 1920 में सर दोराबजी टाटा के तहत भारतीय एथलीटों ने एंटवर्प (Antwerp) में अपने पहले ओलंपिक खेलों में भाग लिया. उन्होंने 1920 में पेरिस गए भारतीय दल को फाइनेंश्ड किया. सर दोराब टाटा आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका में थे और 1927 में पहले भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने.
5. देश की जनता के लिए 1932 में सर दोराबजी ने टाटा ट्रस्ट की स्थापना की
जमशेदजी टाटा के इस बड़े बेटे ने टाटा स्टील और टाटा पावर की स्थापना कर अपने पिता के विजन को हकीकत में बदलने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट भी बनाया, जो टाटा के परोपरकार की परंपरा को सतत बनाए रखे है.
सर दोराब ने अपनी सारी संपत्ति एक ट्रस्ट को डोनेट कर दी थी, जिसका उपयोग – “स्थान, राष्ट्रीयता या पंथ के किसी भी भेद के बिना” – लर्निंग और रिसर्च की प्रगति, संकट के समय राहत और अन्य धर्मार्थ कार्यों के लिए किया जाना था. इसी विजन से सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट का जन्म हुआ.
6. जेआरडी टाटा – टाटा एयरलाइंस के संस्थापक
जेआरडी टाटा( JRD Tata) भारत के पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट थे. भारतीय उद्योगपति जेआरडी टाटा, जिन्हें व्यापक रूप से भारतीय नागरिक उड्डयन का जनक माना जाता है, 1929 में ‘नंबर 1’ के साथ भारत में कॉमर्शियल पायलट लाइसेंस प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बने.
उद्योगपति और भारत रत्न जे.आर.डी. टाटा (1904-1993) को 10 फरवरी 1929 को एयरो क्लब ऑफ इंडिया द्वारा फेडरेशन एयरोनॉटिक इंटरनेशनेल की ओर से पायलट लाइसेंस जारी किया गया था. टाटा एयरलाइंस के संस्थापक, उन्हें 15 अक्टूबर 1932 को कराची से बॉम्बे के लिए एक सिंगल सीटर डीएच पुस मोथ में पहली कॉमर्शियल फ्लाइट का संचालन करने का गौरव प्राप्त था.
7. रतन टाटा की वैश्विक रणनीति
एक समय में, भारत में वैश्वीकरण एक नई अवधारणा थी. रतन टाटा ने न केवल बड़े अधिग्रहणों में बल्कि भारत के टॉप बिजनेस लीडर्स की मानसिकता को बदलने में भी अहम भूमिका निभाई. 2000 में टाटा टी द्वारा टेटली के अधिग्रहण के साथ, टाटा ने खरीदारी की होड़ में केवल 9 वर्षों में 36 कंपनियों का अधिग्रहण किया. उनमें से, अब तक का सबसे उल्लेखनीय और संभवतः विवादास्पद अधिग्रहण टाटा टी द्वारा टेटली का अधिग्रहण, टाटा स्टील द्वारा एंग्लो-डच स्टीलमेकर कोरस का और टाटा मोटर्स द्वारा ब्रिटिश ऑटोमोबाइल मार्की जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण शामिल है.