श्री राम ने जब ली सरयू नदी में समाधि, तभी से जुड़ गया एक श्राप

भारत न जाने कितनी विविधताओं से भरा हुआ है। कितने पहाड़, झरने और खूबसूरत नदियों से बना हुआ ये देश कई तरह की खूबियों को अपने अंदर समेटे हुए है। खासकर नदियों की बात की जाए तो सरयू नदी का अपना अलग इतिहास और पहचान है, जिसका नाम सुनते ही मन राम की नगरी में पहुंच जाता है। जैसे हरिद्वार में मां गंगा की महिमा है बिल्कुल वैसे ही अयोध्या धाम में सरयू नदी को ही पूजा जाता है। लेकिन इस नदी से जुड़ा है भोलेनाथ का एक श्राप।

अयोध्या में स्थित सरयू नदी का इतिहास

अयोध्या में स्थित सरयू नदी का इतिहास

सरयू नदी का इतिहास

पुराणों के अनुसार सरयू नदी का जन्म भगवान विष्ण के अश्रुओं से हुआ है। प्राचीनकाल में शंकासुर नाम के एक दैत्य ने ब्रह्मदेव के वेदों को चुराकर समुद्र में कहीं डाल दिए और स्वयं कहीं छिपकर बैठ गया। इससे अधर्म का प्रभाव बढ़ गया और धर्म की हानि होने लगी। तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण कर उस दैत्य का संहार किया और फिर से उन वेदों को ब्रह्मा जी को सौंप दिया।

धर्म की इस जीत पर भगवान विष्णु की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे। तब ब्रह्मा ने अपने कमंडल में उन आंसुओं को भरकर कैलाश मानसरोवर में सुरक्षित कर लिया।अब आगे क्या हुआ कि इस कमंडल के जल को वैवस्वत नाम के महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला। इससे जो नदी प्रकट हुई वही सरयू नदी कहलायी।

ऐसी मान्यता है जो भी भक्त अयोध्या धाम में श्री राम लला के दर्शन करने आते हैं। उन्हें सबसे पहले मां सरयू के जल में स्नान कर फिर श्री राम दरबार के दर्शन करने होते हैं। सरयू में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। लेकिन इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि गंगा की तरह पवित्र होने के बाद भी इस नदी का जल कभी पूजा पाठ के काम में नहीं लिया जाता है…

सरयू नदी से जुड़ा है भोलेनाथ का श्राप

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री राम ने सरयू नदी में जल समाधि लेकर अपनी लीला का अंत किया था। जिसकी वजह से भगवान भोलेनाथ सरयू नदी पर अत्यंत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सरयू नदी को यह श्राप दे दिया था कि तुम्हारे जल का प्रयोग मंदिर में चढ़ाने के लिए नहीं किया जाएगा और तुम्हारा जल पूजा पाठ में भी प्रयोग नहीं किया जाएगा।

इसके बाद मां सरयू भगवान भोलेनाथ के चरणों में गिर पड़ीं और कहने लगीं कि प्रभु इसमें मेरा क्या दोष है। ये तो विधि का विधान था जो कि पहले से ही निर्धारित था। इसमें भला मैं क्या कर सकती हूं? माता सरयू के बहुत विनती करने पर भगवान भोलेनाथ ने मां सरयू से कहा कि मैं अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकता लेकिन इतना हो सकता है कि तुम्हारे जल में स्नान करने से लोगों के पाप धुल जाएंगे लेकिन तुम्हारे जल का प्रयोग पूजा पाठ तथा मंदिरों में नहीं किया जाएगा और न ही किसी को पुण्य मिलेगा। बस तभी से सरयू नदी का जल पाठ-पूजा में शामिल नहीं किया जाता है।

सरयू नदी में स्नान करने से होते हैं पाप नष्ट

सरयू नदी की पवित्रता ऐसी है कि इसमें स्नान करने से मनुष्यों के पाप, अशुद्धियां, कष्ट सब नष्ट हो जाते हैं। त्रेतायुग में अवतरित हुए भगवान श्रीराम का जन्म स्थान अयोध्या सरयू तट पर ही स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीराम की बाल लीला के दर्शन के लिए ही सरयू का आगमन धरती पर त्रेतायुग से पहले हुआ था। वर्तमान में भी यह नदी करोड़ो लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है। विशेष अवसरों पर श्रद्धालु इस नदी में स्नान करने दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं…।