Ayodhya Ram Mandir: भारत ही नहीं, विश्व के कई देशों में भी इस समय रामत्व की प्रबल धारा प्रवाहित हो रही है। गांवों, कस्बों, शहरों में राम पताकाएं फहरा रही हैं, यात्राएं निकल रही हैं। प्रभु श्रीराम के अप्रतिम सुंदर विग्रह की उनकी जन्मभूमि में नव्य-भव्य मंदिर में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के सुअवसर पर कोटि-कोटि श्रद्धालु करबद्ध होकर श्रीराम जय राम जय जय राम के जाप में जुटे हैं।

श्रीरामकिंकर विचार मिशन के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी मैथिलीशरण इस अवसर को ऐतिहासिक नहीं, पौराणिक घटना बताते हैं और कहते हैं कि राम की प्राण प्रतिष्ठा जनमानस के हृदयस्थल में हो चुकी है।

युग तुलसी पद्मभूषण श्री रामकिंकर जी के रामत्व के प्रचार-प्रसार की परंपरा को आगे बढ़ा रहे स्वामी मैथिलीशरण से दैनिक जागरण के वरिष्ठ उप समाचार संपादक महेश शुक्ल ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश…

सवाल- इस समय अयोध्या में राममंदिर बन चुका है, प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। इस पर कुछ प्रकाश डालिए?

जवाब- यह केवल राम का मंदिर नहीं है और न ही यह केवल प्राण प्रतिष्ठा की कोई वैदिक प्रक्रिया है। यह तो सनातन धर्म की पुनर्स्थापना हो रही है। जन का जागरण हो रहा है, बादल छंट रहे हैं, सूर्य कुलभूषण श्रीराम का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंच गया है। राम की प्राण प्रतिष्ठा जनमानस के हृदय में हो चुकी है। हम इसे केवल ऐतिहासिक घटना नहीं कहेंगे, अपितु पौराणिक घटना कहेंगे। जिसके ब्रह्मर्षि और राजर्षि दोनों श्री नरेन्द्र जी मोदी और श्री योगी आदित्यनाथ जी हैं। हम उनको भी नमन् करते हैं। यह राम मंदिर भारतीय संस्कृति की ध्वजा है। यह ध्वजा तब फहराती है, जब इसकी नींव में भक्तों के प्राण भरे गये हैं, भावनाओं से सींचा गया है। यह अवध है, सनातन धर्म किसी का वध करके अवध में राम मंदिर नहीं बनाता है। यह अवध धरा जो राम की है यह भारत भरत भाई का है। इस मंदिर में जो पत्थर हैं वह लखनलाल के त्याग के हैं। यह सागर राम प्रेम का है भक्तों की सरिता इसे भरती है। यह मर्यादा की भूमि वही जो निंदा स्तुति सहती है।

सवाल- आप अयोध्या नहीं जा रहे हैं?

जवाब- मैं अयोध्या को अयोध्या बनाने बाली पूर्व दिशा जो कौशल्या माता हैं, उनके गांव जा रहा हूं, जहां कौशलेन्द्र भगवान राम के मंदिर का निर्माण हुआ है। सुसंयोग से वहां भी 20/21/22 जनवरी को तीन दिवसीय प्रभु कौशलेन्द्र की ही प्राण प्रतिष्ठा का अमृतमहोत्सव है। मेरा तो जीवन का प्रतिपल राममय है, वे ही तो मेरे प्राणनाथ हैं। हमारे प्रभु इतने कृपालु हैं कि उन्होंने कौशल्या माता के धाम में बने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में सीधे हाथ लगाने और सम्मिलित होने का सौभाग्य दे दिया। तहहिं अवध जहँ राम निवासू। तहहिं दिवस जहँ भानु प्रकासू।।

सवाल- भगवान श्रीराम की व्यावहारिक व्यापकता को वर्णित कीजिए। क्यों वे कभी निराश नहीं दिखाई दिये?

जवाब- प्रकृति में जो जड़ और चैतन्य पदार्थ दिखाई देते हैं, उन सबकी भी अपनी प्रकृति है और उनमें परस्पर भेद है तो प्रकृति के विपरीत आशा करना ही निराशा का कारण होता है। उसकी प्रकृति को अपनी लक्ष्यपूर्ति का उपादान बनाकर सृजन करना ही आनंद का कारण होता है। जो भगवान राम में सहज ही विद्यमान है। किष्किन्धाकांड में दोहा क्रमांक 15/क, और 15/ख में भगवान अपने अनुज लक्ष्मण जी को प्रकृति भेद समझाते हुए ज्ञानोपदेश करते हैं…

कबहुं प्रबल बह मारुत जहं तहं मेघ बिलाहिं।

जिमि कुपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिं।।

कबहुं दिवस महं निबिड़ तम कबहुंक प्रगट पतंग।

बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग सुसंग।।

अर्थात कभी-कभी वायु बहुत तेज वेग से चलती है और बादल जहां तहां उड़कर वैसे ही गायब हो जाते हैं, जैसे किसी उत्तम कुल में कोई कुपूत जन्म हो जाने पर घर से सारी धार्मिक और आदर्श परंपराओं को ले डूबता है। कभी बादलों के कारण सूर्य का प्रकाश प्रथ्वी पर नहीं पहुंच पाता है और बादलों के छटते ही प्रकाश ज्यों का त्यों वैसा ही हो जाता है, जैसे कुसंग पाकर व्यक्ति का विवेक पर से नियंत्रण समाप्त हो जाता है और सत्संग मिलते ही व्यक्ति अपने पूर्व प्रकाशित रूप में स्वत: आ जाता है। तो भगवान निराश नहीं होते हैं, अपितु वायु के वेग के स्थिर होने और बादलों के छंटने की प्रतीक्षा करते हैं और उस चातुर्मास में अपने भाई लक्ष्मण को ज्ञान, भक्ति, कर्म का उपयोगी स्वरूप बताकर अपने और भाई लक्ष्मण के समय का सदुपयोग करके, मौसम विपर्यय पर दुखी और निराश नहीं होते हैं। यही सार्वकालिक व्यापकता उनके आनंद का कारण है।

सवाल- भगवान राम के ब्रह्म, व्यापक और आनंदमय स्वरूप के अतिरिक्त जो उनका मनुष्य रूप है, उसमें इतने आकर्षण का कारण क्या है?

जवाब- राज्य मिलने की बात संसार के लिए आनंद का कारण होती है और श्रीराम के लिए कष्टकारक होती है। यही अंतर है राम में और हममें। रामराज्य इसलिये बन पाया कि छोटा समझता है कि हम छोटे हैं और वे बड़े हैं तथा बड़ा समझता है कि हम बड़े हैं और वह छोटा है। भगवान राम वनवास काल में जब-जब अयोध्यावासियों का स्मरण करते हैं, तब-तब उनका आनंदमय स्वरूप खंडित हो जाता है और वे दोनों नेत्रों में आंसू भरकर रोने लगते हैं। सीता जी को वनमार्ग में चलते देखकर रोने लगे। वन में ऋषि मुनियों के अस्थि समूह को देखकर दुखी होकर निशाचरों के विनाश का संकल्प लेते हैं श्रीराम। जो दूसरों के दुख से दुखी हो, अपने सुख और राज्य पाने की इच्छा न रखे, उन्हीं का नाम राम है, जो सत् हैं, जो चित् हैं और जो आनंद हैं।