कहते हैं अपराध एक ऐसा दलदल है जिससे निकलना लगभग नामुमकिन है. हथियार उठाने वाले हाथ फिर कभी अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां नहीं उठा सकते. बहुत से मामलों में ये बातें सही साबित हो सकती हैं लेकिन बिपुल कालिता ने इन बातों को सिरे से गलत साबित कर दिया. कभी एक उग्रवादी के रूप में जाने जाने वाले बिपुल को आज लोग एक उद्यमी के रूप में जानते हैं.
उग्रवाद छोड़ बने उद्यमी
ये कहानी है कभी प्रतिबंधित संगठन उल्फा से जुड़े उग्रवादी लेफ्टिनेंट बिपुल कालिता की, जिन्होंने एक समय हाथों में बंदूक उठा कर समाज से ही दुश्मनी कर ली. मगर उनके लिए कभी देर नहीं हुई, उन्होंने माना कि सुबह का भूला शाम तक घर लौट सकता है. उन्होंने ने भी समय के साथ समझदारी दिखाई और मुख्यधारा में वापस लौट आए.
आज की तारीख में वह असम में अपने गृह नगर शिवसागर में कचरा साफ कर समाज से गंदगी हटाने के साथ साथ अपना उद्योग भी चला रहे हैं. 50 साल के बिपुल कालिता ‘संप्रभु असम’ की स्थापना के अपने सपने को साकार करने के लिए लगभग 12 साल तक यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के लिए काम करते रहे.
परिवार के लिए छोड़ा हथियार
साल 2000 में उन्होंने हथियार छोड़ राज्य के पूर्वी हिस्से में अपने पैतृक स्थान पर अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ जीवन बिताने का फैसला किया. शुरुआती कुछ वर्षों तक छिटपुट काम करने के बाद, कालिता ने 2016 में एक उद्यमी बनने का फैसला किया और सात-आठ भागीदारों के साथ घर-घर जाकर कचरा एकत्र करना शुरू कर दिया.
NBT की रिपोर्ट के अनुसार कालिता ने शिवसागर शहर के 14 वार्ड में कचरा संग्रह का काम शुरू किया. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर डिब्रूगढ़ में उचित अपशिष्ट निपटान के बारे में जागरूकता अभियान चलाया. शुरुआत में वे सात-आठ लोग थे, जिनमें से अधिकतर ने यह काम छोड़ दिया क्योंकि वे इसे एक उपयुक्त नौकरी नहीं मानते थे. बिपुल ने अपने एनजीओ ‘रूपांतर’ के साथ अकेले इसे जारी रखा और जल्द ही छह अन्य नागरिक समाज संगठनों से मदद मिली.’
बिपुल कालिता के पास सात वाहन और कर्मचारी हैं, जिनमें ड्राइवर और अन्य सहयोगी शामिल हैं. कालिता असम में अपने गैर-सरकारी संगठन के जरिए शहरी क्षेत्रों में घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करते हैं और इनके कर्मचारी इस कचरे का निपटान करते हैं. कालिता ने बताया कि, ‘उनके साथ 20-25 महिलाएं भी काम करती हैं. कचरा संग्रहण के अलावा, उनके पास कचरे को खाद में बदलने की दो मशीन हैं. ये शिवसागर नगरपालिका बोर्ड की तरफ से लगाई गई थीं.’
अब घरों से उठाते हैं कचरा
उग्रवादी छोड़ जब कालिता ने कुछ करने की ठानी तब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी पैसों की कमी. वित्तीय संकट उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बना क्योंकि उनका उद्यम केवल घरों और व्यावसायिक भवनों से एकत्र किए गए मामूली मासिक शुल्क पर निर्भर है. कालिता ने बताया कि, ‘उन्हें प्रति परिवार प्रति माह 60 रुपये मिलते हैं, जिसमें से वो नगरपालिका बोर्ड को 10 रुपये का भुगतान करते हैं. व्यावसायिक इमारतें मासिक शुल्क के मामले में थोड़ा अधिक भुगतान करती हैं लेकिन उन्हें इसका 50 प्रतिशत बोर्ड को देना होता है.’ उन्होंने कहा, ‘नगर निगम बोर्ड से उनकी अपील है कि कर माफ किया जाए ताकि हमें कुछ और लाभ मिल सके.’
अपनी पिछली ज़िंदगी के बारे में अफसोस जताते हुए कालिता ने कहा कि, ‘अब समय बदल गया. जब उन्होंने हथियार उठाए थे तब वह एक अलग उम्र थी. वे अब संगठन और सरकार के बीच शांति वार्ता का अनुसरण कर रहे हैं, लेकिन नई दिल्ली की कुछ यात्राओं को छोड़कर, कुछ भी नहीं हुआ है.’ कालिता ने कहा, ‘उनके जैसे कई लोगों को उनके आत्मसमर्पण के बाद सरकार से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिली. उन्हें उम्मीद है कि प्रशासन सहानुभूति रखते हुए उनकी मदद करेगा.’