History of Khichdi: 2000 साल से पुराना है खिचड़ी का इतिहास, इससे प्रेरित होकर अंग्रेज़ों ने बनाया Kedgeree

खिचड़ी के चार यार, दही, पापड़ और अचार

बिहार के एक दोस्त ने ये वन लाइनर सुनाया था. सारी दुनिया की लज़ीज़ डिशेज़, पकवान एक तरफ़ और खिचड़ी एक तरफ़. नाम अनेक हैं- खिचड़ी(हिन्दी), खिचुरी (बांग्ला), किसुरी (सिलेटी), खेचिड़ी (उड़िया), बिसी बेले भात, वेन पोंगल. बनाने के तरीके में भी थोड़ी-बहुत भिन्नता मिल जाएगी. कहीं पूरी तरह से वेजिटेरियन है तो कहीं मांस भी मिलाया जता है. इतने अंतर के बाद भी, उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक भारतीयों के लिए ‘कम्फ़र्ट फ़ूड’ है खिचड़ी (History of Khichdi).

हज़ारों साल से हमारे खाने का हिस्सा है खिचड़ी

History of khichdi Maggi

एक लेख के अनुसार, खिचड़ी शब्द संस्कृत के ‘खिच्चा’ से बना है. ये चावल और दाल से बनाई जाती है. भारत के कई घरों में छोटे बच्चे जब खाना शुरू करते हैं तब उन्हें दाल-चावल की ही खिचड़ी खिलाई जाती है. 1200 ईसा पूर्व में भी खिचड़ी खाई जाती थी, इस तथ्य के आर्कियोलॉजिकल सबूत भी मिले हैं. फ़ूड हिस्टोरियन्स का दावा है कि खिचड़ी उससे पहले से भारतीय उपमहाद्विप के खाने का हिस्सा थी. चावल और दाल को अलग-अलग बना कर खाने का सिलसिला काफ़ी समय बाद शुरू हुआ.

चाणक्य से लेकर इब्न बतुता ने खिचड़ी पर लिखा

history of khichdiIndian Express Group

India Today के एक लेख के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री औरमहाविद्वान चाणक्य ने भी खिचड़ी पर दो टूक कहे हैं. खिचड़ी में दाल, चावल, नमक और घी की कितनी मात्रा होनी चाहिए, इस पर चाणक्य ने अपनी राय दी है. चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहने वाले यूनान के राजदूत मेगास्थेनिस ने भी अपने लेख में खिचड़ी का उल्लेख किया है

Outlook India के एक लेख के अनुसार, अरब इब्न बतुता ने भी खिचड़ी खाने की बात लिखी है. उनके लेखों के मुताबिक, रोज़ सुबह नाश्ते में भारतीय मूंग दाल को चावल के साथ उबालकर, घी के साथ खाते थे. इब्न बतुता ने 14वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी.

15वीं शताब्दी में भारत यात्रा करने वाले रूस के व्यापारी Afanasy Niktin ने अपने यात्रा वृतांत में लिखा कि घोड़ों को दाल, खिचड़ी, चीनी और घी खिलाया जाता था. फ़्रेंच ट्रैवलर Jean-Baptiste Tavernier ने खिचड़ी को ‘गरीबों का खाना’ बताया.

शनिदेव को पसंद है काली दाल खिचड़ी

हिन्दू पौराणिक कथाओं में भी खिचड़ी का उल्लेख किया गया है. Amar Chitra Katha में छपी कहानी में बताया गया है कि शनिदेव को काली दाल की खिचड़ी बहुत पसंद है. कहते हैं कि जब देवी छाया के गर्भ में शनिदेव थे तब देवी ने कठिन तपस्या की. कड़ी धूप में बिना खाए-पिए तप करती रही. इस वजह से शनिदेव का रंग अश्वेत निकला. गौरतलब है कि मां की तपस्या के फलस्वरूप शनिदेव को दैवी शक्तियां मिली. इस वजह से माना जाता है कि शनिदेव को काले रंग की खिचड़ी पसंद है.

महाभारत में उल्लेख

History of khichdi Wikipedia

महाभारत में खिचड़ी का उल्लेख मिलता है. कुछ विद्वानों की मानें तो द्रौपदी ने वनवास के दौरान पांडवों को खिचड़ी बनाकर खिलाई थी. द्रौपदी के पास एक दिव्य पात्र था जिसमें तब तक खाना खत्म नहीं होता था जब तक द्रौपदी ने खाना न खा लिया हो. द्रौपदी ने उस दिन भोजन ग्रहण कर लिया था और ऋषि दुर्वासा असंख्य अनुयायियों के साथ द्रौपदी के घर पहुंच गए. ऋषि दुर्वासा अत्यंत क्रोधी ऋषि थे और किसी को भी श्राप दे देते थे. द्रौपदी की रसोई में अन्न का एक दाना भी नहीं था. वो चिंता में पड़ गई कि अब करें तो करें क्या. ऐसे में श्रीकऋष्ण द्रौपदी की सहायता को आगे आए. पात्र में एक चावल का दाना था, कृष्ण ने उसे ग्रहण किया और ऋषि समेत सभी अनुयायियों का पेट भर गया.

कृष्ण और सुदामा की भी खिचड़ी से जुड़ी एक कहानी है. जब सुदामा अपने मित्र से मिलने द्वारका जा रहे थे तब उनके पास दो पोटलियां थी. एक में खिचड़ी और दूसरे में भुने हुए चने. खिचड़ी वाली पोटली को एक बंदर ले भागा लेकिन सुदामा किसी तरह भुने चने वाली पोटली लेकर द्वारका पहुंचे और दोस्त को भेंट में दी.

मुगलों को बेहद पसंद थी खिचड़ी

History of khichdi The Heritage Lab

मुगल काल में भी खिचड़ी को काफ़ी लोकप्रियता मिली. खाने के शौकीन अकबर को खिचड़ी बेहद पसंद थी. ‘बीरबल की खिचड़ी’ वाली कहानी हम सभी ने सुनी है. अकबर के नवरत्नों में से एक, अबुल फजल रोज़ाना 1200 किलोग्राम खिचड़ी बनवाते थे. कोई भी भूखा उनके घर पर आकर खिचड़ी खाकर पेट भर सकता था.

फ़ूड हिस्टोरियन के टी अचाया के अनुसार मुगल बादशाह जहांगीर को भी खिचड़ी बहुत पसंद थी. वो खिचड़ी में पिस्ता, किशमिश भी मिलाते थे. जहांगीर ने इस डिश को नाम दिया था, ‘लज़ीज़ां’. जहांगीर ने खिचड़ी को मशहूरियत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई थी. रूसी व्यापारी Afanasy Niktin ने अपने यात्रा वृतांत में ये लिखा है. मुगल बादशाह औरंगज़ेब को भी ‘आलमगिरी खिचड़ी’ बहुत पसंद थी. रमज़ान के पाक महीने में वो इसे खूब खाते थे.

अलग-अलग नाम, बनाने की विधि में अंतर

khichdiTwitter/Bhoger Khichuri

भारतीय घरों की रसोइयों में खिचड़ी बनाने की कई विधियां मिल जाएंगी और खिचड़ी का नाम भी अलग हैं. पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा पंडाल, सरस्वती पूजा पंडाल में भोग में खिचुरी ही बनाई जाती है. इसे हरी सब्ज़ी, मीठी चटनी के साथ परोसा जाता है. कुछ घरों में खिचुरी के साथ अलग-अलग किस्म के ‘भाजा’ (तली हुई सब्ज़ियां) और कहीं-कहीं तली हुई मछली के साथ खाया जाता है.

गुजरात के कुछ घरों में खिचड़ी को कम मसाले वाली कढ़ी के साथ खाया जाता है. हिमाचल प्रदेश में खिचड़ी में राजमा, छोले भी मिलाए जाते हैं. तमिलनाडु के वेन पोंगल को बहुत ज़्यादा घी डालकर बनाया जाता था. वहीं कर्नाटक में बिसी बेले भात में इमली, गुड़, सब्ज़ियां, नारियल आदि भी डाला जाता है.

खिचड़ी ने अंग्रेज़ों को दी उनकी नेश्नल डिश- Kedigree

History of khichdi Caroline’s Cooking

ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरिया के घर तक भी पहुंची खिचड़ी. और इसका श्रेय जाता है उनके उर्दू के उस्ताद, मुंशी अब्दुल करीम को. मसूर की दाल उन्हें बहुत पसंद थी, और यहीं से ‘मल्लिका मसूर’ नाम पड़ा.

अंग्रेज़ अपने साथ खाने के कई तौर-तरीके लेकर आए. और हमारे यहां के खाने-पीने के कई तौर-तरीके अपना लिए. कल्चर मिक्स-अप का सबसे अच्छा उदाहरण है ऐंग्लो-इंडियन डिश Kedgeree. इस डिश में उबले चावल, मछली, उबले अंडे, बटर, क्रीम आदि मिलाया जाता है. हमारे यहां की खिचड़ी में थोड़ा फेर-बदल करके अंग्रेज़ों ने Kedgeree बना लिया. हम भारतीय खिचड़ी गर्मा-गर्म खाते हैं जबकि Kedgeree को ठंडा करके खाया जाता है.

खिचड़ी हमारे लिए क्या है, इसका अंदाज़ा इसी से लगा लीजिए कि इसके नाम पर एक बेहतरीन टीवी शो बना दिया गया. पेशकश कैसी लगी कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं.