यूपी में पिछले 9 सालों में चलाई गई योजनाओं का असर दिखने लगा है। प्रदेश में पिछले 9 सालों में 6 करोड़ लोग गरीबी रेखा के दायरे से बाहर आए हैं। लोगों के जीवन स्तर में सुधार की योजनाओं को जमीन पर उतारने का यह असर दिखा है। केंद्र की नरेंद्र मोदी और यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की नीतियों का असर रिपोर्ट में दिखा है।
गरीबों को मिला योजनाओं का लाभ
नौ साल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के गरीबी रेखा से बाहर आने की बड़ी वजह सरकारी योजनाओं में लीकेज बंद होना है। इससे लाभार्थियों तक योजनाओं का लाभ सीधे पहुंचा। 2017 में प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद प्रदेश में केंद्र की योजनाएं प्राथमिकता से लागू की गईं। लोगों को काफी संख्या में आवास मिले। 1.50 करोड़ से अधिक घरों तक मुफ्त में बिजली पहुंचाई गई। गरीब कल्याण की योजनाएं पूरे प्रदेश में प्रभावी ढंग से लागू की गईं।
बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकला यूपी
नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर आकर देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है। उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हुई है। आंकड़ों के मुताबिक, कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण बीते 2-3 साल पूरे विश्व और देश में आर्थिक मंदी रही। इसके बावजूद प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार कायम रही।
यूपी का हाल
- 2013-14: 42.59%
- 2022-23: 17.40%
देश की स्थिति
- 2013-14 29.17%
- 2022-23 11.28%
बिहार, एमपी में भी हालात सुधरे
यूपी के बाद बिहार में 3.77 करोड़ और मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकार का लक्ष्य बहुआयामी गरीबी को एक प्रतिशत से नीचे लाना है और इस दिशा में सभी प्रयास किए जा रहे हैं। परिचर्चा पत्र में कहा गया है कि भारत गरीबी स्तर को इस साल एकल अंक में लाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
ऐसे तय होते हैं आंकड़े
नीति आयोग ने कहा कि राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर के मोर्चे पर स्थिति को मापती है। यह 12 सतत विकास लक्ष्यों से संबद्ध संकेतकों के माध्यम से दर्शाए जाते हैं। इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृत्व स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं। नीति आयोग का राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) गरीबी दर में गिरावट का आकलन करने के लिए ‘अलकायर फोस्टर पद्धति’ का उपयोग करता है। हालांकि, राष्ट्रीय एमपीआई में 12 संकेतक शामिल हैं जबकि वैश्विक एमपीआई में 10 संकेतक हैं।