Ram Mandir: राम के नाम से आत्म-उद्धार होगा और राम के काम से जगत का उद्धार होगा
श्रीरामचरितमानस में लिखा है धन्य अवध जो राम बखानी। जिस नगरी का वर्णन करते हुए स्वयं भगवान राम ने कहा वह नगरी धन्य है। यह सरजू धन्य है। यह रामजन्म भूमि धन्य है। अयोध्या में हनुमानगढ़ी पर भारतीय संस्कृति का संरक्षण करने वाले श्री हनुमानजी महाराज विराजमान हैं… साधु-संत के तुम रखवारे। सबसे बड़ा प्रतीक है युगों से चली मानसरोवर से निकली सरजू…सरजू नाम सुमंगल मूला।
मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। श्रीराम भगवान हैं, परमात्मा हैं, ईश्वर हैं, परम सत्य हैं, परम तत्व हैं, परात्पर ब्रह्म हैं। कोई माने ना माने, लेकिन ‘सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे’… भगवद्गीता के दो टूक वचन में कहा गया है कि हे ईश्वर, हे परमात्मा, आप सनातन पुरुष हैं। सनातन का अर्थ होता है शाश्वत, निरंतर। भगवान श्रीराम के बारे में श्रीरामचरितमानस में लिखा है :
आदि अंत कोउ जासु न पावा।
मति अनुमानि निगम अस गावा।
जिसका आरंभ कब हुआ है और अंत कब होगा, कोई नहीं कहता। वेद काल से यानी वेद के श्लोक से लेकर अंतिम ग्रामीण व्यक्ति तक भगवान श्रीराम का अस्तित्व अंत में ‘नेति-नेति’ कहकर गाया गया है। श्रीरामचरितमानस में लिखा है, ‘राम सो परमात्मा भवानी।’ शिवजी कहते हैं कि हे पार्वती, राम भगवान हैं। राम ईश्वर हैं। ‘जगद्गुरुं च शाश्वतं।’ राम जगतगुरु हैं। ऐसे परम तत्व भगवान राम का मंदिर अयोध्या का इतिहास है।
श्रीरामचरितमानस में लिखा है, ‘धन्य अवध जो राम बखानी।’ जिस नगरी का वर्णन करते हुए स्वयं भगवान राम ने कहा, वह नगरी धन्य है। यह सरजू धन्य है। यह रामजन्म भूमि धन्य है। अयोध्या में हनुमानगढ़ी पर भारतीय संस्कृति का संरक्षण करने वाले श्री हनुमानजी महाराज विराजमान हैं… साधु-संत के तुम रखवारे। सबसे बड़ा प्रतीक है, युगों से चली, मानसरोवर से निकली सरजू…’सरजू नाम सुमंगल मूला।’ वेद और लोक के बीच में भगवान श्रीराम की परम चेतना का प्रवाह बह रहा है।
अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर बन रहा है। इस पवित्र अवसर पर एक साधु के नाते मेरा सभी से अनुरोध है कि राम का नाम भी लें और राम का काम भी करें। राम के नाम से आत्म-उद्धार होगा और राम के काम से जगत का उद्धार होगा। श्रीरामचरितमानस केवल महाकाव्य नहीं है, यह महामंत्र भी है और महामंत्र बहुत गूढ़ होते हैं। इसलिए गहराई में उतरना पड़ता है। मेरा पूरा भरोसा है कि रामचरितमानस, राम के चरित्र गुणगान से विधि का लेख बदल जाता है।
मैं व्यासपीठ से अक्सर कहता हूं कि राम महामंत्र का जो भी जाप करे, उसके लिए तीन स्वाभाविक नियम हैं। यदि आप राम नाम का जप करते हैं तो तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए। एक, राम नाम जपने वाला किसी का शोषण न करे। जहां तक हो सके, दूसरों का पोषण करे। दूसरों को भर दे। भरत नाम शायद इसलिए आया कि राम नाम जपने वाला सबको हरा-भरा कर दे।
दूसरा, राम नाम जपने वाले से चाहे कोई भी वैर रखे, फिर भी राम नाम जपने वाले का दायित्व है कि वह वैरी के साथ भी वैर ना रखे। शत्रु भाव ना रखे। कोई कितना ही द्वेष करे, भजन करने वाले को उसके प्रति भी दुर्भाव नहीं होना चाहिए। तीसरा, लक्ष्मण के नाम का संकेत है, वह धरती को धारण करते हैं। हम जितने को धारण कर पाएं, करें। हम पूरा स्कूल कालेज ना बनवा सकें, लेकिन कोई गरीब विद्यार्थी आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई से वंचित होने लगे तो किसी को कहे बिना उसकी फीस के, पुस्तकों के, हास्टल के पैसे भर दें तो यह राम नाम जपने की सबसे बड़ी सार्थकता होगी।
हम बड़ा अन्नक्षेत्र न खोल पाएं, लेकिन वहां भोजन परोसने की सेवा तो कर ही सकते हैं। अपनी क्षमता के अनुसार जितना हो सके, करना चाहिए। ये सभी राम के काम हैं। शास्त्रों में लिखा है कि हमारे देश में कौन सी नगरियां शतः मोक्षदायिका हैं। वहां रहना पर्याप्त है। साधन करो, न करो, जप-तप करो न करो, लेकिन उस भूमि में रहना, वहां के जल-वायु में रहना ही अपने आप में मुक्तिप्रदाता है। ऐसी सात नगरी हमारी भारत भूमि में मोक्षदायिका मानी गई हैं, जिसमें पहला नाम अयोध्या है :
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।
पुरीवती चैव सप्तैता मोक्षदायिका।
अयोध्या में जो निवास करता है, उसे स्वत: मोक्ष मिलता है। मैं गवाह हूं। राम उपासना के क्रम में कई बार अयोध्या गया हूं। मैं फिर वहां जाने वाला हूं। रामो विग्रहवान धर्म साधु सत्य पराक्रम। राम ब्रह्म हैं, निराकार हैं, लेकिन आकार लेकर हमारी भूमि पर आकर, हमारे जैसा जीवन जीते-जीते भगवान राम परमात्मा ने हमें आदर्श बताया है। शास्त्रों ने कहा, राम क्या है? राम धार्मिक नहीं हैं, राम स्वयं धर्म हैं।
‘रामो विग्रहवान धर्म।’ पहला, धर्म क्या? राम। बस, बात खत्म हो गई। ‘रामो विग्रहवान…’ धर्म ने जब एक विग्रह धारण करने की इच्छा व्यक्त की तब धर्म, सनातन धर्म, वैदिक और शाश्वत धर्म भगवान राम के रूप में हमारी भारत की भूमि अयोध्या में प्रकट हुए। राम साक्षात् धर्म-विग्रह हैं। दूसरा, राम साधु हैं। मुझे अतीव आनंद होता है कि सर्वधर्ममय राम हैं और दूसरा उसका लक्षण है, ‘रामो विग्रहवान धर्म साधु…’ राम साधु हैं और साधु होना मेरी दृष्टि से सबसे ऊंची बात है।
‘राम साधु तुम्ह साधु सयाने।’ ‘मानस’ में भी लिखा है कि राम साधु हैं। भगवान राम जब हमारे लिए निजतंत्र निज रघुकुलमनि प्रकट हुए, वह हैं धर्म; राम हैं साधु। ‘रामो विग्रहवान धर्म साधु सत्य पराक्रम।’ राम हैं परम सत्य। ये तीसरा, राम के परिचय के लिए अनुभूत महापुरुषों ने जो अमृत वचन कहे, वो ये हैं। ‘रामो विग्रहवान धर्म साधु सत्य पराक्रम।’ राम पराक्रम के प्रतीक हैं। आप कल्पना कीजिए कि सत जोजन समुद्र, उसको सेतु बनाकर लांघना, यह बिना पराक्रम हो नहीं सकता और ‘पराक्रम’ शब्द चौथे स्थान पर आया। पराक्रम कौन कर सकता है? जिसका जीवन धर्ममय है, जिसमें साधुता है, जो परम सत्य का उपासक है, वह ही पराक्रम कर सकता है। उसी के नाम से पत्थर तैर सकता है। पत्थर का तैरना पुरुषार्थ का सबसे बड़ा प्रमाण है। इतना बड़ा सेतु बनवाया।
श्रीरामचरितमानस का यह प्रसंग मुझे बहुत अच्छा लगता है। भगवान राम गए तो युद्ध करने के लिए थे, लेकिन पहले सेतु बनाया। यह भारत का विचार है कि पहले सेतु बनाया जाए, फिर यदि करना पड़े तो संघर्ष किया जाए। सीधा संघर्ष नहीं। पहले जोड़ो। पहले ऐक्य। यह भूमि एकता की है। पहले जोड़ा जाए, फिर यदि संघर्ष करना पड़े तो किया जाए। यह बहुत प्रेरणादायक बात है कि सेतुबंध पहले होना चाहिए। अनंत गुण हैं भगवान राम में। वे आदर्शों के भंडार हैं।
रावण आदि का निर्वाण करके भगवान राम जब लंका विजय से लौटे और विमान सरजू के तट पर उतरा तो सबसे पहले अयोध्या की मिट्टी को राम ने सिर पर लगाया। प्रसिद्ध वक्तव्य है कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’ जन्म देने वाली मां और अपनी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। उस समय भगवान राम के कुछ वचन हैं कि ‘अति प्रिय मोहि यहां के बासी।’ अयोध्या के लोग मुझे बहुत प्रिय हैं।