सफलता की वो 5 कहानियां, जिन्होंने साबित किया कि मेहनत करने वाले अपनी किस्मत खुद लिखते हैं

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जिंदगी में कई ऐसे मौके आते हैं, जब इंसान को लगता है कि सब खत्म हो गया है. हमें समझ नहीं आता कि अब आगे कैसे बढ़ा जाए. ऐसे समय में कुछ लोगों की कहानियां हमें प्रेरित करती हैं और आगे बढ़ने का हौसला देती हैं. आज हम आपके लिए ऐसी ही कुछ कहानियों का संकलन लेकर आए हैं. इन सभी कहानियों में आम लोग अपनी मेहनत से सफलता के शिखर पर पहुंचे और आज समाज के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं.

1. 10वीं फेल ऑटो वाला, जो जयपुर से स्विटजरलैंड तक पहुंचा

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रंजीत सिंह राज की कहानी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राज एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनका रंग सांवला है. इस कारण उन्हें हमेशा ताने सुनने को मिलते थे. इससे उन्हें गुस्सा आता था. लेकिन, आज वह जिस मुकाम पर हैं वो उनकी मेहनत को बयां करता है.

कभी जयपुर की गलियों में भटकने वाले राज आज स्विटजरलैंड के जिनेवा में हैं. राज ने जयपुर में 16 साल की उम्र से ऑटोरिक्शा चलाना शुरू किया और कई साल तक वह चलाते रहे. साल 2008 का समय था जब कई ऑटो ड्राइवर इंग्लिश, फ्रेंच, स्पैनिश भाषा में बात करते थे और टूरिस्ट को अट्रैक्ट करते थे.

राज भी इंग्लिश सीखने की कोशिश करने लगे. राज ने इस दौरान एक टूरिस्ट बिजनेस की शुरुआत की, जिसके जरिए वह फॉरेनर्स को राजस्थान घुमाते थे. यहीं उनकी मुलाकात एक विदेशी महिला से हुई, जिससे आगे चलकर उन्होंने शादी कर ली और 10वीं फेल इस शख्स की पूरी जिंदगी ही बदल गई.

2. पढ़ाई के लिए डांट मिली, छोड़ दिया घर, लाखपति बनकर लौटे

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रिंकू की पूरी कहानी फिल्मी है. उन्हें पढ़ाई के कारण रोज डांट सुननी पड़ती थी. इससे परेशान होकर करीब 14 साल पहले वो अपने घर से निकल गए थे. ट्रेन में बैठकर वो यूपी के हरदोई के फिरोजापुर गांव से निकलकर चुपचाप लुधियाना पहुंच गये थे. लुधियाना में उनकी मुलाकात एक सरदार जी हुई, जिन्होंने रिंकू को अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम दिया.

यहां रिंकू ने ट्रक चलाना सीखा. फिर धीरे-धीरे उन्होंने अपना खुद का ट्रक खरीद लिया. अब उनके पास लग्जरी कार भी है. कुछ वक्त पहले ही रिंकू जब अचानक बदले हुए नाम और वेशभूषा में गांव पहुंचे तो उनकी मां ने उन्हें पहचानने में देरी नहीं की. घंटों वो उन्हें गले लगाकर रोती रहीं. दरअसल, रिंकू 14 साल पहले बिना किसी को बताए घर से चले गए थे. परिजनों ने उनकी खूब तलाश की, लेकिन वह नहीं मिले. थक हारकर परिवार वालों ने इसे नियति मान लिया. जबकि, सूरज लुधियाना जाकर गुरुप्रीत बनकर रह रहा था.

3. ढाबे पर काम किया, ऑटो रिक्शा चलाया, आज करोड़पति हैं

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स्वेज फॉर्म में रहने वाले राहुल तनेजा एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के मालिक हैं. आम से खास बनने का उनका सफर संघर्ष भरा रहा. उनके पिता टायर के पंचर लगाने थे. घर की आर्थिक स्थिति ऐसी कि राहुल को काम के लिए छोटी उम्र में ही घर छोड़ना पड़ा. मध्य प्रदेश से राजस्थान के जयपुर में आकर अपना पेट पालने के लिए उन्होंने एक ढाबे पर नौकरी की. उन्हें महीने में इस काम के 150 रुपए मिलते थे.

आगे के सफर में उन्होंने अखबार बांटने से लेकर ऑटो रिक्शा चलाने तक कई छोटे-बड़े काम किए. वह साल 1998 था, जब उन्होंने दोस्तो के सलाह पर अपनी फिटनेस पर फोकस किया और मॉडलिंग में अपनी किस्मत आजमाई. किस्मत अच्छी रही तथा 1998 में राहुल जयपुर क्लब द्वारा आयोजित फैशन शो में विजेता चुन लिए गए. इसके बाद वो मॉडलिंग का बड़ा नाम बन गए. आज वो इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के मालिक हैं.

4. दिव्यांगता से नहीं हारे, कर्ज लेकर शुरू की थी दुकान

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राम चंद्रअग्रवाल का जन्म एक आम परिवार में हुआ. वो अच्छे से चलना भी नहीं सीख पाए थे कि लकवा का शिकार हो गए. घरवालों ने खूब कोशिश की. मगर, वो चल नहीं सके और हमेशा के लिए बैसाखी के सहारे हो गए. उनके भविष्य को लेकर घर वाले परेशान थे. मगर, रामचन्द्र के मन में कुछ और चल रहा था. उन्होंने तय किया कि वो हर कीमत पर गरीबी को हराकर रहेंगे और समाज में अपना नाम बनाएंगे.

दिव्यांग होने के कारण उनके लिए नौकरी हासिल करना आसान नहीं था, मगर वो लगे रहे. अफसोस तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें कहीं नौकरी नही मिली. यह रामचन्द्र के लिए कठिन समय था, मगर वो टूटे नहीं. दोस्तों से कर्ज लेकर उन्होंने फोटो कॉपी की एक दुकान खोली और जिंदगी में आगे बढे़. फोटो कॉपी की दुकान के बाद 1994 में उन्होंने कपड़ा उद्योग में कदम रखा.

कोलकाता के लाल बाजार में कपड़ों की दुकान खोलकर उन्होंने अपनी किस्मत आजमाई. राम चन्द्र यही नहीं रुके करीब 15 वर्ष तक इसी तरह काम करने के बाद 2001-02 में उन्होंने विशाल रिटेल की नींव डाल दी. देखते ही देखते विशाल रिटेल बड़ा होता गया और रामचंद्र बिजनेस जगत का एक बड़ा नाम बनते गए. आगे के सफर में उन्होंने विशाल मेगा मार्ट की स्थापना की और इस तरह करोड़ों रुपए के मालिक बन गए.

5. 2 रुपए दिहाड़ी पर नौकरी की, आज करोड़ों की मालकिन हैं

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महाराष्ट्र के ‘विदर्भ’ में पैदा हुईं कल्पना सरोज ने जिंदगी का वो दौर देखा है जिसकी शायद हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते. एक समय में उनके घर के हालात इतने खराब थे कि कल्पना गोबर के उपले बनाकर बेचा करती थीं. वह महज 10 साल की थी, जब उनकी शादी कर दी गई. ससुराल आकर न सिर्फ उनकी पढ़ाई रुक गई, बल्कि उन्हें ससुराल में घरेलू हिंसा का शिकार भी होना पड़ा.

एक समय ऐसा भी आया, जब उन्होंने हार मानकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. हालांकि, एक रिश्तेदार की मदद से उन्हें बचा लिया गया. इस हादसे के बाद 16 साल की उम्र में कल्पना मुंबई लौटीं और अपनी नई जिंदगी शुरू की. 2 रु की दैनिक मजदूरी पर अपना काम करने के बाद उन्होंने 50,000 का सरकारी लोन लेकर एक बुटीक शॉप खोल ली.

इसके बाद उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा. अपनी मेहनत से मुंबई में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान मिली. आज की तारीख में कल्पना कमानी स्टील्स, केएस क्रिएशंस, कल्पना बिल्डर एंड डेवलपर्स, कल्पना एसोसिएट्स जैसी दर्जनों कंपनियों की मालकिन हैं और करीब 700 करोड़ के साम्राज्य पर राज कर रही हैं.