आंखों में नहीं रोशनी, फिर भी सपनों की भर रहे उड़ान; गया नेत्रहीन विद्यालय के बच्चे छह छिद्र के कमाल से संवार रहे जिंदगी
गया नेत्रहीन विद्यालय के बच्चे छह छिद्र के कमाल से अपनी जिंदगी को संवारने में लगे हुए हैं। इनकी आंखों में भले ही रोशनी न हो लेकिन इनके हौंसले बुलंद हैं। कोई पढ़-लिखकर टीचर बनना चाहता है तो कोई संगीतकार बनने की ख्वाहिश अपने अंदर समेटे हुए हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि आर्थिक तंगी से गुजर रहे विद्यालय को सरकार से मदद नहीं मिल रही है।
राकेश कुमार, बेलागंज (गया)। चाकंद रहीमबिगहा में संचालित गया नेत्रहीन विद्यालय में अध्ययनरत बच्चे छह बूंदों की कमाल से अपनी जिंदगी संवार रहे हैं। छह छिद्र में प्लेट या स्केल में हिन्दी वर्णवाला के 46 अक्षर निहित है। उसी छह छिद्रों के सहारे वर्णवाला के क्रमवार 46 अक्षर लिखे और पढ़े जाते हैं। उसी अक्षर के सहारे शब्द और फिर वाक्य बनाए जाते हैं। छह छिद्रों की खासियत है कि हिन्दी विषय के अलावे अन्य विषयों का भी ज्ञान बच्चों को दी जाती है। शिक्षकों के प्रयास से दृष्टि बाधित बच्चों की जिन्दगी संवरती है।
यहां से कई नेत्रहीन बच्चे बना चुके हैं अपनी पहचान
एनएच-83 पर चाकन्द थाना क्षेत्र के रहीमबिगहा में संचालित है नेत्रहीन विद्यालय, जहां वर्ष 1983 में नेत्रहीन विद्यालय की शुरूआत चाकन्द बाजार के समीप उतरौध गांव से हुई थी। विद्यालय स्थापना काल को अब वर्ष 2024 में 34 वर्ष गुजरने को है, लेकिन आज भी जिस उद्देश्य से विद्यालय की स्थापना हुई थी।
उस उद्देश्य को पूरा करने में विद्यालय के प्रबन्धन अपना प्रयास जारी रखे हुए हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि विद्यालय से अभी तक प्रदेश के विभिन्न जिलों से अब तक 500 से अधिक नेत्रहीन छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान बना चुके है।
दृष्टि बाधित बच्चों का कहना- हम किसी से कम नहीं
वर्तमान में प्रथम से दशम वर्ग तक 30 छात्र एवं छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिन्हें ब्रेल लिपि के सामान्य शिक्षा के अलावे संगीत की शिक्षा दी जा रही है। दृष्टि बाधित बच्चों को भगवान भले ही अंधा बना दिया हो, लेकिन इनका जज्बा नहीं बताता है कि हम किसी से कम है।
सभी बच्चे एक सभ्य नागरिक बन देश और समाज के लिए कुछ करने की तमन्ना मन में रखे हुए हैं। इनके लिए छह छिद्रों के अक्षर के ज्ञान से फर्राटे से हिन्दी की किताब पढ़ना, निबंध लिखना आम बात है। इन नेत्रहीन बच्चों के पढने की शैली से कोई आम बच्चों से अंतर नहीं कर सकता है।
आर्थिक तंगी से गुजर रहा है स्कूल
गया, जहानाबाद, पटना, मसौढ़ी सहित अन्य जगहों के रहने वाले सोनू,गौरव, सिकन्दर सहित काजू कुमारी सहित अन्य बच्चों की एक ही ललक है कि हम भी पढ़ लिखकर समाज में अपनी पहचान बनाए। यहां पढ़ने वाला गौरव बताता है कि वह पढ़कर शिक्षक बनना चाहता है, तो कोई एक संगीतकार बनने की लालसा मन में रखे हुए हैं।
किराये के मकान में चलने वाले इस विद्यालय की आर्थिक स्थिति तंगी से गुजर रही है। सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय नई दिल्ली से संबंद्ध उक्त विद्यालय को कुछ अनुदान जिला प्रशासन के रहमोकरम पर मिलती थी, लेकिन वर्ष 2015 से अनुदान नही मिल पा रहा है। जबकि जिला प्रशासन द्वारा वर्ष 2021 तक अनुशंसा की गई है। फिर भी सरकार द्वारा राशि नही मिल रही है।
सरकार से नहीं मिल रही आर्थिक सहायता
विद्यालय के व्यवस्थापक महेन्द्र कुमार बताते हैं कि सरकार से आर्थिक सहायता नहीं मिलने के उपरांत स्थानीय स्तर के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ रहा है। पढ़ाने के लिये तीन शिक्षक पदस्थापित हैं, जिन्हें विद्यालय प्रशासन द्वारा वेतन दिया जाता है।
इसके अलावे बच्चों को नि:शुल्क आवासन एवं भोजन दिया जाता है। जिसे पूरा करने में आर्थिक बोझ ज्यादा हो जाता है। लेकिन बच्चों के भविष्य को अपना भविष्य समझ इनके शिक्षा में कोई व्यवधान न हो। इसके लिए निरंतर प्रयास में जुटे रहते हैं।