OPINION: खरगे वाली गुगली से क्या 2024 जीत पाएगा विपक्ष का I.N.D.I.A
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर हाल ही में विपक्षी दलों के I.N.D.I.A गठबंधन की मीटिंग दिल्ली में हुई। इस मीटिंग में कांग्रेस अध्यक्ष खरगे को गठबंधन का चेहरा बनाने का प्रस्ताव दो दलों की ओर से आया। खरगे क्या गठबंधन के लिए वह चेहरा हैं जिसकी तलाश की जा रही है। अक्सर जो सवाल पूछे जा रहे हैं क्या उसका जवाब मिल गया है।
हाइलाइट्स
- खरगे को 2024 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होना चाहिए, उठी मांग
- क्षेत्रीय दलों के सामने कई सवाल, खरगे क्या पूरे विपक्ष को कर पाएंगे एकजुट
- राहुल गांधी को लेकर सवाल, 2024 में गठबंधन की क्या होगी रणनीति
हाल ही में विपक्षी दलों के I.N.D.I.A गठबंधन में यह प्रस्ताव आया कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को 2024 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होना चाहिए। यह प्रस्ताव जोखिम भरा है या एक बेहतर रणनीति? पहली नजर में 81 वर्षीय खरगे को आगे करने का विचार एक पुराना आइडिया लगता है। क्या पहले के युग का कोई अनुभवी व्यक्ति आज की अपेक्षाओं से मेल खा सकता है? लगातार कई चुनौतियों का सामना कर रहे विपक्ष के लिए, यह एक संभावित विचार है। हालांकि खरगे को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने को सही तरीके से पेश किया गया तो यह कम से कम विपक्ष को मतदाताओं के सामने एक नया नैरेटिव गढ़ने का मौका हो सकता है। शीतकालीन सत्र में विपक्ष के सांसदों का निलंबन, केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई, राज्यों में हार के बाद निराशा के बीच बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खरगे ‘गुगली’ फेंकी है।
खरगे ने स्वयं इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है, और उनकी उम्मीदवारी में कुछ खामियां नजर आती हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ और गांधी परिवार के वफादार खरगे भारत के शहरी मध्यम वर्ग को आकर्षित नहीं कर सकते। ऐसे देश में जहां 65% लोग 35 साल से कम उम्र के हैं। खरगे करिश्माई नेतृत्व के लिए नहीं जाने जाते। हिंदी पट्टी में कांग्रेस सबसे कमजोर है और कर्नाटक से आने वाले खरगे हिंदी पट्टी के नेता नहीं हैं, भले ही वह धाराप्रवाह हिंदी बोलते हैं। वह एक गंभीर, कम आवाज वाले बुजुर्ग राजनेता जैसे व्यक्ति हैं। फिर भी उनकी उम्र और वरिष्ठता उन्हें इंडिया गठबंधन में बढ़त दिलाती है, जिसकी एकता पर सवाल है।
मध्य प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को बाहर रखा। छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी ने तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निशाना साधा था। दिल्ली में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी पर शराब घोटाले में फंसने का आरोप लगाया है। पंजाब में कांग्रेस ने AAP पर उसे बर्बाद करने की कोशिश का आरोप लगाया है। केरल में, वामपंथी और कांग्रेस आमने-सामने हैं, और बंगाल में, तृणमूल और वामपंथी कट्टर दुश्मन हैं। 2014 और 2019 के चुनाव में एक पार्टी को बहुमत देकर मतदाताओं ने स्थिरता की इच्छा का संकेत दिया है। खरगे के चेहरे के साथ एक असमान इंडिया गठबंधन सर्वसम्मति से निर्णय की एकजुटता की भावना पेश कर सकता है।
इन सबके बीच खरगे की कहानी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। उनका जन्म गरीबी में हुआ उनके पिता एक मिल मजदूर और यूनियन नेता थे। सात साल के लड़के के रूप में उन्होंने 1940 में हैदराबाद राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों में अपनी मां और बहन को जिंदा जलते हुए देखा था। बौद्ध धर्म अपनाने वाले एक दलित के रूप में, खरगे ने शिक्षा प्राप्त करने और वकील बनने के लिए कई बाधाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी। आज कांग्रेस गरीब, पिछड़े और आदिवासी समुदायों के बीच समर्थन खो रही है जो कभी उसका आधार थे। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में 98 एससी-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में से, बीजेपी ने 57 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस केवल 40 सीटें जीत पाई। 2018 में, बीजेपी ने इनमें से 32 सीटें और कांग्रेस ने 45 सीटें जीती थीं। खरगे की कष्टदायक जीवन कहानी एक मैसेज देने का काम कर सकती है। जाति जनगणना जैसे विचारों के बजाय खरगे की कहानी भारत के सबसे गरीब और सबसे हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए आशा और न्याय का एक उदाहरण देने का अवसर है।
इंडिया गठबंधन में अलग-अलग नेताओं को अलग-अलग चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हाल की हार के बाद यह अहसास हो रहा है कि राहुल गांधी खास परिवार और एलीट क्लास की पहचान के चलते बीजेपी को भारी लाभ पहुंचा रहे हैं। उन्होंने बीजेपी के खिलाफ दो बार कांग्रेस का नेतृत्व किया और दो बार असफल रहे। ममता बनर्जी बंगाल में सबसे आगे हैं लेकिन उनकी क्षेत्रीय जड़ें उनकी ताकत और कमजोरी दोनों हैं। अरविंद केजरीवाल भविष्य का संभावित चेहरा थे, लेकिन अब दिल्ली शराब नीति मामलों में उलझ गए हैं। नीतीश कुमार ने विश्वसनीयता की परीक्षा पास करने के लिए कई बार दल बदले हैं और शरद पवार थके हुए दिख रहे हैं। खरगे ने स्वयं कभी भी अपनी जातीय पृष्ठभूमि पर जोर नहीं दिया और सांप्रदायिक दंगों में अत्यधिक व्यक्तिगत पीड़ा सहने के बावजूद ध्रुवीकरण वाली भाषा का इस्तेमाल नहीं किया। उन्हें कभी भी ‘नामदार’ के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता।
आज 24×7 मीडिया जहां यह सवाल उठता है कि चेहरा कौन उसमें खरगे को पेश करने से विपक्ष को वह कहानी मिल सकती है जिसकी उसे जरूरत है। यह मतदाताओं तक सामाजिक न्याय के संवैधानिक वादे और सभी नागरिकों की समानता के गांधीवादी-आंबेडकरवादी सपने को पहुंचा सकता है। 2024 में, विपक्ष बीजेपी को हरा पाए इसकी संभावना कम है लेकिन कम से कम उसके पास एक संदेश होगा।