उत्तर भारतीय घरों में संडे स्पेशल नाश्ते में, साउथ इंडियन कुज़ीन को स्पेशल पॉज़िशन मिल चुकी है. दक्षिण भारतीय व्यंजन, इडली, डोसा उत्तर भारत पहुंच कर स्ट्रीट फ़ूड भी बन चुका है. सड़क किनारे रेड़ी से लेकर पांच सितारा होटल तक, 20 रुपये से लेकर 500 रुपये प्लेट तक. जो भी हो एक निवाला जीभ पर रखो तो सीधे तृप्ति आत्मा को ही मिलती है. इडली, डोसा, वड़ा उत्तपम आदि के साथ लाल रंग की लहसुन के स्वाद वाली चटनी, और सफ़ेद नारियल चटनी के साथ ही बड़ी सी कटोरी में मिलता है सांबर (Sambar). चावल के साथ भी सांबर खाते हैं. सांबर बच गया हो तो उसे रोटी के साथ भी खाते हैं हम भारतीय.
सांबर आखिर आया कहां से?
कुछ दिनों पहले हमने आपको बताया था कि रसगुल्ला को लेकर दो राज्य, पश्चिम बंगाल और ओडिशा बरसों से लड़ रहे हैं. दोनों ही राज्यों में रसगुल्ले के बनने से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां हैं और अगर दोनों ही पक्षों की बात सुनी जाए तो दोनों ही सही लगते हैं.
सांबर के साथ भी कुछ-कुछ ऐसा ही है. यूं तो ये द्रविड़ियन खाने और ख़ासतौर पर तमिल खाने का अभिन्न हिस्सा है लेकिन इसका जन्म दक्षिण भारत में नहीं हुआ. बहुत से फ़ूड हिस्टोरियन्स सांबर की जन्मस्थली मराठा भूमि को मानते हैं. जी हां, आपने सही पढ़ा, मराठाओं की देन है सांबर. NDTV Food में छपे एक लेख के अनुसार, सांबर तंजावुर मराठाओं (Thanjavur Marathas) की देन है. पढ़कर यकीन करना मुश्किल है, हम समझ सकते हैं कि आखिर साउथ इंडियन खाने का अहम हिस्सा मराठाओं की रसोई से कैसे आ सकता है?
मराठाओं का दक्षिण भारत में प्रवेश
तंजावुर पर सदियों से चोल वंश का राज था. चोल वंश भारत के सबसे शक्तिशाली वंशों में से एक था और इनका राज्य आज के इंडोनेशिया तक फैला हुआ था. 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी के सहोदर भाई ने नायक से तंजावुर की बागडोर ले ली. ग़ौरतलब है कि 1798 तक आते-आते ये क्षेत्र भी अंग्रेज़ों के अधीन हो गया था. सराभोजी भोंसले द्वितीय उस समय यहां के राजा थे. उन्होंने अपने राज में कला, साहित्य और पाक कला को बढ़ावा दिया.
शिवाजी के पुत्र से जुड़े हैं सांबर के तार?
प्रचलित कहानियों की मानें तो छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे, संभाजी तक सांबर के तार जुड़े हैं. The Times of India में छपे एक लेख के अनुसार, एक बार संभाजी को ज़ोरों की भूख लगी थी. उन्हें महाराष्ट्र का व्यंजन, अमती (Amti) बेहद पसंद था, ये तुअर की दाल में इमली और गुड़ मिलाकर बनाई जाती है. संभाजी शाही भोजन कक्ष पहुंचे लेकिन वहां उन्हें कोई नहीं मिला.
कुछ देर इंतज़ार करने के बाद भी जब उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया तब वो ख़ुद रसोई घर पहुंच गए. छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र होने के बावजूद संभाजी रसोई में घुसे, क्योंकि मराठाओं ने झुकना नहीं सीखा था. संभाजी ने ख़ुद ही कुछ खाने का बनाने का निर्णय लिया. ग़ौरतलब है कि उस दिन रसोई में कोकुम ख़त्म हो गई थी. संभाजी को ये सूचना देने की किसी की हिम्मत नहीं हुई. राज सभा के विदूषक ने हिम्मत करके संभाजी को बताया और एक समाधान भी दिया. विदूषक ने अमती में इमली मिलाने का सुझाव दिया और ये संभाजी को जंच गया.
संभाजी के नाम से आया ‘सांबर’?
यहां ये बताना ज़रूरी है कि खानसामों ने संभाजी को दाल में इमली मिलाने से रोका था. उन्होंने कहा था कि इमली कभी दाल में नहीं मिलाई जाती लेकिन संभाजी स्वाद की परिकल्पना कर चुके थे और उन्होंने एक्सपेरिमेंट किया और हम सभी को सांबर मिला. ये व्यंजन राज दरबारियों को भी खिलाया गया और सबको इसका स्वाद इतना पसंद आया कि संभाजी के नाम पर ही व्यंजन का नाम सांबर रख दिया गया.
50 से ज़्यादा तरीके के सांबर
संभाजी ने भले ही सांबर पहली बार बनाया लेकिन बीतते समय के साथ सांबर की विधि में भी कई बदलाव आए हैं. आज लगभग 50 तरीके के सांबर बनते हैं लेकिन शेफ़्स का कहना है कि तंजावुर का सांबर कुछ अलग ही है. तंजावुर के ब्राह्मण सांबर की विधि भी बहुत मशहूर है, ये बिना प्याज़-लहसुन के बनाई जाती है और न ही ये काफ़ी मसालेदार होती है.
वेल्कम ग्रुप ग्रैजुएट स्कूल ऑफ होटल मैनेजमेंट में फूड सोशियोलॉजी और एंथ्रोपोलॉजी के एसोशिएट प्रोफ़ेसर, वसंतन सिगमणि का कहना है कि तमिलनाडु का सांबर, कर्नाटक के सांबर से अलग होता है. तमिलनाडु के सांबर में सूखा पाउडर इस्तेमाल होता है लेकिन कर्नाटक के सांबर में गीले पेस्ट का.
वसंतन ने कहा, ‘तमिलनाडु के शाकाहारी खाने में पहले सांबर और फिर रसम परोसा जाता है लेकिन कर्नाटक में पहले रसम और बाद में सांबर.’ तमिलनाडु के सांबर में स्थानीय सब्ज़ियां जैसे-सहजन, मूली और बैंगन डाला जाता है. केरल के सांबर में आलु, गाजर जैसी सब्ज़ियों का उपयोग होता है.
ये कहना ग़लत नहीं होगा कि सांबर मराठाओं ने बनाया लेकिन दक्षिण भारतीयों ने इसे पूरी तरह अपनाया.