लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. इन पंक्तियों को सच कर दिखाया है राजस्थान (Rajasthan) के चित्तौड़गढ़ के घोसुंदा के रहने वाले रामलाल भोई ने, जिन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इस बार नीट क्लियर किया है और अब अपने डॉक्टर बनने के सपने को पूरा करेंगे. रामलाल बाल विवाह से लेकर पढ़ाई के लिए मार तक खाई, लेकिन अपने जिद और जुनून से उन्होंने कामयाबी (Ramlal Bhoi passed NEET after child marriage) हासिल कर दूसरों के लिए मिसाल बन गए.
रामलाल ने 700 में से 632 अंक प्राप्त किए हैं. उनकी ऑल इंडिया रैंक 12901 हैं. वहीं अपनी कैटेगरी में उन्हें 5137 रैंक हासिल हुई है. रामलाल ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया, लेकिन कभी भी हार नहीं मानी और अपनी मंजिल को पा लेने तक नहीं रुकने वाले.
बाल विवाह, पढ़ाई के लिए खाई पिता से मार
गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले राम लाल के पिता मजदूरी करते हैं, जबकि मां प्रतिदिन चित्तौड़गढ़ चारा बेचने जाती हैं. रामलाल जब महज 11 वर्ष के थे तो उनकी शादी करा दी गई. वह इन सबसे अनजान थे. रामलाल पढ़ाई कर कुछ बनना चाहते थे, लेकिन उनके पिता नहीं चाहते थे कि बेटा दसवीं से अधिक पढ़ाई करे.
पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर रामलाल ने मेहनत के साथ पढ़ाई की. इसके लिए पिता की मार भी खाई, बावजूद इसके अंजाम की फ़िक्र ना करते हुए बुलंद हौसलों के साथ मेहनत करते रहे. रामलाल ने लगातार असफल होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और पांचवें प्रयास में नीट क्लियर कर बता दिया कि अगर हौसले बुलंद हों तो कुछ भी असंभव नहीं है. फिर परिस्थिति चाहे जैसी हो.
मीडिया से बातचीत करते हुए रामलाल बताते हैं कि जब छोटी सी उम्र में शादी हुई तो इस बात का कतई आभास नहीं था कि आखिर यह क्या होती है? परिवार के लोग नाच गाना कर रहे थे. मुझे यह सब देखकर अच्छा लग रहा था. उनकी पत्नी भी उनके हम उम्र है. विवाह के समय रामलाल कक्षा छठवीं का छात्र था. शादी के बाद तक़रीबन छह साल बाद पत्नी सुसराल में आकर रहना शुरू कर दिया. वह भी हाईस्कूल तक पढ़ी हुई है. नीट की परीक्षा से महज 6 महीने पहले ही रामलाल को एक बेटी भी हुई है.
नहीं पता था कैसे बने डॉक्टर
रामलाल ने अपने गांव के सरकारी स्कूल से हाईस्कूल की परीक्षा 74 प्रतिशत अंकों के साथ पास की थी. रामलाल कहते हैं कि करियर बनने के सपने के बारे में परिवार से बात करना तब बेईमानी थी. बावजूद इसके किसी तरह आगे की पढ़ाई के लिए उदयपुर गया. वहां जाकर नीट और बॉयोलॉजी सब्जेक्ट के बारे में पता चला. इससे पहले उसे डॉक्टर कैसे बनना है इसका पता नहीं था.
वह नहीं जानता था कि डॉक्टर बनने के लिए नीट जैसी भी कोई परीक्षा क्लियर करनी होती है. बहरहाल, उदयपुर के एक कॉलेज में एडमीशन लेने के बाद रामलाल ने बॉयोलॉजी से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की. वहां समाज कल्याण विभाग अम्बेडकर छात्रावास में रहकर पढ़ाई की.
कच्चे घर में रहते हैं
बता दें कि रामलाल का घोसुंदा गांव में भेड़च नदी के किनारे कच्चा घर है. गांव के सरकारी नल से पानी भरकर परिवार प्यास बुझाता है. गांव में बिजली तो है, लेकिन आधे समय वह गुल ही रहती है. पिता गणेश भोई दूसरे के खेतों में काम करते हैं. उनका मजदूर कार्ड बना हुआ है, जिसकी वजह से जैसे तैसे करके गुजारा हो जाता है. रामलाल पांच भाई-बहन हैं. जिनमें से दो बहनों की शादी हो गई है.
वहीं बेटे की सफलता के बाद पिता गणेश भी पढ़ाई के महत्व को समझने लगे हैं. उनका कहना है कि बेटियों को पढ़ाने के लिए समाज सख्त खिलाफ है. बेटे ने हमें पढ़ाई का महत्व बताया. शुरुआत में मुझे लगता लगता था कि पढ़ाई की इतनी भी क्या जरूरत है, लेकिन जब समझ आया तो रामलाल की इच्छा के अनुसार उसे पढ़ने दिया. अब बेटा डॉक्टर बनने जा रहा है. इस बात से खुश हूं. उनका कहना है कि छोटी बेटियां पढ़ रही हैं. उन्हें भी खूब पढ़ाऊंगा.