मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करारी हार के बाद विपक्ष एक बार फिर हक्का-बक्का है कि आखिर जीती हुई बाजी कैसे हाथ से निकल गई? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे कार्यकाल के आखिरी महीनों में भी इतने लोकप्रिय कैसे हैं? इन सवालों के जवाब देश के बदले हुए मिजाज में ढूंढे जा सकते हैं जिनके कारक पीएम मोदी बने हैं।
हाइलाइट्स
- आर्टिकल 370 का खात्मा हो या अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, मोदी सरकार ने वादे पूरे कर दिए
- पहले बीजेपी के बहुत से नेता भी मानते थे कि ये वादे कभी पूरे नहीं किए जा सकेंगे, लेकिन ऐसा हुआ
- यही वजह है कि आज देश का मिजाज ही बदल चुका है, मोदी दूसरे कार्यकाल में भी लोकप्रिय हैं
पिछले हफ्ते लोकसभा चैंबर में ‘फ्रीलांस आंदोलनजीवियों’ के हंगामे ने संयोग से विपक्ष को कई बड़ी राजनीतिक हार से ध्यान हटाने में मदद की। पहला, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की जोरदार जीत का अंदाजा इंडिया गठबंधन के नेताओं ने नहीं लगाया था। खासकर कांग्रेस को उम्मीद थी कि ‘सेमीफाइनल’ की जीत से उत्साहित होकर वह अगले साल के आम चुनाव में जोर-शोर से मैदान में उतरेगी। अप्रत्याशित घटनाओं को छोड़ दें तो अब तक यही लग रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों के अंतिम चरण तक पूरे विपक्ष का चेहरा बुझा बुझा ही रहने वाला है।
दूसरा, विपक्षी खेमे में यह माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत की राजनीतिक मानसिकता में काफी बदलाव आया है। भाजपा ने 1991 से अपने चुनाव अभियानों में परमाणु हथियारों, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और समान नागरिक संहिता को लागू करने जैसे मुद्दों पर अपने विशेष इरादे को उजागर करने से शायद ही कभी परहेज किया हो। हालांकि, इन मुद्दों ने उसके कार्यकर्ताओं को जरूर प्रेरित किया, लेकिन मतदाताओं के लिए उसके प्रति व्यापक आकर्षण के बड़े कारण कांग्रेस का धुर विरोध और हिंदू गौरव के मिले-जुले विचारों पर आधारित है। वाजपेयी सरकार ने 1998 में भारत को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र बना दिया था, लेकिन एक अघोषित भावना थी कि भाजपा के अन्य तीन लक्ष्य अधूरे रहेंगे। दरअसल, 2004 में एनडीए सरकार की अप्रत्याशित हार हुई ही इसीलिए थी क्योंकि भाजपा के मूल मतदाताओं ने यह सोचकर वोट नहीं किया कि पार्टी अपनी विचारधारा के प्रति
प्रधानमंत्री मोदी को यह श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने असंभव को संभव बना दिया है। अनुच्छेद 370 के निरस्त करने पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार के लिए एक बड़ी जीत और विपक्ष के लिए उतना ही बड़ा झटका है, जो उम्मीद कर रहा था कि अदालतें 2019 के अगस्त में संसद के फैसले में प्रक्रियागत खामियां पाएंगी। हालांकि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को लेकर विवाद 1950 के दशक की शुरुआती वर्षों में ही शुरू हो गया था, लेकिन 1990 में हिंदुओं को कश्मीर घाटी से भगाए जाने के बाद अनुच्छेद 370 एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया। भाजपा का मानना था कि अलगाववाद का भावनात्मक आधार अनुच्छेद 370 में निहित है जबकि ‘धर्मनिरपेक्ष’ दलों को लगता था कि क्षेत्रीय स्वायत्तता की अतिरिक्त खुराक से कश्मीर को खुश रखा जा सकता है। साथ ही, पूरे राजनीतिक वर्ग में एक अघोषित विश्वास था कि ‘अस्थायी प्रावधान’ होने के बजाय अनुच्छेद 370 कहीं जाने वाला नहीं है। जब चार साल पहले अमित शाह ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने वाला विधेयक पेश किया तो भाजपा के खेमे में भी खुशी और अविश्वास की लहर दौड़ गई।
22 जनवरी को जब मोदी अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा करेंगे तो भारत के बड़े हिस्से में ऐसी ही भावना उमड़ती दिख सकती है। जिन लोगों ने या तो 1990 के दशक की कार सेवाओं में भाग लिया था या पिछले चुनावों में भाजपा को वोट देकर आंदोलन का समर्थन किया था, उन्हें वास्तव में विश्वास नहीं था कि वो अपने जीवनकाल में भव्य राम मंदिर देख पाएंगे। यहां तक कि भाजपा के भीतर भी एक वर्ग ऐसा था जिसे लगता था कि पार्टी के हिंदुत्व राग सिर्फ चुनावी स्टेंट है जबकि शासन का खेल बिल्कुल अलग है। लेकिन पिछले नौ वर्षों में और खासकर 2019 में फिर से चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार ने कभी वैचारिक रुख और कुशल शासन के बीच माने जाने वाले अंतर को नाटकीय तौर पर पाट दिया।
कश्मीर के अब पूरी तरह से भारतीय संघ में विलय होने और अगले महीने राम मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए तैयार होने के साथ यह उम्मीद भी है कि समान नागरिक संहिता और नागरिकता अधिनियम के लागू होने में अब ज्यादा देरी नहीं होगी। राजनीति के क्षेत्र में इसका प्रभाव और भी व्यापक है। संभावनाओं को फिर से परिभाषित करने में मोदी सरकार ने उस चीज के आकर्षण को काफी बढ़ा दिया है जिसे लालकृष्ण आडवाणी ‘राजनीतिक हिंदू’ कहा करते थे। जो कभी एक गुप्त भावना के रूप में देखा जाता था, वह अब सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में फैल चुका है। इसे पिछले महीने विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में कांग्रेस के दिग्गजों ने समझा था, इसलिए उन्होंने हिंदू धार्मिक भावनाओं को सहलाने की कोशिश की।
यह तरीका चुनावी रूप से सफल नहीं रहा, लेकिन इतना जरूर स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस इकोसिस्टम द्वारा पोषित वामपंथी शैली की धर्मनिरपेक्षता अपनी समाप्ति के करीब है। देश के मिजाज में बदलाव ही वह मुख्य कारण हो सकता है कि विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 के निरस्त करने का विरोध यह कहकर किया कि इसकी प्रक्रिया गलत थी, वह निरस्त करने के फैसले का पुरजोर विरोध नहीं कर सका। इसी तरह, विपक्ष अगले महीने अयोध्या में होने वाले भव्य आयोजन का विरोध भी इसके केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रखे जाने को आधार बनाकर ही कर सकता है। 1990 के दशक से अब हुआ बदलाव स्पष्ट है, जब कश्मीर घाटी से लाखों हिंदुओं के पलायन को मानने से भी नकार दिया गया था और राम मंदिर की मांग जानबूझकर न्यायिक प्रक्रिया में उलझा दी गई थी। तब का दौर उभरते भारत का था, आज भारत उभर चुका है।