Bisleri Success Story: दवा बनाने वाली एक कंपनी, जिसने बोतल में बंद पानी बेच दिया, लोगों ने कहा था पागल

जब लोग आपको कॉपी करने लगें तब समझ जाइए कि आप सफल हो चुके हैं. ठीक उसी तरह जिस तरह पानी बोतल कंपनी बिसलेरी सफल हो चुकी है. आप अगर बिसलेरी की बोतल खरीदने जा रहे हैं तो आपको अपनी आंखें खुली रखनी पड़ती हैं क्योंकि आपके हाथ में पड़ने वाली बोतल Bisleri की जगह Belsri, Bilseri, Brislei या Bislaar भी हो सकती है. यही वजह है कि बिसलेरी ने अपनी टैग लाइन कुछ इस तरह रखी है.

‘समझदार जानते हैं कि हर पानी की बोतल Bisleri नहीं’

Fake Bisleri Logo Bisleri

वाटर बॉटल इंडस्ट्री में 60% की हिस्सेदारी रखने वाला ये पानी ब्रांड आज देश भर में लोकप्रिय है. लोग दुकान पर जा कर ये नहीं कहते कि पानी की बोतल देना, लोग बिसलेरी ही मांगते हैं. इतने चर्चित और लोकप्रिय ब्रांड की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है. तो चलिए जानते हैं कि भारत जैसे देश में पानी खरीद कर पीने की शुरुआत आखिर हुई कैसे.

दवा कंपनी थी बिसलेरी

Bisleri Campaign Bisleri

मुंबई के ठाणे से शुरू हुआ बिसलेरी वाटर प्लांट भले ही देसी हो लेकिन बिसलेरी नाम और कंपनी पूरी तरह विदेशी थी. और तो और ये कंपनी पानी बेचती भी नहीं थी. ये बेचती थी मलेरिया की दवा और इस मलेरिया की दवा बेचने वाली बिसलेरी कंपनी के संस्थापक थे एक इटैलियन बिज़नेसमैन. जिनका नाम था Felice Bisleri. Felice Bisleri के एक फैमिली डॉक्टर हुआ करते थे जिनका नाम था डॉक्टर रोजिज. रोजिज पेशे से तो डॉक्टर थे लेकिन दिमाग उनका पूरा बिजनेसमैन वाला था. कुछ अलग करने की सनक उनमें शुरू से थी. ये साल 1921 था जब बिसलेरी के मालिक Felice Bisleri इस दुनिया को अलविदा कह गए. उनके पीछे छूट गई बिसलेरी कंपनी को नए मालिक के रूप में मिले डॉक्टर रोजिज.

रोजिज़ ने दिया बिज़नेसमैन को पानी बेचने का Idea

Bisleri Camel Bisleri

रोजिज के एक बड़े ही अच्छे मित्र हुआ करते थे, जो पेशे से वकील और बिसलेरी कंपनी के लीगल एडवाइज़र भी थे. उसका एक बेटा था खुशरू संतुक. खुशरू अपने पिता की तरह ही वकालत करना चाहते थे इसीलिए तो उन्होंने गवरमेंट लॉ कॉलेज से लॉ की पढ़ाई पूरी की थी लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनके पिता के दोस्त का एक आइडिया उनकी ज़िंदगी बदल देगा.

भारत अभी अभी आज़ाद हुआ था और देश में नए किस्म के व्यापार की डिमांड बढ़ रही थी. रोजिज के व्यापारी दिमाग ने इस बीच एक बिजनेस आइडिया खोज निकाला था. उन्होंने ने सोचा कि पानी का बिजनेस आने वाले दिनों में काफ़ी सफ़ल हो सकता है. हालांकि औरों के लिए ये सोच ठीक वैसी ही थी जैसे आज के समय में कोई कहे कि उसे ताजी हवा को पैकेट में बंद कर के बेचना है. इसके बावजूद रोजिज ने इस बिजनेस में वो देखा जो किसी को नहीं दिख रहा था. उन्होंने अपने इस बिजनेस आइडिया पर खुशरू संतुक को मना कर उनका समर्थन ले लिया.

ठाणे में लगा पहला वॉटर प्लांट

रोजिज के आइडिया को धरातल नसीब हुआ 1965 में. यही वो साल था जब खुशरू संतुक ने मुंबई के ठाणे इलाक़े में पहला ‘बिसलेरी वाटर प्लांट’ स्थापित किया. हालांकि खुशरू को उनके इस फैसले के लिए लोगों ने पागल तक घोषित कर दिया. आम लोगों के नजरिए से देखा जाए तो उन दिनों भारत जैसे देश में पानी बेचने का आइडिया किसी पागलपन से कम नहीं था. हाल ही में आजाद हो कर बंट चुके इस देश की आधी से ज़्यादा जनता अपनी दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में जुटी रहती थी ऐसे में भला उन दिनों कोई 1 रुपये में पानी की बोतल खरीद कर क्यों पीता ? आज बिसलेरी की वाटर बॉटल 20 रुपये में आराम से बिकती है लेकिन तब इसका 1 रुपये मूल्य भी बहुत ज़्यादा था. ऐसे में लोग खुशरू को पागल ही कह सकते थे लेकिन डॉक्टर रोजिज ने बहुत दूर की सोची थी. दरअसल उन दिनों मुंबई में पीने के पानी की गुणवत्ता बहुत ही ज़्यादा खराब थी. गरीब और आम आदमी तो किसी तरह इस पानी को पचा लेता था लेकिन अमीरों के लिए ऐसा पानी पचा पाना बहुत मुश्किल हो गया था. ऐसे में संपन्न लोगों के लिए ये पानी किसी अमृत से कम नहीं था. यही वजह थी कि बिसलेरी के मालिक डॉक्टर रोजिज बिसलरी वाटर बिजनेस की सफलता को लेकर पूरी तरह निश्चिंत थे.

महंगे होटलों से निकल कर बिसलेरी पहुंचा आम लोगों तक

बिसलेरी वाटर और बिसलेरी सोडा के साथ बिसलेरी कंपनी ने इंडियन मार्केट में कदम रखा. शुरुआती दिनों में बिसलेरी के ये दोनों प्रोडक्ट केवल अमीरों की पहुंच तक ही सीमित थे और 5 सितारा होटल्स तथा महंगे रेस्टोरेंट में ही मिलते थे. कंपनी भी जानती थी कि अपने प्रोडक्ट्स को सीमित दायरे में रख कर सफलता नहीं पा सकेगी इसलिए कंपनी ने धीरे धीरे अपने प्रोडक्ट्स को आम लोगों तक पहुंचाना शुरू किया. आम लोगों की पहुंच तक आने के बाद भी ज़्यादातर लोग इस कंपनी का सोडा खरीदना ही पसंद करते थे. यही वजह रही कि खुशरू संतुक को पानी का बिजनेस कुछ खास नहीं जमा. अब वो इस ब्रांड को बेचने का मन बनाने लगे.

पार्ले ने दिया बिसलेरी को जीवनदान

खुशरू संतुक द्वारा बिसलेरी कंपनी बेचे जाने की खबर इंडियन बिजनेस वर्ल्ड में जंगल की आग की तरह फैल गई और इसी तरह ये खबर पहुंची ‘पार्ले कंपनी’ के कर्ताधर्ता  ‘चौहान ब्रदर्स’ के पास. बस फिर क्या था बिसलरी वाटर प्लांट की शुरुआत के केवल 4 साल बाद यानी 1969 में बिसलेरी को रमेश चौहान ने 4 लाख रुपये में ख़रीद लिया. इसके बाद देश भर में अपने 5 स्टोर के साथ बिसलेरी पार्ले की हो गई. ये 1970 का दशक था जब रमेश चौहान ने बिसलेरी सील्ड वाटर के दो ब्रांड नए ब्रांड बबली और स्टिल के साथ बिसलेरी सोडा को मार्केट में उतारा. सार्वजनिक स्थानों की जान बनी बिसलेरी

पार्ले की रिसर्च टीम लगातार इस खोज में लगी थी कि आखिर कैसे बिसलेरी को आम लोगों तक पहुंचाया जाए. कोई भी प्रोडक्ट लोगों की पसंद से सफल नहीं होता बल्कि इसे सफलता मिलती है लोगों की जरूरत से. पार्ले की रिसर्च टीम ने भी लोगों की ऐसी ही एक जरूरत को खोज निकाला. उन्होंने पाया कि देश भर के रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, सड़क किनारे ढाबे जैसे अन्य कई सार्वजनिक स्थानों पर पीने के पानी की क्वालिटी अच्छी नहीं होती. इस वजह से लोग मजबूरी में प्लेन सोडा ख़रीद कर पीते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए पार्ले ने लोगों तक साफ पानी पहुंचाने के लिए अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स की संख्या बढ़ा दी. प्रोडक्ट की बिक्री बढ़ाने के लिए पार्ले ने ब्रांड प्रमोशन का सहारा लिया, पेकिंग में कई तरह के बदलाव किए. इतना कुछ करने के बाद बिसलेरी वाटर मार्केट में अपनी रफ्तार पकड़ने लगा.

जिस आइडिया को कभी पागलपन कहा गया था उस आइडिया से बिसलेरी ने भारत की सील्ड वाटर बॉटल इंडस्ट्री पर 60% हिस्सेदारी पा ली है. अपने 135 प्लांट्स के दम पर बिसलेरी रोज़ाना 2 करोड़ लीटर से भी अधिक पानी बेचने वाली कंपनी बन गई है. बिसलेरी अपने प्रोडक्ट को 5000 से अधिक डिस्ट्रीब्यूटर्स ट्रकों और 3500 डिस्ट्रीब्यूटर्स के ज़रिए साढ़े तीन लाख रिटेल ऑउटलेट्स तक पहुंच रही है. 2019 में भारत में बिसलेरी की मार्केट वैल्यू 24 बिलियन डॉलर थी, माना जा रहा है कि 2023 तक सिकी मार्केट वैल्यू 60 बिलियन डॉलर होगी.