ताने सुने मगर हार नहीं मानी, ₹1500 और एक साइकिल से शुरू किए बिजनेस को मेहनत से बनाया करोड़ों का

इंसान के अंदर इतनी क्षमता होती है कि वो असंभव दिखने वाले काम को भी संभव कर सकता है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की एक महिला ने भी कुछ ऐसा ही किया है. इस महिला ने पंद्रह सौ रुपए और एक साइकिल की मदद से मात्र 3 साल में अपने व्यापार को करोड़ों तक पहुंचा दिया है. उनके इस जज्बे को सलाम करते हुए प्रदेश की सरकार ने उन्हें गोरखपुर रत्न से सम्मानित किया है.

चलिए जानते हैं कि कैसे इस महिला ने बेहद कम संसाधनों में शुरू किए अपने छोटे से व्यापार को करोड़ों तक पहुंचाया और अपने जैसी अन्य महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गईं.

कौन हैं संगीता पांडेय?

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ये संघर्ष और सफलता की कहानी है गोरखपुर के झरणाटोला की रहने वाली संगीता पांडेय की. संगीता उन्हीं हालातों में जी रही थीं, जिन हालातों में देश की लाखों महिलाएं जीती आई हैं. लेकिन उन्होंने आम महिलाओं की सोच से ऊपर उठकर कुछ करने की ठानी. उन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए केवल सपने ही नहीं देखे बल्कि उसके लिए खूब संघर्ष भी किया.

पढ़ाई पूरी करते ही हो गई शादी

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NBT की रिपोर्ट के अनुसार गोरखपुर के पादरी बाजार स्थित शिवपुर सहबाजगंज में मिठाई की दुकानों में इस्तेमाल किए जाने वाले फैंसी और पैकेजिंग डब्बे बनाने वाला एक कारखाना चलाने वाली संगीता पांडेय सैनिकों के परिवार से संबंध रखती हैं. उनके पिता और दोनो भाई सेना में हैं. वह हमेशा से बहुत महत्वाकांक्षी रही हैं. अपनी प्रारंभिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय से प्राप्त करने के बाद उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई पूरी होने के बाद ही उनकी शादी कर दी गई. विवाह के बाद उन्हें लगा कि उनकी इच्छाओं को दबाया जा रहा है.

कुछ अलग करने की ठानी

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इसके बाद संगीता ने इस विषय में सोचने लगीं कि उन्हें कुछ करना चाहिए, जिससे कि वो खुद को साबित कर सकें. लेकिन सवाल ये था कि आखिर वो करें क्या? उनको अपने इस सवाल का जवाब तब मिला जब उन्होंने एक दिन मिठाई की दुकानों में इस्तेमाल होने वाले डब्बे को देखा. यहीं से उन्हें इन डिब्बों का कारोबार करने का आइडिया आया.

ऐसे मिला पहला ऑर्डर

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हालांकि संगीता के लिए ये रास्ता आसान नहीं था लेकिन उनको खुद पर पूरा भरोसा था. इसी भरोसे के दम पर वह गोलघर की सबसे प्रतिष्ठित दुकान में पहली बार आर्डर के लिए पहुंची. इस दौरान लोगों को ये आश्चर्य हुआ कि एक औरत ये काम कैसे कर पाएगी. उन्हें लगा कि एक महिला इस कारोबार के लिए वो मेहनत नहीं कर पाएगी जो एक पुरुष कर सकता है. इसके बावजूद वो अपनी साइकिल पर ऑर्डर की तलाश करती रहीं.

एक दिन दुकान के मालिक ने उनसे कहा कि आप इतनी मेहनत कर रही है इसलिए मैं आपको एक ऑर्डर देता हूं. संगीता ने इस काम को बहुत ही शिद्दत से किया और इस काम को चुनौती की तरह लेते हुए पहली बार 20 डिब्बे लेकर उनकी दुकान पर पहुंची. उन्हें वह डिब्बे पसंद आए और तब से लेकर आज तक संगीता वहां डिब्बे सप्लाई कर रही हैं.

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संगीता अपने साथ लगभग डेढ़ सौ महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं. संगाता के अनुसार उन्होंने अपने बटुए में रखे 1500 रुपए और साइकिल से अपनी मंजिल को पाने के लिए कारोबार की शुरुआत की. शुरुआत में उन्होंने अपने ससुराल पक्ष से कोई सहयोग नहीं मिला. उनके सिपाही पति और सासुरवाले इस काम में उनके साथ नहीं थे. समाज में भी लोग उन्हें ताने मार रहे थे लेकिन संगीता ने अपने जुनून के आगे किसी की नहीं सुनी. वह अपने संघर्ष पथ पर बढ़ती रही. आज संगीता करोड़ों रुपए के कारोबार की मालकिन हैं.