Jack The Baboon, Jack The Signalman: कहानी उस लंगूर की जिसने बिना गलती किए 9 साल तक की रेलवे में नौकरी, सैलरी के साथ मिलती थी बियर

बंदर और लंगूर उन जानवरों की श्रेणी में आते हैं जिनकी होशियारी देख कर इंसान ये कहने लगे कि बंदर हमारे पूर्वज हैं. सामने से देखे हुए बंदर नाच हों या फिर आज कल सोशल मीडिया पर वाइल्ड लाइफ वाले रील्स हमने हमेशा इन होशियार जानवरों को इंसान की हूबहू नकल उतारते हुए देखा है. वैसे नकल उतारने तक तो ठीक है लेकिन अगर कोई कहे कि बंदर/लंगूर इंसानों की तरह सरकारी नौकरी करना भी जानते हैं तो इस बात पर शायद ही किसी को यकीन हो. लेकिन हैरान करने वाली बात है कि ये सच है.

Jack The Baboon की कहानी

जी हां, इतिहास में एक ऐसे लंगूर का नाम भी दर्ज है जिसने रेलवे में सिग्‍नलमैन की नौकरी की. वो कुछ दिन या महीने नहीं बल्कि पूरे नौ साल तक इस लंगूर ने सिग्‍नल बदलने का काम किया. कमाल की बात है कि जहां इंसान भी कोई ना कोई गलती कर जाता है वहां इस लंगूर ने अपने पूरे कार्यकाल में एक भी गलती नहीं की. बता दें कि इस बुद्धिमान लंगूर का नाम जैक (Jack The Baboon) था. वहीं, इस लंगूर को इसकी नौकरी के बदले वेतन भी मिलता था.

कैसे एक लंगूर बना रेलवे में सिग्नलमैन?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जैक दक्षिण अफ्रीका की एक रेलवे कंपनी के लिए केपटाउन शहर के पास स्थित उइटेनहेज रेलवे स्‍टेशन पर काम करता था. ये कंपनी वेतन के रूप में उसे प्रतिदिन के हिसाब से 20 सेंट और हर सप्‍ताह बीयर की आधी बोतल देती थी. जैक लंगूर को ये नौकरी मिलने की कहानी भी दिलचस्प है. सोचने वाली बात है कि कोई कंपनी किसी लंगूर को इतने जोखिम भरे काम पर कैसे रख सकती है. जैक को रेलवे मे नौकरी दिलाने की ये कहानी शुरू हुई 1880 के दशक में. उस दौर में जेम्स एडविन वाइड (James Edwin Wide) नामक एक शख्स उइटनेज रेलवे स्‍टेशन पर सिग्नलमैन के रूप में काम कर रहा था.

लंगूर को बैलगाड़ी चलाते देख रह गए हैरान

उसके जीवन की दशा उस समय बदल गई जब एक हादसे में उसे अपनी दोनों टांग गंवानी पड़ीं. वैसे तो वो लकड़ी की नकली टांग के सहारे चल फिर रहे थे लेकिन इतने सक्षम नहीं थे कि अपने घर से कार्यस्‍थल तक आसानी से आ जा सकें. इसी दौरान उन्हें एक दूत के रूप में एक लंगूर दिखा. ये लंगूर पहली ही नजर में किसी का भी ध्यान आकर्षित कर लेने वाला था. जी हां, एडविन भी उसे पहली बार देख अचंभित हो गए क्योंकि वो लंगूर बाजार में सामान से भरी हुई बैलगाड़ी चला रहा था. ये किसी के लिए भी हैरान कर देने वाली बात थी कि एक लंगूर बैलगाड़ी चला कर बाजार में सामान सप्लाई कर रहा था.

एडविन उस लंगूर को अपने साथ ले आए और उसका नाम रखा जैक. उन्होंने कुछ दिनों जैक को जांचा परखा और फिर उसे अपना निजी सहायक बनाते हुए उसे उसे ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी. कुछ दिनों में ही जैक घर के काम करने लगा. उसके अनेक कामों में जेम्‍स को छोटी ट्राली में बैठाकर रेलवे स्‍टेशन लाना-ले जाना भी शामिल था. इस बीच भी जैक खाली नहीं बैठता बल्कि जेम्‍स जो भी काम करता, उसे बड़ी गौर से देखता रहता और जल्दी ही उस काम को सीख जाता.

तेजी से सीखता था हर काम

बात यहां तक पहुंच गई कि कुछ ही दिनों में जैक जेम्‍स द्वारा रेलवे स्‍टेशन पर किए जाने वाले सिग्‍नलिंग के काम के गुर भी सीख गया. एडविन ने जैक की ट्रेनिंग बढ़ा दी, जिसके बाद वह इतने अच्छे तरीके से प्रशिक्षित हो गया कि एक सिग्‍नलमैन का पूरा काम अच्छे से करने लगा. हालांकि एक लंगूर द्वारा रेलवे के ऐसे काम करना यात्रियों के लिए जोखिम भरा कदम साबित हो सकता था. एडविन जैक को ज्यादा दिन छुपा कर भी काम नहीं करा सकता था. और फिर वो दिन आ ही गया जब एक दिन एक ट्रेन के यात्री ने खिड़की से एक लंगूर को सिग्नल पर गियर्स बदलते देख लिया. यात्री को ये बात सही नहीं लगी और उसने तुरंत रेलवे कंपनी के अधिकारियों से चिट्ठी लिख इसकी शिकायत कर दी.

अधिकारियों ने लिया टेस्ट

शिकायत मिलते ही रेल अधिकारी मामले की जांच करने पहुंचे लेकिन वे ये देख कर हैरान रह गए कि जैक लंगूर एक प्रशिक्षित सिग्‍नलमैन की तरह ही काम कर रहा था. इसके बाद जैक का वैसे ही टेस्ट लिया गया जैसे एक इंसान का सिग्नलमैन की पोस्ट के लिए लिया जाता था. कमाल की बात थी कि जैक परीक्षा में पास हो गया. जैक सिग्नल से जुड़े हर काम को अच्छे से जानता था. इसके साथ ही वो ये काम करते हुए काफी मेहनत और सतर्कता भी बरतता था.

9 साल किया रेलवे में काम, मिलता था वेतन

उसके ये सारे गुण देखते हुए रेलवे कंपनी ने जैक को रेलवे में सिग्‍नलमैन बना लिया. इसके साथ ही सैलरी के रूप में रोजाना 20 सेंट के साथ उसे साप्ताहिक बीयर की आधी बोतल का भुगतान किया जाना भी तय हुआ. इसके बाद जैक ने उस रेलवे कंपनी के लिए 1881 से लेकर 1890 तक सिग्‍नलमैन के तौर पर काम किया. खास बात यह रही कि इस अवधि में उसने एक भी गलती नहीं की. 1890 में भी उसकी नौकरी ना जाती अगर तपेदिक के कारण उसकी मौत ना हुई होती.

जैक की बुद्धि और उसके सीखने की लगन देखते हुए उसकी मृत्‍यु के बाद उसकी खोपड़ी को दक्षिण अफ़्रीकी शहर ग्राहमस्टाउन के अल्बानी संग्रहालय रख दिया गया. संग्रहालय में यह खोपड़ी आज भी रखी है. इसके अलावा उइटेनहेज रेलवे स्टेशन की एक दीवार को जैक और उसके साथी जेम्स वाइड को समर्पित किया गया है