बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के शिवदासपुर गांव में जन्मे मुकेश कुमार का जीवन फर्श से अर्श तक की कहानी बयान करता है. वह एक छोटे से गांव में गरीबी की मार झेल रहे परिवार से उठ कर दिल्ली में करोड़ों का अपना बिजनेस खड़ा करना आसान नहीं था. उनका गांव मुजफ्फरपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर है. मुकेश जब छटे थे तब ना उनके गांव में बिजली थी और न सड़क. पूरा इलाका 6 महीने बाढ़ के पानी में डूबा रहता था.
गरीबी में पले-बढ़े, आज हैं करोड़ों के मालिक
दैनिक भास्कर के नीरज झा कि रिपोर्ट के अनुसार आज एम-सानवी रियल एस्टेट नाम की कंपनी खोल फ्लैट बनाने, खरीदने, बेचने और रेंट पर देने का काम करने वाले मुकेश सालाना 20 करोड़ से अधिक कमाते हैं. लेकिन एक समय था जब वह परिवार के साथ एक कमरे के फूस के घर में रहते थे. तेज आंधी आने पर मन कांप जाता था कि कहीं घर ना गिर जाए. उनका परिवार उनके दादा की मुट्ठी भर जमीन पर खेती कर चलता था. उसी खेती से थोड़ा बहुत अनाज उपजता, उसी से उनके घर का चूल्हा जलता और उनके मां-बाबूजी, एक बहन, एक वह खुद और एक भाई के साथ 5 लोगों का पेट भारतया.
मुकेश के पिता पढ़े-लिखे नहीं थे, जिस वजह से उन्हें कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली. वह 7वीं-8वीं पास थे. जैसे-तैसे पूरे परिवार का गुजर बसर चला रहे थे. हर साल बाढ़ की मुसीबत झेलनी पड़ती थी. मुकेश ने बहुत गरीबी देखी है. मुकेश ने बताया कि ‘अभी भले ही उनके पास शानदार और महंगी कार है लेकिन एक समय था जब उनके पास साइकिल तक नहीं थी. उनकी किस्मत दिल्ली आने के बाद बदली. जब वह दिल्ली आए तो उन्होंने एक पुरानी मोटरसाइकिल खरीदी. कई सालों तक छोटी वाली ऑल्टो से सफर किया मगर आज बहुत मेहनत के बाद उनके पास बड़ी गाड़ी है.’
पिता थे अनपढ़ मगर बच्चों को पढ़ाना चाहते थे
मुकेश ने आगे बताया कि वह पढ़ाई नहीं करते तो यहां तक नहीं पहुंचते. उनके पिता ने पढ़ाई नहीं की थी, इसका दर्द उन्हें पता था. वो चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़-लिख लें. उनकी शुरुआती पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल में ही हुई. उस समय उनके पाद किताब-कॉपी खरीदने के पैसे भी नहीं होते थे. किसी से मांगकर, उधार लेकर उनकी पढ़ाई चल रही थी. जब वह थोड़े बड़े हुए तो उनके पिता को लगा कि अगर वह शहर में रहकर पढ़ें, तो जिंदगी में कुछ बेहतर कर सकते हैं. इसके बाद उनके पिता ने उन्हें पढ़ने के लिए शहर भेज दिया. उन्होंने शहर में 1200 रुपए महीने पर मजदूरी करनी शुरू कर दी.
लोग मारते थे ताने
जब वह शहर में रहकर पढ़ते थे तो गांव जाने पर लोग उन्हें ताने देते कि शहर में रहकर ये लाट साहेबी करेंगे, कलेक्टर बनेंगे. लोगों का कहना था कि अनपढ़ बाप तो खुद कलेक्टर बनगया अब बेटा कलेक्टर बनेगा. यह सब सुनकर वह अंदर ही अंदर टूट जाते थे. इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा और वह 10वीं में फेल हो गए. फेल होने के बाद तो उन्हें और भी ताने सुनने को मिले. लोग उन पर आरोप लगाते कि वह शहर जा कर आवारागर्दी करते होंगे इसीलिए फेल हो गए.
दसवीं में हुए फेल फिर की जमकर मेहनत
मुकेश ने एक बार फिर से परीक्षा देने की ठानी और 1996-97 में उन्होंने 10वीं की परीक्षा पास कर ली. इसके बाद उन्होंने आगे पढ़ने की ठान ली और अपने पढ़ाई का खर्च जुटाने के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगे. मुकेश MBA करना चाहते थे और उनके पिता ने उनकी ये इच्छा अपनी जमीन बेच कर पूरी करने का फैसला किया. उनके पास मात्र एक-दो हजार स्क्वायर फीट खेती की जमीन थी, उसे भी उन्होंने बेटे को MBA करवाने के चक्कर में बेच दिया. हालांकि समस्या फिर वहीं की वहीं रही, पहले साल की फीस तो जमीन बेचकर निकल गई थी लेकिन अब दूसरे साल की फीस का इंतजाम करना था. फीस के लिए अब जमीन नहीं बची थी. जिसके बाद मुकेश ने एजुकेशन लोन लेकर पढ़ाई कंप्लीट की.
MBA करने के बाद भी नहीं बदली किस्मत
पिता को उम्मीद थी कि बेटे की जिस पढ़ाई के लिए उन्होंने जमीन बेच दी उससे उनके दिन बदल जाएंगे. बेटे को अच्छी नौकरी मिलेगी. लेकिन 2008 में जब ग्लोबल मंदी आई तो मार्केट में जॉब नहीं बची. बड़ी मुश्किल से उन्हें 12 हजार महीने पर एक कंपनी में काम मिला. ऊपर से ये काम MBA की पढ़ाई से अलग था. कुछ साल काम करने के बाद उन्हें मेडिकल रिप्रजेंटेटिव यानी MR की नौकरी मिली. इसी दौरान किसी ने सलाह दी कि मैं वह अच्छा बोलते हैं, उन्हें रियल एस्टेट के बिजनेस में जाना चाहिए. उस वक्त मुकेश नागपुर में थे और उन्होंने दिल्ली आकर नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी.
कितने धक्के खाने के बाद मिली सफलता
बहुत मुश्किल से उन्हें एक कंपनी में जॉब मिली, जहां सैलरी मात्र 14 हजार रुपए थी. तब तक मुकेश की शादी भी हो चुकी थी. जब मुकेश को थोड़ा एक्सपीरिएंस हुआ, तब उन्होंने सोचा कि कब तक वह इस तरह से धक्के खाते रहेंगे, उन्हें अपना काम शुरू करना चाहिए. उन्होंने फिर अपनी कंपनी शुरू कर दी. 2015-16 में उन्होंने दो लोगों के साथ मिलकर जिस कंपनी की शुरुआत की, उसी से उन्हें निकाल दिया गया. अपनी कमी, गलती सबसे सबक सीखकर उन्होंने अपने खुद के दमपर कंपनी शुरू की. आज समय ऐसा है कि जिस सोसाइटी में मुकेश रेंट पर फ्लैट लेने के लिए तरसते थे. आज उस सोसाइटी का सबसे महंगा फ्लैट उनका है.