Param Vir Chakra Lance Naik Karam Singh: सिख रेजिमेंट का परमवीर, जो अकेला ही पाकिस्तान की फ़ौज पर भारी पड़ा

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13 अक्टूबर, 1948. यह वह तारीख़ है, जब पाकिस्तान ने टिथवाल की रीछमार गली से हमला कर भारतीय सेना को पीछे धकेलने की कोशिश की. मगर मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने उनकी इस कोशिश को सफल नहीं होने दिया. फ़ॉरवर्ड पॉइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाक सेना के हर वार का मुंहतोड़ जवाब दिया.

पाकिस्तान ने एक के बाद एक, करीब 8 बार उनकी पोस्ट पर कब्जे़ की कोशिश की, मगर वह इस भारतीय जवान को मात नहीं दे सके. यह जवान कोई और नहीं, लांस नायक करम सिंह थे, जिन्हें 1948 में अपनी वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

वीरगाथाएं सुनकर सेना में भर्ती हुए करम सिंह

15 सितंबर 1915. पंजाब के बरनाला ज़िले के सेहना गांव में एक बच्चे ने जन्म लिया. नाम रखा गया करम सिंह. पिता उत्तम सिंह पेशे से एक किसान थे. लिहाज़ा करम सिंह के बचपन का एक लंबा वक्त खेतों के बीच गुजरा. सेना से उनके परिवार का कोई दूर-दूर का नाता नहीं था.

मगर गांव के लोगों से जब उन्होंने पहले विश्व युद्ध के वीरों की वारगाथाएं सुनीं, तो उनके अंदर सेना में शामिल होने के सपने ने जन्म लिया. शुरुआत में उन्हें नहीं पता था कि वह इसे कैसे पूरा करेंगे. मगर परिवार और गांव वालों के सहयोग से उनका यह रास्ता आसान हो गया.

15 सितम्बर 1941 में सिख रेजिमेंट का हिस्सा बने

इसके लिए सबसे पहले उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और सेना में भर्ती होने के लिए ख़ुद को तैयार करते रहे. जल्द ही करम सिंह के जीवन में वह दिन आ गया, जिसका उन्हें इंतज़ार था. यह दिन था 15 सितम्बर 1941 का. जब वह सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे. यह वह दौर था, जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध का दंश झेल रही थी.

करम सिंह भी बर्मा अभियान के दौरान एडमिन बॉक्स की लड़ाई का हिस्सा बने. इस दौरान उन्होंने अपने रण कौशल से सभी को प्रभावित किया और मिलिट्री मैडल से सम्मानित किए गए. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद करम सिंह की आंखों ने भारत के बंटवारे को भी देखा.

जब 1948 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने हमला किया

इस बंटवारे के बाद हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर खींचतान मची हुई थी. पाकिस्तान किसी भी तरह से इस पर कब्ज़ा चाहता था. इसी कोशिश में उसने जम्मू-कश्मीर पर मौजूद भारतीय सेना की टुकड़ियों पर हमला कर दिया. भारतीय सेना की तरफ़ से इसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया.

18 मार्च 1948 को झंगर पोस्ट पर भारतीय तिरंगा लहराकर उसने दुश्मन को वापस जाने का संदेश दिया. मगर दुश्मन नहीं माना और कुपवाड़ा सेक्टर के आसपास के गांवों पर फिर से हमला कर दिया. ख़ासकर टिथवाल को जीतने के लिए वह लंबे समय तक संघर्ष करते रहे.

रीछमार गली, नस्तचूर दर्रे पर कब्ज़ा चाहता था पाकिस्तान

अंतत: उन्होंने गुस्से में आकर 13 अक्टूबर, 1948 को पूरी ताकत से हमला कर दिया. पाकिस्तान किसी भी कीमत पर टिथवाल के रीछमार गली और नस्तचूर दर्रे पर कब्जा चाहता था.

जोकि, लांस नायक करम सिंह मगर, लांस नायक करम सिंह के रहते संभव नहीं था. सिख रेजिमेंट की एक टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए करम सिंह ने दुश्मन के हर वार का मुंहतोड़ जवाब दिया. एक के बाद एक 7 कोशिशें करने के बाद दुश्मन आग बबूला हो गया. वह समझ चुका था कि जब तक करम सिंह खड़े हैं, वह इस पोस्ट को जीत नहीं सकते.

दुश्मन पर अकेले ग्रेनेड फेंकते रहे करम सिंह

लिहाज़ा उन्होंने गोलीबारी तेज़ कर दी. इस दौरान करम सिहं बुरी तरह घायल हो गए. मगर उन्होंने घुटने नहीं टेके. ख़ुद को समेटते हुए उन्होंने अपने साथियों का मनोबल बढ़ाया. साथ ही दुश्मन पर लगातार ग्रेनेड फेंकते रहे.

लग ही नहीं रहा था कि कोई अकेला जवान लड़ रहा है. वह एक कंपनी की तरह अकेले लड़े जा रहे थे. इस तरह पाकिस्तान के आठवें हमले को भी करम सिंह ने बेकार कर दिया. अपनी इस वीरता के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.