आज हम जिस जम्मू-कश्मीर को देख रहे हैं और जिस कश्मीर को हम दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह कहते हैं, वो कश्मीर भारत की आजादी के पहले एकदम अलग था. भारत की आजादी की खबर मिलते ही देशवासियों ने जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाने का सपना देखा. लेकिन, इस सपने का सच होना आसान नहीं था. दरअसल, पाकिस्तान की भी इस रियासत पर नज़र थी. इसी बीच हरि सिंह ने अपनी रियासत को स्वतंत्र रखने की बात कर एक नई लकीर खींच दी.
पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के स्वतंत्र रहने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन भारत को यह मंजूर नहीं था. हर किसी के जेहन में सवाल था कि अब आगे क्या होगा? लोगों को इस सवाल का जवाब मिलता इससे पहले कुछ कबायली लड़ाकों ने 24 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण कर दिया. दावा किया जाता है कि इस कबायली हमले के पीछे पाकिस्तान के नेताओं और अधिकारियों का हाथ था.
भारत में ‘जम्मू-कश्मीर’ के विलय की पूरी कहानी
इतिहासकारों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में रहने वाली लगभग तीन चौथाई आबादी मुसलमानों की थी. परिवहन, भाषा और व्यापार के लिहाज से भी यह रियासत पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण थी, इसलिए वो चाहता था कि जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के साथ आ जाए. लेकिन, जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह इसके लिए तैयार नहीं थे. वो बंटवारे और आजादी के साथ बढ़े हुए सांप्रदायिक तनाव से अपनी रियासत को हर हाल में दूर रखना चाहते थे.
एक बड़ा कारण था कि ब्रिटिश अधिकारियों की काफ़ी कोशिशों के बावजूद उन्होंने 15 अगस्त 1947 तक भारत के साथ अपने राज्य का विलय नहीं किया था. हरि सिंह ने अपने हिसाब से सही फैसला लिया था, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि कबायली लड़ाके उन पर हमला कर देंगे. कथित तौर पर क़बायलियों की फ़ौज ने खासतौर पर ग़ैर मुस्लिमों को अपना निशाना बनाया.
और आखिरकार जम्मू-कश्मीर भारत में मिलाने को तैयार हुए हरि सिंह
हत्या और लूट-पाट का मंजर देखने के बाद महाराजा हरि सिंह विचलित हो गए थे. वो समझ चुके थे कि अगर वो जम्मू-कश्मीर छोड़कर नहीं गए तो उनका बचना संभव नहीं होगा. 25 अक्टूबर 1947 को उन्हें अपना शहर छोड़ना पड़ा था. बताया जाता है कि सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के बाद महाराजा ने भारत की तरफ मदद भरी आंखों से देखा था. लेकिन गवर्नर-जनरल माउंटबेटन ने यह कहते हुए मदद करने से मना कर दिया था कि जम्मू-कश्मीर का विलय अब तक भारत के साथ नहीं हुआ है. एक तरह से यह हरि सिंह को साफ संदेश था कि अगर वो भारत की मदद चाहते हैं तो उन्हें उस कागज पर दस्तखत करने होंगे, जिसमें लिखा था कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होगा.
कहतें हैं हरि सिंह शुरू से ही भारत के साथ जाना चाहते थे, बस वो खुलकर कह नहीं रहे थे. पाकिस्तान से कबायली हमले के बाद अंतत: उन्होंने भारत के प्रस्ताव को मान लिया और ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’(when hari singh signed at the instrument of accession of jammu and kashmir) पर हस्ताक्षर कर दिए.
26 अक्टूबर 1947 की रात उन्होंने अपने अंगरक्षक से यह तक कह दिया था कि, ‘मैं सोने जा रहा हूं. कल सुबह अगर तुम्हें राज्य में भारतीय सेना के विमानों की आवाज़ सुनाई न दे, तो मुझे उठाना मत, नींद में ही गोली मार देना.’
जब भारतीय सेना ने कबायलियों को जम्मू-कश्मीर से खदेड़ा
इतिहासकार रामचंद्र गुहा के मुताबिक, जैसे ही महाराजा ने विलय के कागजात पर दस्तखत किए, वैसे ही भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर में एक्टिव हो गई. 27 अक्टूबर की सुबह सेना कश्मीर की ओर बढ़ी और कबायलियों को जम्मू-कश्मीर से खदेड़ना शुरू कर दिया. भारतीय सेना अपने काम में सफल भी रही, लेकिन पाकिस्तान इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि जम्मू-कश्मीर अब भारत का हिस्सा है. परिणाम स्वरूप साल 1948 में एक बार फिर से भारत और पाकिस्तान की सेनाएं आमने-सामने आकर खड़ी हो गईं. दोनों देश कश्मीर में एक-दूसरे से लड़ रहे थे. कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था. कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र पहुंच गया.
भारत का आरोप था कि पाकिस्तान ने कश्मीर के कुछ हिस्सों पर बलपूर्वक कब्जा किया है, जबकि पाकिस्तान ने आरोप लगाया था कि हरि सिंह को भारत के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया. इस मसले के हल के रूप में 21 अप्रैल 1948 को भारत-पाक से युद्ध विराम और फिर जनमत संग्रह की मांग की थी. वो बात और है कि राज्य में जिस जनमत संग्रह का भरोसा दिया गया था, वह कभी नहीं कराया गया. भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम के साथ रियासत दो हिस्सों में जरूर बंट गई थी. दो तिहाई हिस्सा भारत के पास था, जबकि एक तिहाई हिस्से पर पाक ने कब्जा कर लिया था.
अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिला
साल 1949 के बाद जम्मू-कश्मीर एक नई दिशा में आगे बढ़ा. दरअसल यही वो साल था जब भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 जुड़ा और जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष राज्या का रास्ता साफ हुआ. अगले 70 से अधिक तक कश्मीर को भारत ने विशेष दर्जा प्राप्त राज्य (Special Status State) के रूप में ही देखा, लेकिन 5 अगस्त 2019 के बाद कश्मीर का मसला एक बार फिर से दुनियाभर में चर्चा का विषय बना गया. दरअसल, यह वही तारीख थी जब भारत सरकार ने एक नया कानून लाकर जम्मू-कश्मीर को खास दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म कर दिया. इसके साथ ही केंद्र ने इस राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया और इसे ऐतिहासिक कदम बताया.