ये कहानी इंजीनियरिंग के उन दो दोस्तों की है जिन्होंने मात्र 800 रुपये में किताबवाला नाम से एक स्टार्टअप की शुरुआत की. आज उनका ये छोटा सा स्टार्टअप सालाना 8 लाख का टर्नओवर दे रहा है. इस स्टार्टअप के माध्यम से मेडिकल, इंजीनियरिंग, लॉ, 1-12वीं की एनसीईआरटी, सामान्य प्रतियोगी परीक्षा की उपयोगी पुस्तकों के साथ साथ उपन्यास समेत अन्य तरह की सभी पुस्तकें प्राप्त की जा सकती हैं.
दो दोस्तों ने 800 से शुरू किया स्टार्टअप
यहां से मिलने वाली किताबों का दाम बाजार के दाम से काफी कम होता है. इसका कारण ये है कि यहां पढ़ी हुई और पुरानी किताबें सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं. इस स्टार्टअप की शुरुआत पिछले साल यानी 2022 में 5 फरवरी को की गई थी. महज 800 रुपए की लागत से शुरू होकर आज सालाना 8 लाख का टर्नओवर कमाने वाला ये स्टार्टअप लगातार तेज गति से बढ़ रहा है. इस स्टार्टअप की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आईआईटी मद्रास जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान ने भी अपने ई सेल में इसके रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन दिया है.
दो दोस्तों की सोच है किताबवाला
दैनिक भास्कर के मुताबिक, मुजफ्फरपुर के पारू प्रखंड के रामचंद्रपुर गांव के निवासी अक्षय कश्यप ने kitabwalah.com की शुरुआत की. इस स्टार्टअप में अक्षय के पार्टनर रिशु बेगूसराय के रहने वाले हैं. एसआईटी सीतामढ़ी से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करने के साथ अक्षय आईआईटी मद्रास से डाटा साइंस में बीएस कर रहें हैं. वहीं को-फाउंडर रिशु कुमार एमआईटी से आईटी ब्रांच में इंजीनियरिंग के साथ आईआईटी मद्रास के डाटा साइंस प्रोग्राम में नामांकित हैं.
इस स्टार्टअप को शुरू करने के पीछे अक्षय और रिशु की अच्छी सोच का योगदान है. अक्षय कश्यप के मुताबिक किताबों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. प्राइवेट स्कूलों में तो बच्चों की किताबें 5 से 7 हजार में मिल रही हैं. किताबों के बढ़ते दाम से सबसे ज्यादा परेशान मध्य वर्गीय, ग्रामीण और टायर थ्री से लेकर छोटे शहरों में रहने वाले लोग हैं. इस स्थिति में किताबवाला वेबसाइट पर जल्दी ही निजी स्कूलों की भी पुरानी किताबें उपलब्ध कराई जाएंगी.
किताबें कर सकते हैं डोनेट
ये वेबसाइट उन लोगों के लिए भी जल्द ही सुविधा उपलब्ध कराने जा रही है जो गरीब लेकिन मेधावी बच्चों के लिए किताबें डोनेट करने की इच्छा रखते हैं. इस स्थिति में किताबवाला किताबें देने वाले और उसका लाभ लेने वाले छात्रों के बीच एक पुल का काम करेगा. सबकुछ वेबसाइट पर पारदर्शी तरीके से दर्ज होगा. किताब डोनेट होने के बाद इसे संस्था गरीब बच्चों तक मुफ्त में पहुंचाएगी.
अपनी पढ़ाई के दौरान अक्षय ने ये देखा कि इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी करने वाले छात्रों को किताबें खरीदने के लिए मोटी कीमत चुकानी पड़ती है. काफी पैसा तो इन किताबों में ही खर्च हो जाता है. सामान्य परिवार के बच्चों के लिए यी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. ये सब देखने के बाद अक्षय को आइडिया आया कि महंगी किताबों कोई विकल्प खोजा जाना चाहिए. जिससे कि कम खर्च में जरूरतमंद छात्र भी पढ़ाई का लाभ ले सकें और किताबों पर होने वाला उनका बड़ा खर्च बच सके.