विपरीत परिस्थितियों से लड़ कर खुद को संभालना और फिर कामयाबी हासिल करना हर किसी के बस की बात नहीं. लेकिन हौसले अगर मुंबई के राधा गोविंद की तरह मजबूत हों तो कुछ भी असंभव नहीं. कभी कर्ज ना चुकाने पर लोगों से बातें सुनने वाले राधा गोविंद आज एक सफल व्यवसाय चला रहे हैं.
डूब गया पुश्तैनी कारोबार
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार जयपुर शहर से 30 किलोमीटर दूर बेगरू गांव के रहने वाले राधा गोविंद का परिवार तकरीबन 500 साल से ज्यादा पुरानी अपनी पुश्तैनी ब्लॉक प्रिंटिंग का बिजनेस चला रहा था. इस काम को उनके दादा-परदादा ने शुरू किया था जिसे उनके पिता आगे बढ़ा रहे थे. वे कपड़ों पर छपाई का काम करते थे. लेकिन फिर किस्मत ने करवट ली और सबकुछ बदल गया. कुछ साल बाद इस बिजनेस में नुकसान होने की वजह से उनके घर की स्थिति पूरी तरह से लड़खड़ा गई. उस समय राधा गोविंद 7-8 साल के थे. वह देखते थे कि उनकी मां दूसरों के घर से दाल-चावल, आटा मांगकर लाती थीं तब उनके घर का चूल्हा जलता था.
कर्जदार करते थे शर्मिंदा
राधा गोविंद बताते हैं कि आर्थिक स्थिति बिगड़ने से उनके पिता को लोगों से उधार लेना पड़ा. एक समय ऐसा था जब लेनदारों से झूठ बोलना पड़ता था कि पिता जी घर पर नहीं हैं. एक बार तो मात्र 2 हजार रुपए के लिए एक लेनदार ने उनके पिता का कॉलर पकड़ लिया था. लेकिन समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता, इंसान अपनी मेहनत के दम पर इसे बदल सकता है. राधा गोविंद ने भी यही किया, खूब मेहनत की. आज वो मुंबई के गोरेगांव इलाके में रहते हैं. यहां वह इंडस्ट्रियल कैंपस की एक बिल्डिंग में कपड़ा बनाने की फैक्ट्री चलाते हैं. उन्होंने अपनी कंपनी का नाम ‘ओहो ! जयपुर’ रखा है.
राधा गोविंद जब कमाने लायक हुए तब उन्होंने मुंबई की ओर रुख किया. मुंबई आने के बाद उन्हें काम की भीख मांगने पर भी काम नहीं मिला. बाद में उन्होंने मुंबई की एक चॉल में दो सिलाई मशीन से कपड़ा बनाने की शुरुआत की थी. आज वह मुंबई जैसे महानगर में ‘ओहो ! जयपुर’ के 4 आउटलेट्स चला रहे हैं. उनका सालाना टर्नओवर 8 करोड़ से अधिक का है. इसके साथ ही उन्होंने 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दिया. आज वह ऐसे लोगों कोकाम देते हैं, जिन्हें अन्य लोग काम देने से कतराते हैं. इनमें बुजुर्ग, विधवा सब शामिल हैं.
फीस नहीं जमा की तो निकाल दिया स्कूल से
राधा गोविंद ने अपने जीवन के संघर्ष के बारे में बताते हुए कहा कि जब वह 10-12 के थे तो एक बार फीस जमा ना कर पाने की वजह से उन्हें क्लास से निकाल दिया गया. वह उस दिन इतना दुखी हुए कि घर से भाग गए. लेकिन कोई रास्ता ना दिखने पर वह देर रात तक घर वापस लौट आए. घर पहुँच कर उन्होंने देखा कि परिवार के सभी लोग सभी बेसुध पड़े हैं. उनकी मां की मरने जैसी स्थिति हो गई थी. राधा गोविंद ने उसी दिन ठान लिया कि कुछ भी हो जाए लेकिन वो ना तो आत्महत्या के बारे में कभी सोचेंगे और नया घर से भागने का ख्याल मन में लाएंगे.
इसके बाद राधा गोविंद ने अपनी गुल्लक तोड़ 17 रुपये निकाले और घर के बाहर चबूतरे पर ही एक छोटी सी दुकान खोल ली. वह चॉकलेट-बिस्कुट बेचते थे. वह 250 ग्राम चीनी देने भी लोगों के घर जाया करते थे. जिससे कि लोग उनसे ही सामान खरीदें.
फिर मुंबई की ओर किया रुख
समय के साथ जब राधा गोविंद बड़े हुए तो फिल्मों, टीवी में देखे मुंबई को सपनों की नगरी मान अपने साथ दो जोड़ी कपड़ा और एक चप्पल लेकर उस ओर बढ़ निकले. उनकी इस बात से घर वाले नाराज थे, उन्होंने गोविंद को यहां तक कह दिया कि, ‘अब तुम हमारे लिए मरे हुए के समान हो.’ मुंबई पहुंचने पर उन्हें दो रात स्टेशन पर सोना पड़ा. लोग पैसों की भीख मांगते हैं लेकिन राधा गोविंद काम की भीख मानफगाते रहे. उन्हें स्टेशन पर जो भी सूट-बूट में दिखता, उससे कहते- मुझे बस काम दे दीजिए.
इसके बाद राधा गोविंद ने मेहनत की और 10 साल में अपना एक ब्रांड खड़ा कर दिया. उन्हें आइडिया आया कि जयपुर को ही एक ब्रांड बना देना चाहिए. इसके बाद 2014-15 में वह गांव गए थे. वहां से उन्होंने करीब 45 हजार रुपए इकट्ठा किये और अपना कारोबार शुरू कर दिया. उन्होंने जयपुर के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले कारीगरों से कपड़े बनवाना शुरू किया.
आज है करोड़ों का बिजनेस
आज उनका सालाना बिजनेस 8 करोड़ से अधिक का हो चुका है. कोविड में उनके कुछ आउटलेट्स बंद भी करने पड़े थे, स्थिति शून्य की तरफ आ गई थी, तभी उन्होंने ऑनलाइन प्रोडक्ट को सेल करना शुरू किया. आज वह ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया के जरिए कपड़े सेल कर रहे हैं. इसके साथ ही राधा गोविंद ने 50 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दिया है.