बिहार के सम्मान और यहां के किसानों के लिए खुशखबरी की एक खबर आई है. दरअसल, बिहार की एक उपज को अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान मिलने जा रही है.
बिहार के मर्चा धान को मिला GI Tag
जी हां, बिहार के पश्चिम चंपारण में उपजने वाले मर्चा धान (Marcha Rice) को शनिवार को केंद्र सरकार ने जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग दिया है. संभावना जताई जा रही है कि ये जीआई टैग मिलने से यहां के किसानों को मर्चा धान की पहले से बेहतर कीमत मिल पाएगी और इन्हें काफी लाभ होगा.
क्या है इस धान की खासियत?
मर्चा धान अपनी कई खसियतों के कारण जाना जाता है. अन्य धान से अलग आकृति रखने वाला मर्चा धान काली मिर्च की तरह होता है. यही कारण है कि इसे मिर्चा या मर्चा धान के नाम से जाना जाता है. बात करें इसकी गंध की तो धान से निकलने वाले चावल के दाने और गुच्छे में से आने वाली एक खास सुगंध इसे अन्य धान की फसलों से अलग बनाती है.
मर्चा धान बिहार की ऐसी छठी उपज बन गई है जिसे आई टैग मिला है. इसस पहले मुजफ्फरपुर की लीची, भागलपुर के जर्दालु आम, कतरनी चावल, मिथिला के मखाना को भी GI Tag मिल चुका है. केंद्र सरकार के जीआई रजिस्ट्रार, चेन्नई की ओर से जारी प्रमाण पत्र को शनिवार को समाहरणालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मर्चा धान उत्पादक सहयोग समिति के अधिकारियों एवं सदस्यों को प्रदान किया गया. वहीं, जीआई रजिस्ट्रार ने जिला प्रशासन को भी इसका प्रमाण पत्र प्रेषित किया है, जिसे जिलाधिकारी को समर्पित किया गया.
क्यों कहते हैं इसे मर्चा धान?
जिलाधिकारी दिनेश कुमार राय ने इस संबंध में बताया कि मर्चा धान बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थानीय रूप से पाए जाने वाले चावल की एक किस्म है. यह काली मिर्च की तरह दिखता है जिस वजह से इसे मिर्चा या मर्चा धान के नाम से जाना जाता है. उन्होंने बताया कि इसे स्थानीय स्तर पर मिर्चा, मचया, मारीची आदि नामों से भी जाना जाता है. मर्चा धान के पौधे, अनाज और गुच्छे में एक अनूठी सुगंध होती है, जो इसे अलग बनाती है. पश्चिमी चंपारण जिले के चनपटिया, मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर एवं लौरिया इस चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं.