पढ़ने-लिखने व सीखने की कोई उम्र नहीं होती, मनुष्य जीवन पर्यन्त सीखता रहता है। इसी बात से प्रेरित होकर स्वामी विवेकानंद राजकीय महाविद्यालय घुमारवीं में संगीत गायन में प्राध्यापक के पद पर कार्य कर रहे सुरेश शर्मा ने अपने जीवन के 56वें वर्ष में पीएचडी की उपाधि के लिए शोध कार्य संपन्न किया है। प्रदेश में कला, संगीत, लेखन, नाट्य के क्षेत्र में वर्षों से अपना योगदान दे रहे सुरेश शर्मा ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के संगीत विभाग से “कांगड़ा जनपदीय लोक संगीत व लोकनाट्य में डॉ. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ का योगदान” विषय पर अपना शोध कार्य संपन्न किया है।
प्रो. सुरेश शर्मा ने बताया कि संगीत नाटक अकादमी, हिमाचल गौरव व अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित डॉ. गौतम शर्मा’ व्यथित एक विख्यात संस्कृति कर्मी, साहित्यकार, कला संरक्षण एवं संवर्धन हैं जो पास वर्षों से भी अधिक वर्षा से कला, लोक संगीत, लोक नाट्य, साहित्य लेखन, विभिन्न कलाओं एवं कलाकारों के संरक्षण में समर्पित रहे हैं। उन्होंने लोक संगीत, लोक संस्कृति, लोक नाट्य व लोक साहित्य पर लगभग 55 पुस्तकें लिखी हैं।
इस शोध कार्य को पूरा करने में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, भारतीय प्रशासनिक अधिकारी के सी शर्मा, प्रिंट मीडिया के प्रतिष्ठित अनिल सोनी, प्रभात शर्मा, प्रतिष्ठित लोकगायक करनैल राणा सहित विभिन्न शिक्षाविदों, साहित्यकारों तथा संस्कृति कर्मियों के साक्षात्कार शोध कार्य को मूल्यपरक बनाने का प्रयत्न किया गया है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संगीत, कला तथा साहित्य की दृष्टि से उनका यह शोध कार्य प्रदेश के संस्कृति विभाग, लोक संगीत, लोकनाट्य, लोक साहित्यकारों, संस्कृति नीति निर्माताओं तथा शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी साबित होगा।
प्रो. शर्मा ने प्रदेश विश्वविद्यालय के संगीत विभागाध्यक्ष आचार्य जीत राम शर्मा, डॉ. परमानंद बंसल, सभी प्राध्यापकों, जयपुर विश्वविद्यालय की प्रख्यात ध्रुपद गायिका डॉ. मधु भट्ट तेलंग, डॉ. व्यथित, प्रबुद्ध कलाकारों, गुरुओं, शिक्षाविदों, साहित्यकारों और परिवार के सदस्यों का उनके सहयोग के लिए धन्यवाद किया है।