MS Swaminathan: वो Scientist जिसने भूख से तड़पते भारत को खाना दिया, लेकर आए Green Revolution, कहते थे- खाने की पूजा करनी चाहिए

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भारतीय हरित क्रान्ति के जनक MS Swaminathan का निधन हो गया. वो 98 साल के थे, चेन्नई स्थित अपने घर में उन्होंने आख़री सांसें लीं. भारत के Green Revolution देने के अलावा स्वामीनाथन ने मकई की ज़्यादा उपज करने वाली ऐसी वैरायटी बनाई जिससे छोटे किसान ज़्यादा से ज़्यादा पैदावार कर पाए.

वो साइंटिस्ट जिसने देश को अकाल से उबारा

स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि देते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक एके सिंह ने कहा कि जब अंग्रेज़ भारत छोड़ कर गए तो देश में कुछ नहीं बचा था. न अन्न था न पानी. खेती के लिए पानी नहीं था. किसानी करने वाला भारत अन्न के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हो गया. इस अंधकार में एक साइंटिस्ट ने पूरे देश को भूखा मरने से बचाया.

स्वामीनाथन ने धान की ऐसी फ़सलें विकसित की जिनकी मदद से छोटे किसान ज़्यादा पैदावार कर पाए. स्वामीनाथन ने 1961 से 1972 तक कृष्णि अनुसन्धान के निदेशक पद पर काम किया और फिर ICAR के जनरल के तौर पर भी कार्यरत रहे. 1980-82 तक वो प्लानिंग कमीशन के भी मेंबर रहे. उनके काम को देखते हुए फिलीपीन्स में वो 6 साल तक इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट (1982-88) के डायरेक्टर जनरल रहे.

1987 में स्वामीनाथन को दुनिया का पहला World Food Prize दिया गया जिसके बाद उन्होंने चेन्नई के तारामणि में MS Swaminathan Research Foundation (MSSRF) की शुरुआत की. उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. उन्हें विदेश में भी सम्मनित किया गया. साल 1986 में उन्हें Albert Einstein World Science Award मिला और 1971 में Ramon Magsaysay Award दिया गया.

वो गांधीवादी साइंटिस्ट जिसने कहा था कि खाना खाते समय उसकी पूजा करनी चाहिए

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1942 में तक सबको एहसास हो गया था कि देश अब आजाद होने वाला है. त्रावणकोर में स्टूडेंट्स का क्लब हुआ करता था जिसमें तमाम मुद्दों पर डिबेट होती थी. एक दिन इस बात पर बहस होने लगी कि हम स्वतंत्र भारत में कैसे अपना योगदान कर सकते हैं. उस समय बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था. अखबारों में लोगों के मरने की खबरें आती थीं. भूख से लोग मर रहे थे. तब स्वामीनाथन ने डिबेट में कहा था कि मैं चाहता हूं कि देश में कोई भूखा ना रहे। आगे उन्होंने इसी दिशा में काम भी किया. 60 के दशक में अकाल पड़ने लगा था. हाइब्रिड बीज आयात किए गए थे. हरित क्रांति के तहत कृषि उत्पादन बढ़ाने के प्रयास हुए. आगे सिंचाई के लिए योजनाएं बनीं और खाद पर सब्सिडी दी जाने लगी. धीरे-धीरे भारत अनाज पैदा करने में आत्मनिर्भर बन गया.

पुलिस अधिकारी बन जाते लेकिन खेती के प्रति जूनून के आगे कुछ नहीं देखा

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स्वामीनाथन ने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन दिल्ली के पूसा इंस्टिट्यूट से की. दिल्ली के कृषि भवन में उनकी मुलाकात एक कलेक्टर से हुई जिसने उन्हें कहा कि खेती को छोड़ वो ;पुलिस अधिकारी बन जाएं. स्वामीनाथन ने भी फ़ॉर्म भर दिया और भारतीय पुलिस सेवा के लिए सेलेक्ट हो गए. उन्होंने आख़री वक़्त तक अपना नियुक्ति पत्र संभाल कर रखा लेकिन देश को कृषि में आत्मनिर्भर बनाने के निश्चय के लिए उन्होंने सब न्यौछावर कर दिया.

छोटे किसानों के असली मददगार

एस. स्वामीनाथन अपने साफ़ रवैय्ये के लिए भी जाने जाते थे. उन्होंने साफ़ कहा था कि अगर आप छोटे किसानों के लिए कुछ भी करते हो तो उसका लाभ स्वाभी किसानों को होता है. देश को हरित क्रांति देने के पीछे भी उनका उद्देश्य छोटे किसानों को ऐसे बीज और फसल देना था जो उनकी पैदावार को दोगुना कर सकें.