Success Story Of MRF Tyre Founder K.M Mammen Mappillai: सड़कों पर गुब्बारे बेचने वाला शख्स जिसने विदेशी कंपनियों को मात दे खड़ी कर दी 46,000 करोड़ की MRF

देश के बच्चे बच्चे ने MRF का नाम सुना होगा. किसी ने सचिन तेंदुलकर के बैट पर लगे स्टिकर से ये नाम जाना तो किसी ने सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों के पहिये देख. आज भी देश में बड़ी संख्या में लोग टायर के मामले में एमआरएफ पर ही भरोसा करते हैं. आज इस कंपनी का जो नाम है उसे बनाने और चमकाने के पीछे एक संघर्षपूर्ण कहानी है. आपको जानकार हैरानी होगी कि इस बड़ी कंपनी को एक गुब्बारे बेचने वाले ने खड़ा किया था. चलिए जानते हैं MRF और इसे बनाने वाले शख्स की पूरी कहानी.

MRF Founder K. M. Mammen Mappillai बेचते थे गुब्बारे

MRF Tyre Founder K.M Mammen Mappillai Success Story Twitter

साल 1922 में केरल के एक ईसाई परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ. ये बच्चा अपने 10 भाई-बहनों में से एक था. इतने बड़े परिवार का पेट पालने के लिए सबको मेहनत करनी पड़ती थी. इस बच्चे ने भी चेन्नई की सड़कों पर गुब्बारे बेचे. गली-गली घूम कर गुबारे बेचने वाले इस बच्चे ने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन आएगा जब वो 46,341 करोड़ के मार्केट कैप वाली कंपनी का मालिक होगा.

इस बच्चे को दुनिया ने आगे चल कर केएम मैम्मेन मप्पिलाई (K. M. Mammen Mappillai) के नाम से जाना. मैम्मेन के लिए साल 1952 में एक बड़ा बदलाव आया. उन्होंने इस बात पर गौर किया कि एक विदेशी कंपनी टायर रिट्रेडिंग प्लांट को ट्रेड रबर की सप्लाई कर रही थी. तब उनके दिमाग में एक बात खटकी. उन्होंने सोचा कि हमारे देश में ही ट्रेड रबर बनाने के लिए फ्रैक्ट्री क्यों नहीं लगाई जा सकती.

विदेशी कंपनियों से ली टक्कर

MRF Tyre Founder K.M Mammen Mappillai Success Story Twitter

मैम्मेन को इसमें एक अच्छा अवसर दिखाई दिया. जिसके बाद उन्होंने ट्रेड रबर बनाने के बिजनस में उतरने का फैसला किया. जिसके बाद मैम्मेन ने अपनी सारी बचत लगा कर मद्रास रबर फैक्ट्री यानी एमआरएफ को खड़ा किया. मैम्मेन के इस फैसले के बाद ही भारत को ट्रेड रबर बनाने वाली पहली कंपनी मिली. उनका मुकाबला केवल विदेशी कंपनियों से था. होदे ही समय में मैम्मेन का बिजनस चल पड़ा. अपनी अच्छी क्वालिटी की वजह से MRF ने 4 साल में ही मार्केट में अपनी 50% हिस्सेदारी हासिल कर ली. MRF सफलता देख कई विदेशी मैन्यूफैक्चरर देश छोड़कर चले गए.

टायर बिजनेस में रखा कदम

MRF Tyre Founder K.M Mammen Mappillai Success Story Twitter

साल 1960 में मैम्मेन के बिजनस में एक बार फिर से टर्निंग पॉइंट आया. ट्रेड रबर बिजनेस में सफलता हासिल करने के बाद अब मैम्मेन टायरों के बिजनेस में हाथ आजमाना चाहते थे. उस समय मैम्मेन को अमेरिका की मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी जैसी विदेशी कंपनियों की मदद लेनी. इस कंपनी से उन्होंने तकनीकी सहयोग लिया और टायर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट स्थापित कर दी. साल 1961 में एमआरएफ की फैक्ट्री से पहला टायर बनकर निकला था. उसी साल कंपनी मद्रास स्टॉक एक्सचेंज में अपना आईपीओ लेकर आई थी.

उस समय इंडियन टायर मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री में डनलप, फायरस्टोन और गुडइयर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बादशाहत थी. लेकिन एमआरएफ ने विदेशी कंपनियों की सोच से हट कर काम किया. उन्होंने तिरुवोट्टियूर में बनाए गए रबड़ रिसर्च सेंटर की मदद से भारत की सड़कों के अनुरूप टायर बनाना शुरू किया. अब बारी थी कंपनी की मार्केटिंग कि जिसे मजबूती दी 1964 में सामने आए MRF मसलमैन ने. इसने कंपनी के टायर की मजबूती को दर्शाने का काम किया. मसलमैन का इस्तेमाल टीवी विज्ञापनों और होर्डिंग में किया गया.

इन मामलों में नंबर वन रही MRF

MRF Tyre Founder K.M Mammen Mappillai Success Story Twitter

इसके बाद कंपनी साल 1967 में यूएसए को टायर एक्सपोर्ट करने वाली भारत की पहली कंपनी बनी. 1973 में MRF व्यावसायिक रूप से नायलॉन ट्रेवल कार टायरों की मैन्यूफैक्चरिंग और मार्केटिंग करने वाली भारत की पहली कंपनी बनी. 1973 में MRF ने पहला रेडियल टायर बनाया था. 2007 में पहली बार साल MRF ने एक अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार करके रिकॉर्ड बनाया था. एक गुब्बारे बेचने वाले ने जिस एमआरएफ की शुरुआत की थी वो कंपनी आज हवाईजहजों के साथ ही लड़ाकू विमान सुखोई के लिए भी टायर बना रही है. MRF को बुलंदियों तक पहुंचाने वाले एमके मैम्मन 3 मार्च 2003 को इस दुनिया को अलविदा कह गए.