देश के वो 7 कुख़्यात गैंगस्टर्स, जिनके एनकाउंटर पर हुआ था जम कर बवाल, उठे थे पुलिस पर सवाल

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अपराध वो दीमक है, जो देश की जड़ों को खोखला करता है. वहीं अपराधी दीमक के कीड़ों के समान हैं. शुरुआत में ही अगर इन्हें कानूनी गिरफ्त में ले लिया जाए तो ये आगे बढ़ने की हिम्मत ही ना करें. लेकिन हमारे सिस्टम की कुछ खामियों के कारण ऐसा हो नहीं पाता. जिसके कारण इनका मनोबल बढ़ने लगता है और वो कानून के साथ खेलने लगते हैं. उसके बाद जो होता है, वो विकास दुबे से लेकर असद अहमद के रूप में हमारे सामने है.

 

बात चाहे कानपुर के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की हो या फिर हैदराबाद में गैंगरेप के चार आरोपियों की, इनके एनकाउंटर खूब चर्चा में रहे. 15 अप्रैल 2023 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कॉल्विन अस्पताल के पास तीन हमलावरों ने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी. इस हत्या से दो दिन पहले यानी 13 अप्रैल को उमेश पाल हत्याकांड में 5 लाख के इनामी असद अहमद और गुलाम मोहम्मद का एनकाउंटर भी खूब चर्चा में रहा. उमेश पाल हत्याकांड में माफिया से राजनेता बने अतीक अहमद का बेटा फरार चल रहा था. झांसी में उसका सामना एसटीएफ से हो गया और इसी मुठभेड़ में असद मारा गया.

इन एनकाउंटर्स को मीडिया और सोशल मीडिया पर कई लोगों ने फेक बताया. वैसे पुलिस पर फेक एनकाउंटर का दोष लगना कोई नई बात नहीं है. इन केसों से पहले भी पुलिस पर कई बार एनकाउंटर को लेकर सवाल उठ चुके हैं.

तो चलिए आपको बताते हैं असद अहमद एनकाउंटर से पहले देश में कौन-कौन से एनकाउंटर चर्चा में रहे और उनका असर पुलिस ही नहीं राजनीति पर कैसा पड़ा:

1. मन्या सुर्वे एनकाउंटर

Manya Surve Encounter Ranak Mann/ Indiatimes

आपने बहुत से एनकाउंटरों के बारे में पढ़ा और सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि फाइलों में दर्ज देश का पहला एनकाउंटर किसका और कहां हुआ था? अगर नहीं जानते तो जान लीजिए. 11 जनवरी 1982 को मुंबई के वडाला में चली गोलियों ने देश के पहले एनकाउंटर की कहानी लिखी थी.

गोली चलाने वाले हाथ मुंबई पुलिस के दो अधिकारियों राजा तांबट तथा इशाक बागवान के थे और गोली खाने वाली देह उस समय मुंबई के नामी अपराधी मान्या सुर्वे की थी. वैसे इतिहास खंगालें तो एनकाउंटर की कई घटनाएं मिल जाएंगी, मगर आधिकारिक तौर पर दर्ज किया गया यह पहला एनकाउंटर था.

कहानी बस इतनी सी है कि 38 वर्षीय मनोहर अर्जुन सुर्वे 70% से ज़्यादा अंकों से ग्रेजुएट था. पढ़ने लिखने वाला बंदा था, लेकिन एक मर्डर केस में उसे सज़ा हो गई. बताया जाता है कि जिस खून केस में उसे सज़ा हुई वो खून उसने किया ही नहीं था. जब जेल से बाहर आया तो अपराध की दुनिया के माया जाल में फंस गया. दो साल के अंदर ही उसके हाथ अंडरवर्ल्ड के ऊपर के खिलाड़ियों तक पहुंच गए.

कहते हैं जिस समय दाऊद जैसे गैंगस्टर अपनी गैंग में भर्ती करनी के लिए नए लड़कों को तलाश्ते थे. उस समय मान्या के पास 50 लोगों की गैंग थी. राज्य की बढ़ती गुंडागर्दी और गैंगवार से तंग पुलिस विभाग ने एनकाउंटर स्क्वार्ड के नाम से एक नए दस्ते का गठन किया. इस दस्ते के लिए ये नियम बनाया गया कि अगर कोई अपराधी पुलिस द्वारा घेर लिए जाने पर आत्म समर्पण करता है तो ठीक है.

मगर  यदि वो पुलिस पर फायरिंग करते हुए भागने का प्रयास करता है तो उस पर गोली चलाई जा सकती है. मान्या सुर्वे भी इसी एनकाउंटर स्क्वार्ड की गोलियों का शिकार हुआ. हालांकि, बाद में पुलिस पर ये सवाल उठे कि उन्होंने मान्या को सरेंडर करने का मौका ही नहीं दिया. इस घटना पर आधारित फिल्म शूटआउट एट वडाला भी बनी थी, जिसमें जॉन अब्राहम ने मान्या सुर्वे की भूमिका निभाई थी.

2. लखन भैया एनकाउंटर

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11 नवंबर 2006 को मुंबई पुलिस ने ये दावा किया कि उसने गैंगस्टर छोटा राजन के एक बेहद करीबी को मुठभेड़ में ढेर कर दिया है. मारा गया खूंखार अपराधी राम नारायण गुप्ता उर्फ लखन भईया था. इस एनकाउंटर केस ने पुलिस की रातों की नींद उड़ा दी थी.

दरअसल, लखन भईया के एनकाउंटर के अगले ही दिन उसके भाई और वकील राम प्रसाद गुप्ता ने मीडिया के सामने आकर ये दावा किया कि लखन भईया किसी मुठभेड़ में नहीं मारा गया, बल्कि पुलिस ने उसे अगवा कर उसकी हत्या की है. प्रसाद के मुताबिक पुलिस ने वाशी नवी मुंबई से लखन और उसके साथी अनिल भेदा को उठाया और मुंबई ला कर लखन का एनकाउंटर कर दिया गया.

सबूत के तौर पर लखन के भाई ने वो फ़ैक्स मीडिया को दिखाई, जो उसने लखन के अगवा होने के कुछ ही देर बाद कमिश्नर को भेजी थी. इस फैक्स में लखन के एनकाउंटर का अंदेशा जताया गया था. प्रसाद के इस दावे के बाद इस केस ने तूल पकड़ ली. 2013 में अदालत ने इस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए 21 लोगों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई, जिसमें 13 पुलिस वाले थे.

अदालत में ये बात सामने आई कि लखन भईया पर प्वाइंट ज़ीरो की रेंज यानि एकदम पास से गोली चली थी. जिसका ये मतलब था कि लखन भईया को भागते हुए गोली नहीं मारी गई. हालांकि, ये एनकाउंटर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा के नाम था, लेकिन उन्हें इस केस से बरी कर दिया गया.

अन्य अपराधियों के लिए भी सज़ा से पूर्व रिहाई की अर्जी दी गई थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया. लखन भईया के साथ जिस अनिल भेदा को पकड़ा गया था वह इस केस का इकलौता चश्मदीद गवाह था. लेकिन मार्च 2011 के बाद भेदा गायब हो गया. कुछ समय बाद पुलिस को उसकी लाश मिली, जिसे दफना दिया गया था.

3. इशरत जहां एनकाउंटर 

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19 साल की इशरत जहां का एनकाउंटर सिर्फ एनकाउंटर ही नहीं था, बल्कि इस केस को मुद्दा बन कर राजनीति में भी खूब उछाला गया. विपक्षी पार्टियों ने लंबे समय तक इस केस को लेकर बीजेपी से सवाल किए. 15 जून 2004 को गुजरात पुलिस क्राईम ब्रांच ने अहमदाबाद में चार आतंकवादियों को मार गिराया. इन चारों में से एक थी 19 साल की इशरत जहां.

पुलिस के अनुसार इशरत सहित उसके अन्य सभी साथी लश्कर के आतंकवादी थे. उस समय के गुजरात मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी इनके निशाने पर थे. बिहार में जन्मी इशरत मुंबई के गुरु नानक खालसा कॉलेज से बीएससी कर रही थी. पिता छोटे मोटे व्यवसायी थे. वो खुद एक जगह अकाउंट्स का काम संभालती थी. इशरत के एनकाउंटर के बाद इस केस की जांच हुई.

2007 में इस एनकाउंटर को फर्जी करार देते हुए अदालत द्वारा ये कहा गया कि ये पुलिस द्वारा किया गया कोल्ड ब्लडेड मर्डर है. केस की जांच एसआईटी और सीबीआई दोनों द्वारा की गई. एनकाउंटर के समय पुलिस टीम को लीड कर रहे आईपीएस डीजी वंजारा को गिरफ्तार किया गया. हालांकि, 2015 में वंजारा को इस केस में जमानत मिल गई. यह केस अभी भी सीबीआई जांच के अधीन है.

4. सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर

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तीन राज्यों के मोस्ट वांटेड अपराधी सोहराबुद्दीन शेख के एनकाउंटर केस ने पुलिस से लेकर नामी मंत्रियों तक की नाक में जितना दम किया उतना शायद ही किसी अन्य केस ने किया होगा. कहते हैं सोहराबुद्दीन शेख किसी आईपीएस का बनाया हुआ अपराधी था. उसी के इशारे पर वो तमाम आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता था.

इसके साथ ही ये भी कहा जाता है कि सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर में सबसे मजबूत कड़ी भी वही आईपीएस अधिकारी बना. सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात और राजस्थान पुलिस ने ज्वाइंट ऑपरेशन कर सोहराबुद्दीन को उसकी पत्नी कौसर बी और साथी तुलसीराम प्रजापति के साथ हैदराबाद के सांगली में पकड़ा और उन्हें गुजरात ले आई. यहां तीनों को एक फ़ार्महाऊस में रखा गया.

26 नवंबर को पुलिस सोहराबुद्दीन को ले गई और इसी दिन उसका एनकाउंटर कर दिया गया. जिस टीम ने इस एनकाउंटर को अंजाम दिया उसे लीड कर रहे थे उस समय गुजरात एटीएस के मुखिया डीजी वंजारा. राजस्थान के उदयपुर जिले के एसपी दिनेश एम.एन. सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इसे फेक एनकाउंटर बताया.

इस केस में सोहराबुद्दीन की पत्नी और उसका साथी तुलसी प्रजापति मुख्य गवाह थे. उनके सामने ही सोहराबुद्दीन को ले जाया गया था. लेकिन प्रजापति भी कुछ समय बाद एनकाउंटर में मारा गया और कौसर बी को पहले लापता बताया गया. मगर सीबीआई की जांच में ये बात पता चली कि उसे जला दिया गया था.

इस केस में जो सबसे बड़ा नाम सामने आया, वो था वर्तमान में देश के गृह मंत्री अमित शाह का. इसी केस के लिए उन्हें दो साल तक गुजरात में आने की मनाही रही. इसके अलावा डीजी वंजारा पर भी आरोप लगा. हालांकि, 21 दिसंबर 2019 को मुंबई की विशेष अदालत ने सीबीआई द्वारा जमा किए गये सबूतों को पर्याप्त ना मानते हुए अमित शाह सहित 22 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था.

कोर्ट ने इस केस के अंत में यह टिप्पणी दी कि उन्हें तीन जानें जाने का दुख है लेकिन अदालत में सबूतों के आधार पर फैसला होता है और सीबीआई सुबूत नहीं जुटा पाई.

5. अंसल प्लाजा शूटआउट

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ये शूटआउट किसी गैंगस्टर या अपराधी का नहीं था. बल्कि, पुलिस के अनुसार इस शूटआउट आतंकी ढेर हुए थे. पुलिस के अनुसार इस मुठभेड़ में मारे गये आतंकवादियों का संबंध लश्कर ए तैयबा से था. 3 नवंबर 2002 को दिल्ली पुलिस ने दक्षिण दिल्ली स्थित अंसल प्लाजा शॉपिंग कॉम्पलेक्स के बेसमेंट पार्किंग एरिया में दो संदिग्धों को मार गिराया.

पुलिस द्वारा ये बताया गया कि लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े 4 आतंकी दीवाली के दिन दिल्ली में बड़ा धमाका करने की तैयारी में थे. जिनमें से दो को मुठभेड़ में मार गिराया गया. पुलिस के मुताबिक आतंकियों के पास से एके-56 और दो मैग्जीन सहित सरोजनी नगर, लाजपत नगर सेंट्रल मार्केट के नक्शे बरामद हुए थे.

देश इस मौके पर खुशी मनाता ये सोच कर कि आतंकी अपने मंसूबे में नाकामयाब हुए. उससे पहले ही इस केस में नया मोड़ आ गया. ये नया मोड़ आया एक होमियोपैथिक डॉक्टर हरिकृष्ण के मीडिया को दिए बयान के बाद आया. डॉक्टर ने कहा कि वह इस घटना का चश्मदीद है और उसने देखा कि मारे गए लड़के निहत्थे थे और पुलिस ने उन्हें मार दिया.

डॉक्टर के इस बयान ने हर तरफ हलचल पैदा कर दी. इसी दावे के अधार पर वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर और कुछ एनजीओ ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में इस सम्बंध में केस दर्ज करवाया. लेकिन फिर अचानक से डॉक्टर हरिकृष्ण गायब हो गये और जब सामने आए तो अपने बयान से एक दम मुकर गये. उन्होंने कहा कि मैं उस इलाके में ज़रूर था मगर मैंने शूटआउट होते नहीं देखा.

6. स्लम भरथ एनकाउंटर

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स्लम भरथ का एनकाउंटर किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था. भरथ एक हिस्ट्रीशीटर था जिस पर हत्या फिरौती और धमकी देने सहित अन्य 50 मामले दर्ज थे. इसी साल 23 फरवरी को बेंगलूरू पुलिस ने इसे उत्तर प्रदेश के मोरादाबाद से गिरफ्तार किया था. पुलिस के मुताबिक भरथ और इसके साथी 30 जनवरी को पुलिस पर गोलियां बरसाते हुए भाग निकले थे.

27 फरवरी को पुलिस भरथ को कुछ घटनास्थलों पर ले जा रही थी उसी समय उसके साथियों ने पुलिस वैन पर हमला कर दिया और भरथ को छुड़ा कर ले गये. पुलिस ने इस घटना की सूचना कंट्रोल रूम में दी तथा बैकअप बुला लिया. इसके बाद भरथ जब पुलिस की रेंज में आया तो वो और उसके साथी पुलिस पर गोलियां बरसाने लगे.

इसी घटनाक्रम में पुलिस ने भरथ को मार गिराया. पुलिस के अनुसार उसे हॉस्पिटल ले जाया गया था लेकिन उससे पहले ही उसकी मौत हो चुकी थी. स्लम भरथ का नाम उस समय अधिक चर्चा में आया था जब इसने दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपर स्टार यश को जान से मारने की धमकी दी थी.

7. वारंगल एनकाउंटर

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10 दिसंबर 2008 को वारंगल की चहल पहल वाली सड़क पर कुछ ऐसा हुआ था जिसने उस समय सभी महिलाओं के मन में भय पैदा कर दिया था. वारंगल शहर के एक इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाली दो लड़कियां स्वप्निका और परिणिथा अपनी क्लास पूरी कर के घर लौट रही थीं. इसी बीच तीन लड़कों ने उन पर एसिड फेंक दिया और उन्हें ताड़पत हुआ छोड़ कर वहां से भाग निकले.

ये तीनों थे 25 वर्षीय एस श्रीनिवास राव, 24 वर्षीय पी हरिकृष्ण और 22 वर्षीय संजय. इन तीनों में मुख्य था एस श्रीनिवास. श्रीनिवास ने स्वप्निका के आगे प्रेम प्रस्ताव रखा था जिसे स्वप्निका ने नहीं माना. अपनी इसी खीज को निकलने के लिए श्रीनिवास ने अपने आथियों के साथ उस पर एसिड अटैक कर दिया. पुलिस के अनुसार श्रीनिवास ने पकड़े जाने के बाद पूछताछ के दौरान खुद यह बात स्वीकार की थी.

इस घटना के बाद लोग न्याय मांगने के लिए वारंगल की सड़कों पर उतार आए. कुछ जी घंटों बाद इन लड़कों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा फिर वे एनकाउंटर में मारे गये. पुलिस के मुताबिक ये तीनों पुलिस पर हमला करते हुए भागने की कोशिश कर रहे थे तथा इसी दौरान पुलिस की गोलियों का शिकार हो गये. आपको ये घटना हाल ही में हुए हैदराबाद एनकाउंटर जैसी लग सकती है.

जहां पुलिस ने एक 27 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म कर उसे जला देने वाले 4 आरोपियों को एनकाउंटर में मार गिराया था. दोनों केसों में समानता लगने का एक कारण है इन दोनों केसों का एक ही सूत्रधार होना, और ये सूत्रधार हैं पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार. बता दें कि स्वप्निका इस एसिड अटैक के कुछ दिन बाद ही चल बसीं लेकिन परिनिथा बच गईं.

अपराध पर लगाम कसा जाना बेहद जरूरी है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा. मगर इसके लिए एनकाउंटर का सहारा लेना कहीं से भी सही नहीं है. हर अपराधी को सज़ा देने के लिए कानून बना है. अगर हर फैसला एनकाउंटर से होने लगे तो लोगों का विश्वास न्याय व्यवस्था से उठ जाएगा. इसका परिणाम कितना भयानक हो सकता है इसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते.