वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में टिकाऊ पुष्प कृषि पद्धतियां और भूनिर्माण विषय पर 10 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा प्रायोजित है और इसका उद्देश्य देशभर के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं एवं कृषि विशेषज्ञों को पर्यावरण अनुकूल पुष्प विज्ञान एवं साज-सज्जा की टिकाऊ तकनीकों से प्रशिक्षित करना है।
कार्यक्रम का उद्घाटन विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान डॉ. संजीव कुमार चौहान ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर गहराई से प्रकाश डालते हुए कहा कि परंपरागत कृषि पद्धतियाँ अब पर्याप्त नहीं हैं और टिकाऊ, पर्यावरण-संवेदनशील तकनीकों को अपनाना समय की मांग है। उन्होंने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे इस प्रशिक्षण से प्राप्त ज्ञान को अपने कार्यक्षेत्र में लागू कर स्थानीय किसानों और समाज को लाभान्वित करें।
इस अवसर पर कार्यक्रम समन्वयक डॉ. पूजा शर्मा ने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की विस्तृत जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम देश के विभिन्न हिस्सों से आए 15 वैज्ञानिक प्रतिभागियों के लिए तैयार किया गया है, जिसमें उन्हें जलवायु अनुकूल फूलों की खेती, बागवानी में लैंडस्केप डिजाइनिंग, जल प्रबंधन, जैविक पोषण, और हरित ऊर्जा उपयोग जैसी तकनीकों पर व्यावहारिक और सैद्धांतिक प्रशिक्षण दिया जाएगा।
प्रशिक्षण के दौरान विषय विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान, प्रेजेंटेशन, फील्ड विज़िट और डेमोंस्ट्रेशन सत्र आयोजित किए जाएंगे। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रतिभागी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझते हुए स्थानीय स्तर पर वैज्ञानिक समाधान विकसित कर सकें। समारोह में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के वैज्ञानिकों, अधिकारी`गणों, शिक्षकों एवं छात्रों ने भी भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. एस.एस. ठाकुर द्वारा किया गया, जिन्होंने अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।
समापन अवसर पर कार्यकारी निदेशक डॉ. बी.एस. दिलटा ने सभी गणमान्य अतिथियों, आयोजकों, विशेषज्ञों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम न केवल ज्ञानवर्धन करते हैं, बल्कि वैज्ञानिकों के बीच सहयोग को भी बढ़ावा देते हैं। यह कार्यक्रम न केवल पुष्प विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को गति देगा, बल्कि टिकाऊ कृषि प्रणाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी सिद्ध होगा।