सवाल जवाब: शनि की साढ़ेसाती के समय गर्भधारण करना शुभ है या अशुभ जानें

इसे आज़माइए – वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार उत्तर-पूर्व दिशा में जल से भरे कांच के बड़े बर्तन में हरी और नीली कांच की गोलियां आर्थिक संबल प्रदान करती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, ऐसा करने करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और धन के मार्ग बनते हैं। ऐसे ही कुछ ज्योतिष सवालों के जवाब…

Shani-dev
शनि की साढ़ेसाती
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बात पते की
कुंडली के द्वादश भाव में यदि बुध हो, तो व्यक्ति दयावान, परोपकारी और त्यागी होता है। विदेश यात्रा से मध्यम सफलता मिलती है। कम बोलना पसंद करते हैं। इनके भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण के कारण लोग इन्हें सनकी समझते हैं। फ़्यूचर ट्रेडिंग और सट्टे में ये अपना सब कुछ गंवा बैठते हैं। अजीब फ़ैसलों से ये अपना धन खो देते हैं। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया होता है। व्यवसाय में इनकी सफलता संदिग्ध होती है। ये अपने चातुर्य का सही प्रयोग नहीं कर पाते। चिकित्सा व औषधियों पर इनका काफ़ी धन खर्च हो जाता है। यंत्र, मंत्र, तंत्र, अध्यात्म तथा गूढ़शास्त्र में इनकी स्वाभाविक रुचि होती है। ये सिद्धियां हासिल करके प्रसिद्ध होना चाहते हैं। तीर्थयात्रा और दान में व्यय करते हैं। इन्हें विचित्र विचित्र स्वप्न परेशान करते हैं। विश्वास के बदले इन्हें छल मिलता है। इनके कई निर्णय गलत हो जाते हैं। निकृष्ट लोगों की संगति इन्हें नुक़सान पहुंचाती है। ये सदैव बेसिर-पैर की चिंता में उलझे रहते हैं। इनका अंतर्मन दुःखी व व्यथित होता है। शत्रुओं से इन्हें कष्ट मिलता है। कई बार इन्हें अपमानित होना पड़ता है। विवाहेतर संबंध इन्हें मुसीबत में डाल देते हैं।

ज्ञान का पिटारा
दक्षिण पश्चिम में भारी वस्तुओं और फर्नीचर का प्रयोग आत्मविश्वास बढ़ाता है और सुरक्षा का भाव पैदा करता है। ये स्थिति सामाजिक और पारिवारिक प्रभाव में इज़ाफ़ा करती है। करियर में यह स्थिति लाभ का कारक बनती है। अगर आलमारी बनाना या भारी फर्नीचर रखना संभव न हो, तो यहां भारी वास्तु, इमारत या पहाड़ की तस्वीरें या पेंटिंग लगाना चाहिए, ऐसा वास्तु के नियम कहते हैं।

प्रश्न: क्या वायव्य कोण में धन रखने से धन में वृद्धि होती है? -विकास नारायण
उत्तर: सद्‌गुरुश्री कहते हैं, नहीं। पश्चिम और उत्तर के बीच की दिशा वायव्य कहलाती हैं। यहां रुपया-पैसा रखा हो, तो आमदनी अठन्नी और खर्च रुपैया होता है। इनके घर का बजट सदैव गड़बड़ाया रहता है। ग़ैरज़रूरी खर्च और कर्ज से ये लोग त्रस्त रहते हैं।

प्रश्न: क्या शनि की साढ़ेसाती में गर्भ धारण वर्जित है? -श्रेयस अग्रवाल
उत्तर: जी नहीं। शनि की साढ़ेसाती का गर्भ धारण से कोई संबंध नहीं है। सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि साढ़ेसाती के दरमियान आपका जीवन यथावत चलता रहता है। आप अपने समस्त दायित्वों का निर्वहन पूर्ववत करते रहते हैं। दरअसल, साढ़ेसाती कोई बुरा समय नहीं, बल्कि यह तो ख़ुद को संवारने निखारने और भविष्य में अपने विस्तार के लिए स्वयं को तैयार करने का काल है। अगर शनि तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में हो अथवा स्वग्रही हो, तो साढ़ेसाती अद्‌भुत फल प्रदान करती है।

प्रश्न: ज्योतिष में त्रिकोण क्या है? -चंचला सिंह
उत्तर: सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि ज्योतिष में लग्न, पंचम और नवम भाव को त्रिकोण कहा जाता है। त्रिकोण कुंडली के सबसे शुभ भाव होते हैं। शुभ, पाप या क्रूर कोई भी ग्रह यदि त्रिकोण का स्वामी हो, तो सदैव शुभ फल ही देता है। जन्म कुंडली के आकलन और अध्ययन के लिए त्रिकोण बेहद महत्वपूर्ण हैं।

प्रश्न: क्या सिंह राशि के लोग आत्ममुग्ध होते हैं? इस संबंध में विस्तार से बताएं। -प्रभा श्रीवास्तव
उत्तर: हां। सिंह राशि के लोग महत्वाकांक्षी, स्वाभिमानी, कुलीन, अधीर होने के साथ आत्ममुग्ध भी होते हैं। ये लोग बेहद वफ़ादार माने जाते हैं। सिंह राशि अग्नि तत्व की राशि है। यह पूर्व दिशा की द्योतक है। इसका चिन्ह शेर है। आकाश मंडल में इसका विस्तार 120 अंश से 150 अंश तक है। इस राशि का स्वामी सूर्य है। इसमें मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वाफाल्गुनी के चारों चरण, और उत्तराफाल्गुनी का प्रथम चरण समाहित है। सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि ये लोग दयालु और क्षमा करने वाले होते हैं। इनके भीतर आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा होता है। इनका दृष्टिकोण आशावादी होता है। ये साफ़ बोलने वाले होते हैं। कम आय में भी ये ठाटबाट से रह लेते हैं। घूमने व खाने पीने के शौक़ीन होते है। विपरीत लिंगियों के प्रति आकर्षण और कामेक्षा सामान्य से अधिक होती है। ये जीवन में एक से ज़्यादा संपत्ति अर्जित करते हैं। क्रोध में ये लोग हिंसक हो जाते हैं। झूठी तारीफ़ इन्हें नापसंद होती है।

प्रश्न: लग्न का सूर्य अच्छा है या ख़राब? -पुनीत जानी
उत्तर: सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि प्रथम भाव यानी लग्न में सूर्य हो, तो ऐसे व्यक्ति भावुक होते है। ये सुनी सुनाई बातों पर सरलतापूर्वक यक़ीन नहीं करते। यह स्थिति पिता के सुख में कुछ कमी का कारक बनती है। ऐसे लोगों को श्रेय ज़रा देर से मिलता है। इनके स्वभाव में नाटकीय रूप से उग्रता और मृदुता दोनों दृष्टिगोचर होती है। इनकी देह में अक्सर भारीपन आने लगता है और लचीलापन कम होने लगता है, जिससे इन्हें कभी-कभी मांसपेशियों में पीड़ा की शिकायत होती है।

अगर, आप भी सद्गुरु स्वामी आनंदजी से अपने सवालों के जवाब जानना चाहते हैं या किसी समस्या का समाधान चाहते हैं तो अपनी जन्मतिथ‍ि, जन्म समय और जन्म स्थान के साथ अपना सवाल