रविवार की सुबह तक किसी को अंदाजा नहीं था कि महाराष्ट्र की सियासत में इतना बड़ा भूचाल आने वाला है। लेकिन परदे के पीछे इसकी पूरी तैयारी देवेंद्र फडणवीस ने पहले ही कर ली थी। दोपहर होते होते पूरी सियासत ही बदल गई और कल तक एक दूसरे को गरियाने वाले दल सरकार शामिल हो गए।
महाविकास अघाड़ी की सरकार रही हो या फिर मौजूदा शिंदे सरकार हो अजित- देवेंद्र के बीच सदन में कभी तल्खी नहीं देखी गई। अलबत्ता अजित पवार और एकनाथ शिंदे के बीच नोकझोंक कई बार देखी गई। इन मधुर संबंधों की वजह से दिल्ली के निर्देश के बाद फडणवीस के दिनदहाड़े अजित पवार को सरकार में शामिल करा लिया और सीनियर पवार हाथ मलते रह गए।
अजित- देवेंद्र की दोस्ती
इस साल की तरह की पिछले साल भी देवेंद्र फडणवीस ने राज्य की सियासत में बड़ा फेरबदल किया था और एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर राज्य में शिंदे- बीजेपी सरकार बनाई थी। इसी साल अधिवेशन में अजित पवार ने सदन में राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस को बुकी अनिल जयसिंघानी और उसकी बेटी अनिष्का जयसिंघानी द्वारा धमकी और घूस देने का मामला उठाया था। पवार ने कहा था कि इससे सरकार की बदनामी हो रही है। सरकार को इसपर स्पष्टीकरण देना चाहिए। इसके बाद देवेंद्र ने अजित पवार का शुक्रिया अदा करते हुए सदन में जवाब दिया था। हालांकि, फडणवीस के पूरे स्पष्टीकरण के दौरान अजित पवार ने एक भी क्रॉस क्वेश्चन नहीं किया। ऐसा महसूस किया गया जैसे दोनों ही नेताओं के बीच में एक सांठगांठ हो। यह कोई पहला मामला नहीं है।
इसके अलावा अजित पवार ने कभी भी सदन में विवादित मुद्दों को नहीं उठाया। उन्होंने देवेंद्र फडणवीस की कभी भी सीधे तौर पर आलोचना नहीं की। ऐसा ही रिश्ता देवेंद्र फडणवीस की तरफ से देखा गया। फडणवीस और शिंदे अजित पवार को अजित दादा कहकर बुलाते रहे। फडणवीस ने कभी अजित पवार को टारगेट नहीं किया जबकि शरद पवार हमेशा उनके निशाने पर रहे। फडणवीस ने साल 2014 के समय में भी अजित पवार को ज्यादा टारगेट नहीं किया था।
जबकि उस समय महाराष्ट्र में अजित पवार पर 70 हजार करोड़ के करप्शन का आरोप लगा था और बीजेपी इस मुद्दे को जोरशोर से उठा रही थी। कुछ दिन पहले मोदी ने भी यह कहा था कि एनसीपी एक भ्रष्ट पार्टी है। एनसीपी को वोट देने का मतलब सुप्रिया सुले और शरद पवार को वोट देना होगा। मोदी ने भी अजित पवार को निशाना नहीं बनाया था।