हिमाचल के आधे से ज्यादा कॉलेज बिना प्रधानाचार्यों के ही चल रहे हैं। पिछले तीन सालों से कॉलेज प्रधानाचार्य के पद के लिए डीपीसी यानी विभागीय पदोन्नति कमेटी की बैठक ही नहीं हुई है। कॉलेज प्राध्यापक सरकार व विभाग के समक्ष यह मामला उठा रहे हैं। लेकिन विभाग कोर्ट केस का हवाला देकर हर बार उनकी मांग को टाल देता है।
हालत ये है कि प्रदेश के 138 कॉलेजों में से 66 कॉलेज ऐसे है, जिनमें प्रधानाचार्य नहीं है। 19 कॉलेजों में अस्थायी व्यवस्था अपनाते हुए कार्यकारी प्रधानाचार्य लगाए हैं। इन्हें काम प्रधानाचार्य का दिया गया है, लेकिन वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। दूसरे इन शिक्षकों को प्रधानाचार्य का कार्यभार देखने के साथ रूटीन की कक्षाएं भी लेनी पड़ती है।
10 कॉलेज ऐसे हैं जिनमें प्रधानाचार्य दिसंबर महीने तक सेवानिवृत्त होने वाले हैं। यदि विभाग पदोन्नति की सूची जल्द जारी नहीं करता तो कॉलेज प्रधानाचार्य के बिना ही हो जाएंगे। सरकार की अनदेखी के चलते कॉलेज प्राध्यापकों ने अपनी मांगों को लेकर कई बार आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। इससे पहले दो दिनों तक उन्होंने मूल्यांकन का बहिष्कार भी किया था।
विभाग की अनदेखी से ग्रेडिंग पर पड़ेगा असर
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने बजट के लिए ग्रेडिंग की शर्त लगाई हुई है। नैक ए, बी और सी ग्रेड के हिसाब से बजट देता है। ग्रेडिंग के लिए सबसे पहली शर्त पूरा स्टाफ होना चाहिए। प्रधानाचार्य का पद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। नैक की टीम जब कॉलेजों के निरीक्षण के लिए आती है तो प्रधानाचार्य ही टीम के साथ रहता है। जब कॉलेजों में प्रधानाचार्य ही नहीं है तो उनका ग्रेड गिरना स्वाभाविक है।