वाशिंगटन एप्पल पर आयात शुल्क 70 फीसदी से 50 फ़ीसदी करने का कांग्रेस सरकार ने विरोध जताया है। खुद हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसे बागवानों के खिलाफ बताया। इससे हिमाचल के सेब के अस्तित्व पर खतरा करार दिया।
इस बीच हिमाचल बीजेपी के सह मीडिया प्रभारी करण नंदा ने कहा कि सरकार जनता को बरगलाने की कोशिश कर रही है। जब 6 महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली सरकार ने सेब आयात शुल्क बढ़ाकर 50 फीसदी किया था, तब कांग्रेस सरकार ने इसका स्वागत क्यों नहीं किया? उन्होंने कहा कि जिसे कांग्रेसी सरकार आयात शुल्क बता रही है। वह वास्तव में रीटेलिएटरी टैरिफ (प्रतिशोधात्मक शुल्क) है।
करण नंदा ने कहा कि साल 2018 में इसे लेकर सब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संधि हुई थी, जिसे वापस लिया गया है। उन्होंने कहा कि यह शुल्क सिर्फ सेब के लिए ही नहीं बल्कि सभी फलों के लिए है। करण नंदा ने दावा किया कि बाहरी देश से आने वाला सेब कम से कम 70 रुपए प्रति किलो बिकेगा। इससे हिमाचल प्रदेश के सेब को कोई नुकसान नहीं होगा।
करण नंदा ने कांग्रेस से सवाल पूछा कि सत्ता में आने से पहले एपीएमसी एक्ट को लेकर कांग्रेस के बड़े-बड़े दावे थे। बागवानों से वादा किया गया था कि बागवानी वाले इलाकों में कोल्ड स्टोरेज वैन मिलेगी,अब उसका क्या हुआ। उन्होंने कहा कि आज भी बागवान का पैसा खा रहे हैं। सरकार को इस बात पर जवाब देना चाहिए। सरकार केवल जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है, जो सरासर गलत है।
बता दें कि सेब उत्पादकों के लिए तुर्किये और ईरान के साथ अब अमेरिका का वाशिंगटन एप्पल भी चुनौती बनेगा। दरअसल, 2018 में स्टील और एल्युमीनियम पर अमेरिका द्वारा आयात शुल्क लगाए जाने पर भारत सरकार ने अमेरिकी एप्पल समेत 28 वस्तुओं पर 20 प्रतिशत रीटेलिएटरी टैरिफ (प्रतिशोधात्मक शुल्क) लगाया था, जिससे अमेरिकी एप्पल पर आयात शुल्क 50 से बढ़कर 70 फीसदी हो गया था। अब पीएम मोदी ने अमेरिकी यात्रा के दौरान रीटेलिएटरी टैरिफ को वापस लेने का निर्णय लिया है, जो आने वाले 90 दिनों के भीतर लागू हो जाएगा। वहीं, रीटेलिएटरी टैरिफ खत्म होने की वजह से भारत में अमेरिकी एप्पल का आयात बढ़ जाएगा।