अधिकतर लोग दारा सिंह को चर्चित सीरियल ‘रामायण’ के ‘हनुमान जी’ या फिर एक अभिनेता के रूप में जानते हैं लेकिन उनके बारे में बताने योग्य बहुत सी बातें हैं जिसका ज्ञान शायद बहुत से युवाओं को ना हो. वह एक अभिनेता से पहले 500 कुश्तियों में अजय रहने वाले रुस्तम ए हिन्द और वर्ल्ड चैंपियन थे. दारा सिंह ने अपने महाबली होने का परिचय देते हुए कई मौकों पर देश को गौरवान्वित किया:
बचपन से था शरीर बनाने का शौक
19 नवंबर 1928 को पंजाब, अमृतसर के धर्मुचक गांव के ‘सूरत सिंह रंधावा’ और ‘बलवंत कौर’ के यहां एक बच्चे जन्म लिया. जन्म के समय परिवार वाले इस बात से अनजान थे कि उनके यहां हनुमान जी की छवि ने जन्म लिया है. बच्चे का नाम रखा गया दारा सिंह रंधावा. शरीर बनाने का चस्का दारा सिंह को बचपन में ही लग गया था. यही कारण था कि वो जमकर खाते और जमकर पसीना बहाते.
अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत करते हुए गुजारा करते थे. अपना शरीर बनाने के साथ ही दारा सिंह ने कुश्ती लड़ने का शौक भी पाल लिया था. कौन जानता था कि यही शौक एक छोटे से गांव के लड़के को विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान के रूप में इतना प्रसिद्द कर देगा कि बाहुबल के लिए उसका नाम मिसाल के तौर पर लिया जाएगा.
दारा सिंह के मन में अपने देश का नाम रौशन करने की लालसा हमेशा से रही. वक्त के साथ यह जोर पकड़ने लगी और 1947 में उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था. इस साल सिंगापुर में उनका मुकाबला ‘भारतीय स्टाइल’ की कुश्ती के मलेशियाई चैंपियन तरलोक सिंह से हुआ था. इसी कुश्ती में तरलोक को चरों खाने चित करने के बाद से दारा सिंह का विजयी अभियान शुरू हुआ. कई देशों के पहलवानों को पछाड़ने के बाद वे 1952 में भारत लौट आए. करीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनिया भर (पूर्वी एशियाई देशों) के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने.
विश्व चैंपियन ‘किंग कॉन्ग’ को भी धूल चटाई
कॉमनवेल्थ देशों का दौरा करने के दौरान उन्होंने वो कर दिखाया जिसकी बराबरी आज तक कोई नहीं कर सका. इसी मुकाबले के बाद दारा सिंह रातों रात सुपरस्टार बन गए. बनते भी कैसे न, दारा सिंह ने उस पहलवान को पछाड़ा था जिसने पूरी दुनिया में अपनी जीत का डंका बजाय था. ये पहलवान था विश्व चैम्पियन किंग कांग.
वहां मौजूद भीड़ ने एक बार तो ये सोच लिया था कि दारा सिंह इस 200 किलो के दैत्य के सामने टिक नहीं पाएंगे लेकिन मैच के शुरू होते ही जैसे लोगों का मन ही बदल गया. कहा जाता है करीब 200 किलो वजन के किंग कांग को दारा सिंह ने उठा कर रिंग से बाहर फेंक दिया था. मैच में किंग कांग को हरा कर दारा सिंह ने विजय का मुकुट पहना और इसके साथ ही वो ‘रुस्तम ए हिंद’ बन गए.
कहते हैं दारा की बढ़ती लोकप्रियता से कुछ लोग बुरी तरह भन्ना गए थे. इन भन्नाए हुए लोगों में नाम था कनाडा का विश्व चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा का. यही कारण रहा कि इन दोनों ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली. मगर यहां भी नतीजा वही रहा जो होता आ रहा था. यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को हराकर विश्व चैंपियनशिप का खिताब हासिल कर लिया.
भारत को विश्व विजेता बनाया
सन 1968 के मई महीने की वो 29 तारीख थी, जब बॉम्बे में विश्व के नए रैसलिंग चैंपियन को देखने हज़ारों लोगों की भीड़ जमा हुई थी. अधिकतर लोग यही मान रहे थे कि यहां दारा सिंह चित होने वाले हैं. ऐसा लगना स्वाभाविक भी था क्योंकि इनके सामने खड़ा था विशालकाय पहलवान अमेरिकी विश्व चैंपियन लाऊ थेज.
भले ही दारा सिंह ने दुनिया के लगभग हर देश के पहलवान को चित किया था लेकिन अब जो पहलवान उनके सामने था उसके आगे दुनिया का बड़े से बड़ा पहलवान भी खड़ा होने से डरता था. मुकाबला शुरू हुआ, बहुत से लोगों ने मैच शुरू होने से पहले ही मन ही मन लाऊ को विश्व विजेता मान लिया था लेकिन यहां लाऊ थेज के साथ उन दर्शकों का भी भ्रम टूटा जो दारा सिंह को कम आंक रहे थे.
29 मई 1968 को दारा सिंह ने लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन का ख़िताब अपने नाम करते हुए भारत के सिर पर विश्व विजेता का ताज रख दिया.
500 पहलवानों को किया था चित
कुश्ती का शहंशाह बनने के इस सफर में दारा सिंह ने पाकिस्तान के माजिद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैंपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिला दिया. 1983 में कुश्ती से रिटायरमेंट लेने वाले दारा सिंह ने 500 से ज़्यादा पहलवानों को हराया और ख़ास बात ये कि ज़्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया.
उनकी कुश्ती कला को सलाम करने के लिए 1966 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-पंजाब और 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के ख़िताब से नवाज़ा गया. इसके अलावा फिल्मों और धारावाहिकों में दारा सिंह द्वारा किए गए अभिनय के योगदान को भला कौन भूल सकता है. महाबली दारा सिंह पहलवानी और फिल्मों में अपनी मजबूत छाप छोड़ते हुए 84 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने के कारण 12 जुलाई 2012 को इस दुनिया से चल बसे.
इस प्रकार एक सफल पहलवान, एक सफल अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के तौर पर दारा सिंह ने अपने जीवन में बहुत कुछ पाया और साथ ही देश का गौरव बढ़ाया.