डंकी, हिरानी और शाहरुख़: 20 सालों में सभी हिट फ़िल्में देने वाला निर्देशक
- Author,वंदना
- पदनाम,सीनियर न्यूज़ एडिटर, एशिया
अगर आपने 90 के दशक के विज्ञापन देखे हैं तो लूना वाला टीवी विज्ञापन याद होगा जहां एक शख़्स अपना दुपहिया वाहन चलाते हुए कहता है- ‘चल मेरी लूना.’
या फिर फ़ेविकॉल का ऐड जहाँ एक बंदा कहता है कि ये फ़ेविकॉल का मज़बूत जोड़ है, टूटेगा नहीं.
इन विज्ञापनों में काम करने वाले एक्टर का नाम है राजकुमार हिरानी. वही राजकुमार हिरानी जिन्होंने शाहरुख़ ख़ान के साथ फ़िल्म ‘डंकी’ बनाई है.
ये वो निर्देशक हैं जो अनोखे मुद्दों को फ़िल्मों में पिरोने में महारत रखते हैं.
वो अपनी फ़िल्मों में मरीज़ को ज़हनी और जिस्मानी तौर पर दुरुस्त करने वाली जादू की झप्पी दिलाते हैं, कभी लेखों और किताबों से निकालकर गांधी को ‘गांधीगीरी’ का जामा पहनाते हैं और गांधी को ‘बंदे में हैं दम’ कहने का दम रखते हैं.
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और कभी ‘थ्री इडियट्स’ में डिग्रियों के नहीं सपनों के पीछे भागने की ख़्वाहिश जगाते हैं.
तो फ़िल्म पीके में ये एक एलियन के ज़रिए धरती वालों को धर्म पर सीख दिलवाते हैं.
वरिष्ठ फ़िल्म पत्रकार रामाचंद्रन श्रीनिवासन कहते हैं कि हिरानी ऐसे अकेले निर्देशक हैं जिन्होंने 20 सालों में जितनी भी फ़िल्में बनाईं वो सभी पाँच फ़िल्में सुपरहिट रही हैं.
वो क्या है जो उनकी हर फ़िल्म को सफल बनाता है?
बीबीसी सहयोगी मधु पाल से बातचीत में वरिष्ठ फ़िल्म विश्लेषक गिरीश वानखेड़े का कहना है कि उनकी फ़िल्मों में हास्य के साथ सामाजिक मुद्दे भी होते हैं.
वानखेड़े के मुताबिक़, “जो लोग फ़िल्म एडिटर से निर्देशक बनते हैं, उनकी फ़िल्मों में एक अलग बात होती है जैसे राजकुमार हिरानी. ऐसे लोगों की फ़िल्मों में ख़ास किस्म की स्पॉन्टेनिटी होती है, स्क्रिप्ट पर पकड़ होती है.”
“हिरानी के लेखन में हास्य के साथ समाज के गंभीर मुद्दों को उठाने की कला है. कहानी इतनी सधी हुई होती है कि आप उसमें गुम हो जाते हो.”
वो कहते हैं, “बहुत गंभीर किस्म की फ़िल्म थी ‘पीके’ लेकिन अपने स्क्रीनप्ले से हिरानी ने उसे मनोरंजक बना दिया.
“साधारण सी कहानी थी ‘मुन्नाभाई’ भी, लेकिन आपको आज भी उसके किरदार याद हैं. दर्शक को क्या पसंद आएगा हिरानी समझते हैं. सबसे बड़ी बात वो रिस्क लेने से नहीं डरते.”
ये अजीब इत्तेफ़ाक है कि 20 साल पहले दिसंबर में ही हिरानी की पहली फ़िल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ रिलीज़ हुई थी और उसके लिए राजू हिरानी ने शाहरुख़ ख़ान से बात की थी.
उस वक़्त शाहरुख़ ‘देवदास’ की शूटिंग कर रहे थे. लेकिन अपने इलाज के चलते शाहरुख़ ‘मुन्नाभाई’ नहीं कर पाए.
हालांकि फ़िल्म की कहानी को लेकर दोनों में काफ़ी बात होती थी और ‘मुन्नाभाई’ के एंड क्रेडिट्स में आपको शाहरुख़ का नाम भी दिखेगा.
वायरस से फुनसुख वांगड़ू तक
‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, ‘लगे रहो मुन्नाभाई’, ‘थ्री इडियट्स’, ‘पीके’ और ‘संजू’ …ये सब अलग किस्म की फ़िल्में थी.
सर्किट, वायरस सहस्रबुद्धे, फुनसुख वांगड़ू जैसे इन फ़िल्मों के क़िरदार भी अनोखे थे और डायलॉग भी पंच वाले होते हैं.
मसलन जब मुन्नाभाई का क़िरदार डॉक्टरी सीखते वक़्त कहता है, ‘206 टाइप की तो सिर्फ़ हड्डी है, तोड़ते टाइम अपुन लोग सोचते थे क्या’?
या मौत पर ये फ़लसफ़ा कि ‘लाइफ़ में जब टाइम कम रहता है न, डबल जीने का डबल’.
या थ्री ‘इडियट्स’ का फ़रहान ( माधवन) जब कहता है कि ‘दोस्त फ़ेल हो जाए तो दुख होता है लेकिन दोस्त फ़र्स्ट आए तो ज़्यादा दुख होता है.’
वरिष्ठ फ़िल्म पत्रकार रामाचंद्रन श्रीनिवासन के मुताबिक, ‘डंकी’ में शाहरुख़ जैसे सफल स्टार और हिरानी जैसे निर्देशक का साथ आना एक स्पेशल बात है.
पाकिस्तान से आया था हिरानी का परिवार
हिरानी की निजी ज़िंदगी की बात करें तो बंटवारे के बाद उनका सिंधी परिवार पाकिस्तान से आगरा पहुँचा और नागपुर में बसा, जहां उनके पिता ने टाइपराइटिंग सिखाने का काम शुरू किया.
स्कूल के बाद राजू हिरानी को इंजीनियरिंग में एडमिशन में नहीं मिला तो कॉमर्स और सीए की पढ़ाई शुरू की लेकिन अंक गणित समझ नहीं आता था.
फिर वही हुआ जो ‘थ्री इडियट्स’ के फ़रहान क़ुरैशी (आर माधवन) ने अपने पिता से कहा था, “मुझे नहीं समझ में आती इंजीनियरिंग. रैंचो बहुत सिंपल सी बात कहता है. जो काम में मज़ा आए उसे अपना प्रोफ़ेशन बनाओ. फिर काम काम नहीं, खेल लगेगा.”
राजू हिरानी ने भी अपने पिता से यही बात कही और पिता ने बहुत सहजता से कह दिया, ‘तो मत पढ़ो.’
फिर पिता के ही कहने पर ही हिरानी पुणे के फ़िल्म इंस्टिट्यूट गए.
हालांकि पहले साल उन्हें निर्देशन में एडमिशन नहीं मिला तो दूसरे साल एफ़टीटीआई में एडिटिंग में दाख़िला लिया.
फ़िल्मों के प्रोमो एडिट करते थे हिरानी
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एडिटिंग के गुर ने ही राजकुमार हिरानी के फ़िल्मी करियर की बुनियाद रखी जहाँ वो शॉर्ट फ़िल्में वगैरह एडिट करने लगे और फिर विज्ञापन बनाए.
जब विधु विनोद चोपड़ा ‘1942 ए लव स्टोरी’ बना रहे थे तो हिरानी ने उस फ़िल्म का और फिर ‘करीब’ का प्रोमो हिरानी से बनवाया.
साल 2000 में ‘मिशन कश्मीर’ की एडिटिंग का मौका हिरानी को मिला और वहीं से हिरानी ने फ़ैसला किया कि वो अपनी फ़िल्म बनाएँगे.
करीब एक साल तक हिरानी ने कोई काम नहीं किया और सिर्फ़ एक कहानी पर काम करते रहे जो उनके उन असल दोस्तों के इर्द गिर्द थी जो मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करते थे.
कई पड़ावों से गुज़रते हुए, अनिल कपूर, विवेक ओबरॉय से शाहरुख़ तक होते हुए राजकुमार हिरानी ने संजय दत्त के साथ अपनी पहली फ़िल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ बनाई.
दिलचस्प बात ये है कि इस फ़िल्म में संजय दत्त शुरू में वो रोल कर रहे थे जो जिमी शेरगिल ने किया.
लेकिन ऐसा नहीं है कि हिरानी आलोचना से परे रहे हैं. जब संजय दत्त की ज़िंदगी पर बनी फ़िल्म ‘संजू’ आई तो रणबीर कपूर के काम की तारीफ़ हुई और क्रिटिक्स ने इसे मनोरंजक फ़िल्म बताया.
लेकिन हिरानी के ही बहुत सारे प्रशंसकों ने इसे ‘प्रोपेगैंडा फ़िल्म’ भी कहा.
‘संजू’ की आलोचना
फ़िल्म क्रिटिक एना वेटिकाड ने 2018 में फ़र्स्टपोस्ट में लिखे अपने फ़िल्म रिव्यू में कहा था, “रणबीर कपूर ने कमाल काम किया है लेकिन ये एक डिस्हॉनेस्ट संजय दत्त बायोपिक है.”
“राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी ने संजय दत्त की ज़िंदगी से चुनिंदा तथ्य लिए हैं और उन तथ्यों को अपने दुलार में भिगो कर हीरो को पर्दे पर उतारा है.”
“संजय दत्त की ऐसी कमियाँ जो पहले से जगज़ाहिर हैं उन्हें हल्के- फुल्के कॉमेडी वाले अंदाज़ में परोस दिया गया. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये हिरानी जैसे निर्देशक ने किया जो कई बेहतरीन फ़िल्में दे चुके हैं.”
गिरीश वानखेड़े कहते हैं, “संजू को लेकर कई लोगों ने आलोचना की थी कि एक विवादित और जीवित स्टार को लेकर कैसे फ़िल्म बना सकते हैं.”
“प्रोपेगैंडा की तरह ही हो गया था कि जो व्यक्ति जेल जा चुका है उसकी कहानी में हीरोइज़्म डाल दिया. लेकिन हिरानी ने ये चुनौती स्वीकार की और इसे भी सफल बनाया.”
राजकुमार हिरानी ने बतौर एडिटर करियर की शुरुआत की थी और आज तक वो अपनी फ़िल्में ख़ुद एडिट करते हैं.
अपनी फ़िल्म की कहानी भी साथी अभिजात जोशी के साथ ख़ुद लिखते हैं. अब तो उनका अपना प्रोडक्शन हाउस भी है.
कभी राज कपूर, ऋषिकेश मुखर्जी जैसी हस्तियां थीं जिनके साथ क्रेडिट में लिखा जाता था- निर्देशक, निर्माता, स्क्रीनप्ले, एडिटर.
बात इन सबकी आपस में तुलना की नहीं है. पर आज के दौर में राजकुमार हिरानी भी इस काबिल फ़ेहरिस्त में शामिल हो गए हैं.
मानो अपनी ही फ़िल्म ‘थ्री इडियट्स’ का डायलॉग याद कर रहे हों, ‘बच्चा क़ाबिल बनो क़ाबिल, क़ामयाबी तो झक मार कर पीछा करेगी.’