हमारे देश में लंगर/रसोई प्रथा का चलन बहुत पुराना है. जैसा कि हम सब जानते हैं लंगर में बैठ कर कोई भी व्यक्ति बिना शुल्क दिए खाना खा सकता है. देश के छोटे-बड़े अनेकों धार्मिक स्थलों पर लंगर मिलना आम बात है. आपने भी बहुत से लंगर देखे होंगे लेकिन आज हम आपको एक ऐसे लंगर के बारे में बताने जा रहे हैं जो सालों से चला आ रहा है.
186 साल से चल रही है ये रसोई
हम बात कर रहे हैं उस रसोई की जिसे अवध के नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1837 में शुरू करवाया था. इसे छोटे इमाम बाड़े के निर्माण के बाद उसी जगह शुरू करवाया गया था. इस रसोई में शाकाहारी खाने की दावत होती थी. इस रसोई की खास बात ये थी कि यहां सभी धर्मों के लोग खाना खा सकते थे. आज 186 साल बाद भी ये रसोई चल रही है.
रमजान के महीने में 24 घंटे इस रसोई खाना बनता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस रसोई में रोजाना 50 किलो पकौड़ी बनती है. रोटियों की तो यहां कोई गिनती ही नहीं, इसके साथ ही यहां चने की दाल और आलू की सब्जी भी बड़ी मात्रा में बनाई जाती है.
खाने को लेकर नहीं है कोई रोकटोक
गरीब रोजेदारों के अलावा अन्य धर्मों के जरूरतमंद लोग यहां मुफ्त में खाना खाते हैं. इसके साथ ही रोजेदार यहां से अपने परिवार के लिए भी खाना पैक करा कर ले जाते हैं. यहां की अच्छी बात ये है कि किसी को खाने के लिए रोका नहीं जाता, जो जितना मांगता है उसे उतना खाना दिया जाता है. यहां पर सुबह 11 बजे से खाना मिलने लगता है, जो शाम को इफ्तारी के वक्त तक उपलब्ध रहता है.
मोहम्मद अली शाह ने शुरू की थी ये रसोई
न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार इस रसोई के संबंध में इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट का कहना है कि छोटे इमामबाड़े के निर्माण के लिए मोहम्मद अली शाह ने अंग्रेजों के पास 26 लाख जमा कराए थे. बाद में अंग्रेजों का शासन जब खत्म हुआ तब ये पैसा हुसैनाबाद ट्रस्ट में चला गया. इन्हीं पैसों से ये रसोई चलाई जा रही है. इसकी शुरूआत नवाब ने ही की थी.
यहां के सेवादार मुर्तुजा हुसैन उर्फ राजू के अनुसार यह नवाबों के वक्त की रसोई है. जिस वजह से शाही रसोई कहा जाता है. ये 24 घंटे खुली रहती है. इस रसोई की खासबात ये है कि यहां एकदम शुद्ध और शाकाहारी भोजन मिलता है. इसके साथ ही खाने के लिए किसी को पैसे नहीं देने पड़ते. शाकाहारी भोजन होने के कारण यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं और मुफ़्त में खाना खाते हैं. यहां से हुसैनाबाद ट्रस्ट में आने वाली मस्जिदों में भी खाने को भेजा जाता है शाम के वक्त इफ्तारी के लिए ताकि कोई भी भूखा न रहे.
रिपोर्ट के अनुसार कई लोग हैं जो यहां हर रोज खाना खाने आते हैं. रमजान के महीने में यहां पर लंबी लाइन लगती है. लोग अपना खाना पैक करके ले जाते हैं और घर पर खाते हैं. खाने का स्वाद भी बहुत अच्छा होता.