मराठा आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय में महाराष्ट्र सरकार की उपचारात्मक याचिका के समर्थन में राज्यभर में आज से सवा लाख से अधिक गणनाकारों एवं अधिकारियों की मदद से अनिवार्य सर्वेक्षण शुरू होगा. राज्य के राजस्व मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल ने सोमवार को कहा कि गणनाकारों को इस प्रक्रिया को त्रुटिहीन रखने का निर्देश दिया गया है. यह प्रक्रिया 31 जनवरी तक चलेगी.
उन्होंने एक बयान में कहा कि अधीक्षकों और अधिकारियों समेत सवा लाख से अधिक गणनाकारों को यह कार्य करने के लिए नियुक्त किया गया है. उनका प्रशिक्षण पूरा हो गया है. राज्य के सभी 36 जिलों, 27 नगर निगमों और सात छावनी बोर्ड में सर्वेक्षण मंगलवार को शुरू होगा जो 31 जनवरी तक चलेगा.
पाटिल ने कहा कि राजस्व विभाग महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के लिए यह काम कर रहा है. डाटा प्रविष्टि डिजिटल स्वरूप में होगी जिससे निगरानी अधिकारी समय से उस पर नवीनतम जानकारी रख पायेंगे. रिकॉर्ड सीधे आयोग में पंजीकृत किये जाएंगे. मंत्री के अनुसार, राज्य सरकार की ओर से सेवानिवृत न्यायाधीश संदीप शिंदे के नेतृत्व में नियुक्त की गयी समिति ने 28 अक्टूबर से 17 जनवरी तक राज्य में ओबीसी के 57 लाख रिकार्ड हासिल किये जिनमें से डेढ़ लाख लोगों ने कुनबी जाति प्रमाणपत्र भी हासिल किये हैं.
मराठा आरक्षण की मांग कब शुरू हुई: मराठा, जो राज्य की आबादी का लगभग 33% हिस्सा हैं, शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं. यह वर्ष 1981 की बात है जब मथाडी मजदूर संघ के नेता अन्नासाहेब पाटिल के नेतृत्व में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर पहला विरोध प्रदर्शन हुआ था. समुदाय मराठों के लिए कुनबी जाति प्रमाण पत्र की मांग कर रहा है जो उन्हें आरक्षण के लिए ओबीसी श्रेणी में शामिल करने में सक्षम बनाएगा. कृषि से जुड़े कुनबियों को महाराष्ट्र में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में रखा गया है.
2014 में, जब कांग्रेस राज्य में सत्ता में थी, सरकार मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का अध्यादेश लेकर आई थी. महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में एक विशेष प्रावधान- सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम के तहत मराठा कोटा को अपनी मंजूरी दे दी.
2019 में हाई कोर्ट का फैसला : जून 2019 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा कोटा की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा. कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी कर दिया. दो साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत कोटा सीमा का उल्लंघन करने के लिए मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र कानून के प्रावधानों को रद्द कर दिया. 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी कोटा बरकरार रखा. इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी. 2023 में हालिया भड़की हिंसा के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मांग की कि केंद्र संसद का विशेष सत्र बुलाकर मराठा आरक्षण के मुद्दे को हल करे.