यह किसी से छिपा नहीं है कि कचरे के रूप में हमारे आस-पास मौजूद प्लास्टिक, पर्यावरण और हमारे लिए कितना नुकसान दायक है. यह न सिर्फ़ वातावरण को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि जीव-जंतुओं की मौत का बड़ा कारण भी बन रहा है. यही कारण है कि हर स्तर पर ऐसी कोशिश की जा रही है कि प्लास्टिक के कचरे को रिसाइकल किया जाए, ताकि उसका दोबारा इस्तेमाल हो सके.
इसी दिशा में मदुरै के टीसीई इंजीनियरिंग कॉलेज के एक प्रोफ़ेसर वर्षों तक काम किया और प्लॉस्टिक के कचरे से सड़कें बनाने का आइडिया पूरी दुनिया को दे दिया. जिन्हें आज लोग ‘प्लास्टिक मैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से जानते हैं. इस मशहूर शख़्स को अपने इस काम के लिए भारत सरकार द्वारा पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है.
प्लास्टिक से सड़क बनाने वाला प्रॉफ़ेसर कौन है?
प्लास्टिक से सड़क बनाने वाले इस प्रॉफे़ेसर का नाम राजगोपालन वासुदेवन है, जोकि मदुरै के टीसीई इंजीनियरिंग कॉलेज में केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर हैं. वह साल 2002 था, जब सबसे पहले थिएगराजार कॉलेज के परिसर में वासुदेवन प्लास्टिक कचरे से रोड बनाने में सफ़ल रहे.
अपने इस काम के लिए वासुदेवन को पहचान पाने में एक लंबा समय लगा. कहते हैं, करीब 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद उनकी इस तकनीक को मान्यता तब मिली, जब वह अपने इस प्रोजेक्ट को तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के पास लेकर गए. कथित तौर पर जयललिता ने उनके इस काम की सराहना की थी और मदद के लिए कदम भी आगे बढ़ाया था.
जब अमेरिका के 1400 करोड़ का ऑफर ठुकराया
आगे इस आइडिया के बारे में दुनिया को पता चला, तो उसने वासुदेवन से यह आइडिया खरीदने की कोशिश की. मगर, वासुदेवन ने मना कर दिया और नि: शुल्क भारत सरकार को अपनी यह तकनीक सौंप दी, जिसकी मदद से हज़ारों किलोमीटर तक सड़क बनाई जा चुकी हैं.
कहा जाता है कि इनका ये बेहद ही खास आइडिया खरीदने के लिए अमेरिका ने उन्हें करीब 1400 करोड़ रुपये ऑफर किए थे, लेकिन उन्होंने यह ऑफर ठुकरा दिया और अपना यह आइडिया और इनोवेशन भारत सरकार को फ्री में दे दिया, जिसकी वजह से आज हमारे पूरे देश में क्रांति आ गई है.
अब पूरी दुनिया करती है इस तकनीक का उपयोग
उनकी तकनीक आज पंचायतों, नगर पालिकाओं, यहां तक कि एनएचआई द्वारा भी प्रयोग में लाई जा रही है. यही नहीं, इससे प्रेरित होकर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने कचरे के प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उपयोग करने के लिए एक मिशन भी शुरू किया है.
इसके तहत प्लास्टिक कचरा प्रबंधन पर जागरूकता फैलाने के लिए देश भर में लगभग 26 हज़ार लोगों को जोड़ा गया है और अपशिष्ट प्लास्टिक का संग्रह किया जा रहा है, ताकि उसका प्रयोग सड़क बनाने में किया जा सके.
भारत में पहले से ही प्लास्टिक से बनी करीब 100,000 किलोमीटर की सड़कें मौजूद हैं, साथ ही कई अन्य प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है.
पूरी दुनिया करती है इस तकनीक का उपयोग
सिर्फ़ भारत में ही नहीं, वासुदेवन की तकनीक दुनिया भर के विभिन्न देशों द्वारा लागू की जा रही है. इंडोनेशिया में बाली, सर्बिया, बेकासी, मकसार, और सहित अन्य कई जगहों में प्लास्टिक-डामर मिश्रण का उपयोग करके इसी तरह की तकनीक वाली प्लास्टिक की सड़कें बनाई जा रही हैं.
नीदरलैंड के उत्तरपूर्वी भाग में साइकिल चालकों के लिए डच कंपनी वर्कर सेल द्वारा प्लास्टिक की सड़कों का निर्माण किया गया था. इसी क्रम में यूनाइटेड किंगडम घोषणा कर चुका है कि वह प्लास्टिक रोड प्रौद्योगिकी के परीक्षण के लिए 1.6 मिलियन पाउंड का निवेश करेगा. बहरहाल, ‘प्लास्टिक मैन ऑफ़ इंडिया’ राजगोपालन वासुदेवन की प्रतिभा को सलाम!