सावन के पहले सोमवार पर बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली। कांवड़ियों ने कांवड़ लाकर शिवलिंग का अभिषेक भी किया। बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर को बिहार का देवघर भी कहा जाता है। यहां के शिवलिंग नीले रंग के हैं, जिसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी और मंदिर का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में खास बातें…
आज भी प्रज्वलित है अग्नि
अरवल और औरंगाबाद जिले की सीमा पर स्थित बाबा की नगरी देवकुंड धाम बहुत प्रसिद्ध है। महर्षि च्यवन ने इस स्थान को तपोभूमि बनाया और वर्षों तपस्या की। पांच सौ साल पहले बाबा बालपुरी ने महर्षि च्यवन के आश्रम में कड़ी साधना की और हवन करने के बाद जिंदा समाधि ले ली। तब से उस कुंड की अग्नि आज तक प्रज्वलित है। ऐसा नहीं है कि यहां हर रोज हवन होता है और ऊपर से देखने पर कुंड राख का ढेर लगता है लेकिन राख में थोड़ा हाथ डालेंगे तब आपको नीचे अग्नि का अहसास होगा।
भगवान श्रीराम ने की थी शिवलिंग की स्थापना
बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर का संबंध भगवान श्रीराम से भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी के दौरान माता सीता के साथ पुष्पक विमान से यहां उतरे थे। उन्होंने यहां नीलम पत्थर के नीले रंग के शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया था। भगवान श्रीराम द्वारा शिवलिंग का दूध से अभिषेक करने पर यहां शिव बाबा दुधेश्वर नाथ के रूप में कालांतर में प्रसिद्ध हुए।
विश्वकर्मा ने किया मंदिर का निर्माण
मंदिर के निर्माण को लेकर मान्यता है कि औरंगाबाद के देव और उमगा के बाद देवकुंड धाम एक ही रात में भगवान विश्वकर्मा द्वारा मंदिर का निर्माण किया गया। यहां का मंदिर पूर्ण नहीं है, जिसके बारे में कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण करते-करते सुबह हो गई थी। इस कारण देव शिल्पी द्वारा निर्माण कार्य रोक दिया गया, जिसकी वजह से मंदिर अधूरा रह गया। देखने पर यह मंदिर आज भी अधूरा लगता है। मान्यता है कि यहां सावन माह में कांवड़ लेकर आने और शिव का जलाभिषेक करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
पूरी होती हैं मनोकामनाएं
देवकुंड धाम बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से यहां शिवलिंग का अभिषेक करता है, भगवान शिव उसके सभी कष्टों को दूर करते हैं और ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है। देवताओं की नगरी देवकुंड अपने आप में तमाम विशेषताओं को समेटे हुए है। इसके बावजूद सरकार और पर्यटन विभाग की नजरों से यह पवित्र स्थान उपेक्षित है। सरकार और पर्यटन विभाग अगर इस स्थान को धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करे तो यहां की महिमा चारों तरफ फैल सकती है।