100 साल से खड़े चार मंजिला मकान की दीवारों की सराहना तो बनती है लेकिन उससे भी ज्यादा तारीफ होनी चाहिए उस मजबूत नींव की जिसने इन दीवारों को इतने सालों तक खड़ा रहने की हिम्मत दी. आज की तारीख में कामयाब हो चुके बिजनेस ब्रांड भी इन 100 साल पुराने चार मंजिला इमारतों की तरह ही हैं. इन ब्रांड्स को खड़ा करने वालों को उस इमारत की नींव की तरह देखा जाना चाहिए.
आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही ब्रांड की जो शुरू तो हुआ एक बटन बनाने वाली छोटी सी कंपनी के रूप में लेकिन आज बन गया है 1800 करोड़ का प्लास्टिक साम्राज्य :
नीलकमल और लोगों का भरोसा
आज की तारीख में एक से एक फर्नीचर आ चुके हैं लोगों के बीच इसके बावजूद बहुत से लोगों की पहली पसंद नीलकमल की प्लास्टिक कुर्सियाँ ही हैं. एक समय था जब कुर्सियों की बात आने पर सिर्फ एक ही नाम सामने आता था और वो था नीलकमल. मजबूती के मामले में इस कंपनी का कोई तोड़ नहीं. बहुत से लोगों ने नीलकमल के नाम पर नकली कुर्सियां भी बाजार में बेचनी चाहीं लेकिन इस ब्रांड की बराबरी ना कर पाईं. लोगों का भरोसा जीत कर ब्रांड बन चुकी इस प्लास्टिक कंपनी ने दशकों पहले बटन बनाने से अपने व्यापार का सफर शुरू किया था.
बटन बनाने से की थी बिजनेस की शुरुआत
ये कहानी शुरू होती है दो भाइयों बृजलाल बंधुओं से. ये दोनों भाई व्यापार के बेहतर विकल्प खोजते हुए गुजरात से बंबई आए थे. इनका गुजरात में भी एक बिजनेस था लेकिन इनके एक बिजनेस पार्टनर ने इनका साथ छोड़ दिया जिसके बाद इन भाइयों को नया व्यापार शुरू करने के लिए बंबई आना पड़ा.
इन भाइयों ने ये फैसला किया कि ये प्लास्टिक के बटन बनाने का कारोबार शुरू करेंगे. इसके लिए इन्होंने एक मशीन भी खरीदी. समय के साथ ये बात सामने आई कि इस व्यवसाय में लागत ज्यादा लग रहा था. वहीं उनका उत्पाद थोड़ा नया भी था इसलिए इसे सही तरीके से बाजार में लाना एक चुनौती की तरह था. परेशानियों के बावजूद दोनों भाइयों ने इस व्यापार को जारी रखने का फ़ैसल किया.
देश को दिया नए तरह का बटन
दरअसल इससे पहले भारत में मेटल के बटनों का प्रयोग होता था जो भारी हुआ करते थे. बृजलाल बंधुओं के इन प्लास्टिक बटनों ने लोगों को बटन के लिए एक नया और हल्का विकल्प दिया और लोगों ने इसे पसंद भी किया. ऐसे में उनका व्यापार सफल होने लगा. बटनों के व्यापार में जब इन भाइयों को अच्छी प्रतिक्रिया मिलने लगी तो इनके हौसले और भी ज्यादा बढ़ गए. तभी इन भाइयों ने बटनों के व्यापार से आगे बढ़ने के बारे में सोचा.
पूरी तरह उतार गए प्लास्टिक कारोबार में
इन्होंने सोचा कि अब ये बाजार में प्लास्टिक से बने अन्य उत्पादों उतारेंगे. जल्द ही इन्होंने अपनी सोच कर धरातल पर उतार दिया. वे अब सिर्फ प्लास्टिक के बटन ही नहीं बल्कि घरों में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के अन्य घरेलू सामान जैसे मग और कप भी बनाने लगे. अच्छी बात ये रही कि उनका ये प्रयोग भी सफल रहा. 1964 तक बृजलाल बंधू पूरी तरह से प्लास्टिक के कारोबार में उतर चुके थे. उन्होंने पानी के जमा करने वाले ड्रम जैसे बड़े प्लास्टिक उत्पादों को बनाने के लिए बड़ी मशीनें खरीद लीं.
अगली पीढ़ी ने संभाली कमान
बृजलाल बंधू अपना काम कर चुके थे. उन्होंने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए मजबूत नींव तैयार कर दी थी इससे आगे उनके बच्चों को इस नींव पर शानदार बहुमंजिला इमारत खड़ी करनी थी. बृजलाल बंधुओं के बाद प्लास्टिक कारोबार की कामान संभाली उनके बेटों वामन पारेख और शरद पारेख ने. उन्होंने 1981 में नीलकमल प्लास्टिक का गठन किया. दरअसल नीलकमल एक प्लास्टिक निर्माण इकाई थी जिसे उन्होंने 1970 में खरीदा और नाम का उपयोग जारी रखने का फैसला किया.
2005 में, कंपनी ने खुदरा क्षेत्र में प्रवेश किया था और सूची में उत्पादों की एक नई श्रृंखला शामिल की थी. और ये नई शृंखला थी प्लास्टिक फर्नीचर. उन्होंने इनका निर्माण और खुदरा बिक्री शुरू कर दी है. इससे पहले, कंपनी विशुद्ध रूप से दूध कारखानों और दुकानों को दूध के बक्से जैसे उत्पादों की बी2बी बिक्री किया करती थी.
आज है 1800 करोड़ की कंपनी
कंपनी ने कड़ी मेहनत और अपनी नई सोच के दम पर बहुत कामयाबी हासिल की. 1991 में इनके रेवेन्यू में भारी उछाल देखने को मिला. तब से लेकर आज तक इनके रेवेन्यू में 25.1 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वृद्धि देखने को मिली है. 27 सालों में इनके रेवेन्यू ₹5.09 करोड़ से बढ़ कर ₹2,160 करोड़ तक हो गया. मार्च 2018 में वित्तीय वर्ष के अंत में, कंपनी ने 123 करोड़ रुपये का लाभ और 1,800 करोड़ रुपये का मार्केट कैप दर्ज किया था. कंपनी ने इक्विटी पर 14.5 फीसदी का रिटर्न दिया.
प्लास्टिक बटन बनाने वाली एक साधारण सी कंपनी को बृजलाल ब्रदर्स के बाद उनके बेटों ने कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचा दिया. आज नीलकमल लिमिटेड कंपनी की बागडोर बृजलाल ब्रदर्स की तीसरी पीढ़ी संभाल रही है. उनके पोते मिहिर पारेख इस कंपनी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं.