17 दिनों बाद सिलक्यारा टनल से बाहर निकले 41 मजदूर अब अपने-अपने अनुभवों को सांझा कर रहे हैं। मंडी जिला की बल्ह घाटी के बंगोट गांव के विशाल ने भी टनल (Tunnel) के अंदर बिताए 17 दिनों की कहानी को अपनी जुबानी बयां किया। विशाल ने बताया कि जब हादसा हुआ तो उसके 36 घंटों तक उन्हें टनल के अंदर मौजूद ऑक्सीजन (Oxygen) से ही गुजारा करना पड़ा और पानी पीकर ही पेट भरना पड़ा। लेकिन जब अंदर घुटन होने लगी तो टनल से पानी की निकासी के लिए जो पाईपें बिछाई गई थी उन्हें खोला गया और वहां से ऑक्सीजन ली गई। यह दो पाईपें थी जिसमें एक 4 इंच की और दूसरी 3 इंच की थी।
इन्हीं पाइपों के सहारे 36 घंटों बाद बाहर के लोगों से संपर्क हो पाया और इन्हीं से ड्राई फ्रूट (dry fruit) और खाने का अन्य सामान प्राप्त हुआ। 12 दिनों तक इन्हीं के सहारे पेट भरा और उसके बाद जब 6 इंच का पाईप अंदर पहुंचा तब जाकर खाना नसीब हुआ। विशाल ने बताया कि एक तरह से सभी ने मौत को करीब से देखा क्योंकि 36 घंटों तक किसी से कोई संपर्क नहीं हो पाया था।
परिवार की तरह रहे सभी, बढ़ाते रहे एक-दूसरे का हौंसला
विशाल ने बताया कि हादसे के बाद सभी लोग एक परिवार की तरह एकजुट हो गए और एक-दूसरे का हौंसला बढ़ाते गए। टनल के अंदर 2 किमी का एरिया था जहां पर टहलते थे और समय व्यतीत करते थे। समय बीताने के लिए कभी कागज के पत्ते बनाए तो कभी मिट्ठी के खिलौने बनाकर समय व्यतीत किया। अंदर लाईट की व्यवस्था थी और शौच के लिए दूर जाते थे। ओढ़ने के लिए टनल में इस्तेमाल होने वाले कंबलनुमा कपड़े का इस्तेमाल किया जो वहां पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था।
बाहरी लोगों के साथ संपर्क होने के बाद हौंसला बढ़ गया कि हम हर हाल में बाहर निकलेंगे और इसी उम्मीद के साथ 17 दिन निकल गए। सभी ने अपने मोबाईल फोन स्वीच ऑफ कर दिए थे और उन्हें तभी ऑन करते थे जब समय देखना होता था। अंदर मोबाईल सिग्नल नहीं था। सिर्फ पाइप के माध्यम से ही संपर्क हो रहा था।
दुआओं के लिए सभी का आभार, परिवार नहीं चाहता कि टनल में करूं काम
विशाल ने सभी फंसे हुए लोगों के लिए दुआएं करने के लिए पूरे देश वासियों का आभार जताया है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तराखंड के सीएम और कंपनी प्रबंधन सहित इस कार्य में जुटे सभी लोगों का दिल से आभार जताया है। विशाल ने बताया कि परिवार के लोगों ने स्पष्ट कह दिया है कि टनल में काम नहीं करना है। इसलिए प्रदेश सरकार से रोजगार दिलाने की गुहार लगाएंगे। आशा करता हूं कि सरकार कहीं न कहीं रोजगार जरूर उपलब्ध करवाएगी।