जानें क्यों भिड़े दो मुस्लिम देश, पड़ोसी ईरान और पाकिस्तान के बीच बात ‘बमबारी’ तक कैसे पहुंची

ईरान की सरकारी मीडिया के अनुसार, ईरान ने मंगलवार को पाकिस्तान में एक जिहादी समूह पर मिसाइल और ड्रोन से हमला किया. गाजा में फिलिस्तीन इजरायल के युद्ध के बीच ईरान की ओर से पाकिस्तान पर की गई एयर स्ट्राइक ने पूरे मध्य पूर्व में तनाव के नये कमान खींच दिये हैं. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस हमले की निंदा की है. उसने कहा है कि ईरान ने ‘अकारण’ ही पाकिस्तानी एयर स्पेस का उल्लंघन किया है. इस्लामाबाद ने हमले की निंदा करते हुए कहा कि इसमें दो बच्चों की मौत हो गई और तीन घायल हो गए.

बता दें कि सोमवार को ही ईरान ने अपने कुछ अधिकारियों और सहयोगियों की हत्या के प्रतिशोध में सीरिया में एक आतंकवादी ठिकाने पर और इराक में बैलिस्टिक मिसाइलें दागी थीं. गाजा युद्ध के जवाब में, ईरान अपने क्षेत्रीय सहयोगी समूहों के नेटवर्क के साथ काम करते हुए, इजराइल और अमेरिका के साथ अप्रत्यक्ष टकराव में है. हालांकि, ईरान का कहना है कि वह अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के खिलाफ हमलों और घरेलू संघर्ष से बचाव कर रहा है. इसी महीने ईरान के शहर केरमान में इस्लामिक स्टेट समूह की एक शाखा की ओर से की गई बमबारी में लगभग 100 लोग मारे गए थे.

सोमवार को एक ईरानी अधिकारी ने मीडिया को दिये बयान में कहा कि ईरान जानता है कि वह एक गंभीर वैश्विक संकट से सबसे प्रतिकूल रूप से प्रभावित है. उन्होंने कहा कि इस वैश्विक संकट को देखते हुए ईरान नियोजित जोखिम ले रहा है ताकि क्षेत्रीय संघर्ष को नियंत्रित रखा जा सके.

धार्मिक मतभेद और वैश्विक राजनीति की चक्की में पिस गया पाकिस्तान : पाकिस्तान और ईरान के बीच साझा सुरक्षा चिंताएं दोनों देशों के बीच तनाव और सहयोग दोनों को बढ़ावा देने की क्षमता रखते हैं. दोनों देश आतंकवाद और उग्रवाद से लड़ने में रूचि तो दिखाते रहे हैं लेकिन उनकी अपनी सीमायें भी रही हैं. पाकिस्तान एक सुन्नी बहुल देश है जबकि ईरान में शिया मुसलमानों की संख्या अधिक है. हालांकि, बीते 70 सालों में पाकिस्तान और ईरान के बीच वाणिज्य, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के साथ-साथ क्षेत्रीय स्थिरता को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रयास हुए हैं. लेकिन ईरान और सऊदी अरब के बीच संघर्ष ने इसे कभी फलने फूलने नहीं दिया है. यह जाहीर बात है कि पाकिस्तान ज्यादातर सऊदी अरब के कूटनीतिक प्रभाव में रहा है.

पाक की अमेरिका से दोस्ती, नाराज ईरान : ईरान और सऊदी अरब के बीच संघर्ष क्षेत्र में प्रभाव को लेकर संघर्ष होते रहे हैं. इसके अतिरिक्त, दोनों देशों के बीच काफी धार्मिक मतभेद हैं, जो कभी-कभी संघर्ष का कारण बनते हैं. जिसका असर पाकिस्तान पर भी पड़ा है. पाकिस्तान और ईरान के संबंधों पर एक और बड़ी वैश्विक ताकत के फैसलों का असर रहा है वह है अमेरिका. अंतर्राष्ट्रीय माहौल ने पाकिस्तान-ईरान संबंधों के लिए अक्सर ही नई चुनौतियां पेश की हैं.

आर्थिक बदहाली और सीमा की सुरक्षा, एक उदाहरण से समझे पूरा मामला: एक उदाहरण के तौर पर हम संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए), जिसे ईरान परमाणु समझौते के रूप में भी जाना जाता है को ले सकते हैं. ईरान परमाणु समझौता, जुलाई 2015 में ईरान और P5+1 (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य-संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, रूस, फ्रांस और चीन-साथ ही जर्मनी) के बीच हुआ एक समझौता है. यह समझौता आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने के बदले में अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करके ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने के लिए डिजाइन किया गया था. लेकिन अमेरिका 2018 में इस समझौते से एकतरफा हट गया. इससे ईरान और पश्चिम के बीच तनाव बढ़ गया है, जिसका पाकिस्तान-ईरान संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. क्योंकि पाकिस्तान अपनी जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर अमेरिका पर निर्भर है.

कथनी और करनी में अंतर, ईरान और पाकिस्तान के संबंध का सार: दरअसल कथनी और करनी में अंतर दोनों देशों के बीच संबंधों में एक प्रमुख दीवार रही है. प्रेस वार्ता और कूटनीतिक बयानों में पाकिस्तान और ईरान आतंकवाद, कट्टरवाद और अफगानिस्तान में अस्थिर स्थितियों के संदर्भ में एक जैसी चिंता साझा करते रहे हैं. हालांकि जब भी साझा सुरक्षा समस्याओं से निपटने के लिए, दोनों देशों के बीच समन्वय और खुफिया जानकारी साझा करने की बात आयी तो दोनों मुल्क एक-दूसरे के लिए कुछ खास करते नजर नहीं आये.

वैश्विक राजनीतिक बदलाव और दो नावों पर पैर रखे हुए पाकिस्तान : हाल के वर्षों में वैश्विक राजनीतिक बदलावों के मद्दे नजर पाकिस्तान और ईरान के बीच संबंध और अधिक जटिल हो गये. गाजा में इजरायल फिलिस्तीन युद्ध के नये दौर ने मध्य पूर्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ईरान के लिए चुनौतियां और बढ़ा दी. खास तौर से अमेरिका और ईरान के बीच संबंध एतिहासिक रूस से तनाव पूर्ण स्थिति में पहुंच गये. दूसरी ओर, आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे पाकिस्तान की मजबूरी है कि वह अमेरिका और सऊदी अरब के साथ रणनीतिक गठबंधन बनाए रखे. कह सकते हैं कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में पाकिस्तान की स्थिति विपरित दिशाओं में सफर कर रहे दो नावों पर पैर रखे व्यक्ति की तरह है. जिसका असर पाकिस्तान के अंदरुनी इलाकों में सरकार और लोगों के बीच बढ़ती दूरी और तनाव के रूप में भी देखा जा सकता है.

ईरान और सऊदी अरब में दोस्ती बढ़ी तो तालिबान से डाला रंग में भंग : हालांकि साल 2023 में ईरान, पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच त्रिकोणीय बातचीत से एक बार ऐसा लगा था कि मध्य पूर्व में तनाव कम होने की गुंजाइश है. सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हमेशा घनिष्ठ संबंध रहे हैं, जबकि ईरान सऊदी अरब को क्षेत्र में एक दुश्मन के रूप में देखता रहा था. तीनों देशों के बीच बातचीत और अच्छे संबंध बहाल होने का सबसे अधिक फायदा पाकिस्तान को होता. क्योंकि इससे एक स्थिति बनती नजर आ रही थी कि पाकिस्तान ईरान को नाराज किए बिना सऊदी अरब के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रख सकता था.

लेकिन तभी अफगानिस्तान की तालीबानी सरकार से ईरान के मतभेद एक बार फिर खुल कर सामने आ गये. आतंकवादियों की सीमा पार आवाजाही, हथियारों की तस्करी और अवैध प्रवासियों के प्रवेश से ईरान को समस्या होने लगी. जबकि पाकिस्तान इस समय तालीबान से बैर मोल लेने की स्थिति में नहीं है. अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान और ईरान के दृष्टिकोण में अंतर का असर भी उनके द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ा है. बल्कि साफ लफ्जों में कहें तो यह तनावपूर्ण ही होता गया है.

ईरान की सबसे बड़ी दिक्कत, पाकिस्तान की है मजबूरी ‘तालिबान’ : अब यह बात कोई रहस्य नहीं रही कि पिछले कुछ सालों में पाकिस्तानी सेना और सरकार ने तालिबान की मदद की है. पाकिस्तान ने ना सिर्फ अफगानिस्तान पर फिर से कब्जा करने में तालिबान की मदद की बल्कि कब्जा को बनाये रखने में भी पाकिस्तानी फौज की अहम भूमिका रही है. दूसरी ओर अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार के होने से ईरान की आंतरिक परेशानियां बढ़ गई.

ड्रग्स और हथियारों की तस्करी, अवैध प्रवासियों का सीमा में प्रवेश, ईरान में आतंकी घटनाओं का बढ़ा उन समस्याओं में कुछ हैं जिनका सामना तालिबान के कारण ईरान को करना पड़ रहा है. अब पाकिस्तान की दिक्कत यह है कि वह ना तो तालिबान को छेड़ सकता है और ना ही ईरान को छोड़ सकता है. हालांकि, समय-समय पर पाकिस्तान और ईरान के बीच में इन मुद्दों को लेकर चर्चा होती रही है जिसके कुछ खास परिणाम नहीं निकले. पिछले ही साल जुलाई में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल सैयद असीम मुनीर ने ईरान का दौरा भी किया था.

बलूचिस्तान; पाकिस्तान-ईरान संबंध के ताबूत में आखरी कील : बलूचिस्तान की रणनीतिक स्थिति ने पाकिस्तान और ईरान के बीच संबंधों को काफी प्रभावित किया है. ईरान अक्सर ही पाकिस्तान से बलूचिस्तान की साझा सीमाओं पर सक्रीय सुन्नी आतंकी संगठनों पर कार्यवाही की मांग करता रहा है. ईरान का आरोप है कि इस क्षेत्र में कई उग्रवादी और अलगाववादी समूहों की गतिविधि जारी है. जिसके परिणामस्वरूप ईरान में आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं. हालांकि, पाकिस्तान इन आरोपों को खारीज करता रहा है, उल्टे वह आरोप लगाता रहा है कि शिया आतंकी संगठन पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं.