छत्तीसगढ़ का ‘हरा सोना’, देश भर से आती है डिमांड, साल के तीन महीने में हो जाती है करोड़ों की कमाई

छत्तीसगढ़ के जिला बस्तर में गर्मियों के मौसम में ‘हरे सोने’ की पैदावार होती है. ये हरा सोना यानी तेंदूपत्ता ही आदिवासियों की कमाई का सबसे बेहतरीन जरिया है. तेंदूपत्ते को हरा सोना इसलिए कहा जाता है क्योंकि इससे होने वाली आमदनी सोने-चांदी के बिजनेस के बराबर होती है. इससे राज्य सरकारों को भी मोटा मुनाफा होता है.

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इस वर्ष 86 करोड़ रुपए की हुई कमाई

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस साल हरे सोने से तक़रीबन 86 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई हुई है. ये कमाई पिछले वर्ष से 16 करोड़ रुपए अधिक है. यह साल तेंदुपत्ता की तोड़ाई के लिए मौसम भी काफी अनुकूल रहा है. इसका फायदा राज्य सरकार से लेकर आदिवासियों को भी हुआ है.

क्यों महंगा बिकता है हरा सोना?

तेंदुपत्ता बीड़ी बनाने के काम आते है. इसे खरीदने वाले ग्राहक साउथ से छत्तीसगढ़ पहुंचते हैं. सिर्फ़ इसकी तोड़ाई से ही परिवारों की अच्छी-ख़ासी कमाई हो जाती है. तेदुपत्ता की गुणवत्ता की वजह से इसकी डिमांड बीड़ी बनाने में ज्यादा है. ये मुख्य तौर पर आकार और मोटापन की वजह से बीड़ी के लिए इस्तेमाल होते हैं. यह एक संवेदनशील कारोबार है. जरा सी लापरवाही इसकी गुणवत्ता को कम कर सकता है.

तेंदू यानी डायोसपायरस मेलेनोक्जायलोन पेड़ के पत्ते के संग्रहण में लगभग तीन महीने तक 75 लाख लोगों को रोजगार मिलता है. इसके अलावा इससे बनने वाली बीड़ी के काम में लगभग 30 लाख लोगों को रोजी रोटी मिलती है. यह द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया का आकड़ा है.

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यहां हुआ सबसे ज्यादा हरा सोना

इसके अलावा बस्तर संभाग में सुकमा जिले से सिर्फ 33 करोड़ रुपए की कमाई हुई है. जो तेंदुपत्ता के संग्रहण में पहले स्थान पर रहा. यहां 99,800 मानक बोरा संग्रहित किया गया. वहीं बस्तर जिला सबसे पीछे रहा, जहां 16,300 मानक बोरा का संग्रहण हुआ. गौरतलब है कि बस्तर संभाग में 4 हजार रुपए प्रति मानक बोरा के मूल्य से तेंदुपत्ता की खरीदा. इसके साथ ही आदिवासी संग्रहकों के परिवार को कई सुविधाएं भी दी जाती हैं. कोरोना महामारी के दौरान भी इन परिवारों की आर्थिक मदद की गई थी.

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आदिवासी परिवारों की आमदनी का प्रमुख जरिया है हरा सोना

तेंदूपत्ता बस्तर के इलाकों में जगंलों में रहने वाले आदिवासियों की आमदनी का प्रमुख साधन रहा है. हरा सोना के नाम से मशहूर तेंदूपत्ता के संग्रहण करने वाले आदिवासियों की हालत पहले ज्यादा बेहतर नहीं थी. और इसका रेट भी कम था. लेकिन अब राज्य सरकार ने इस पर तवज्जो देनी शुरू की है.

खबरों के मुताबिक साल 2002 में प्रदेश में तेंदुपत्ता का मूल्य 400 रुपए प्रति मानक बोरा था. जिसे बढ़ाकर 1500 रुपए बोरा कर दिया गया. आज इसका दाम चार हजार रुपए प्रति मानक बोरा है. जिससे आदिवासियों की भी आमदनी बढ़ी है. आमदनी बढ़ने से संग्राहकों के जीवन स्तर में भी काफी सुधार आया है.

मानक बोरा यानी एक बोरे में पत्तों की एक हजार गड्डी और हर गड्डी में 50 पत्ते होते हैं. इन पत्तों की गड्डियों को धूप में सुखाया जाता है. अप्रैल माह के शुरुआत में ही तेंदूपत्ते की तोड़ाई के लिए ग्रामीण आदिवासी सक्रिय हो जाते हैं.

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार प्रत्येक वर्ष लगभग 13.76 लाख परिवारों से तेंदूपत्ता का संग्रहण करवाती है. यह काम वन विभाग के राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के जिम्मे होता है.

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विदेशों में भी है हरा सोना की डिमांड

छत्तीसगढ़ के अलावा पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और भी कई राज्यों में इसकी अच्छी डिमांड है. वहीं तेंदूपत्ता का विदेशों में भी अधिक मांग है. बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और अफगानिस्तान आदि कई मुल्कों में भारत से तेंदूपत्ता भेजा जाता है. यही वजह है कि इसकी बढ़ती मांग को लेकर सरकार ने आदिवासियों की जरूरत का खास ख्याल रखा है.