चंद्रताल रेस्क्यू ऑपरेशन : ‘आपदा’ में सैलानियों के ‘देवदूत’, बुजुर्ग चाचा-चाची…

पहाड़ी  प्रदेश ‘हिमाचल’ में बारिश ने करीब 45 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ा है। हम आपको, ट्राइबल घाटी लाहौल (Tribal Valley Lahaul) के एक ऐसे बुजुर्ग दंपत्ति से मुखातिब करवा रहे हैं, जो माइनस तापमान में चंद्रताल क्षेत्र में 300 भारतीय व विदेशी पर्यटकों के लिए देवदूत बने। ये पूरी गारंटी है, खबर पढ़ने के बाद आप चाचा-चाची को सेल्यूट किए बिना नहीं रह सकेंगे।

चाचा-चाची के साथ पर्यटक 

चारों तरफ कई फुट बर्फ जमा थी, सड़कों के संपर्क टूट चुके थे। हेलीकॉप्टर के उतरने की गुंजाइश नहीं थी, राहत मिलने से पहले पर्यटकों को घाटी में ही कई दिन बिताने थे। बातल में बरसों से ढाबा चलाने वाले चाचा-चाची (Chacha-Chachi) के नाम से मशहूर मियां-बीबी ने बगैर स्वार्थ के 300 पर्यटकों (Tourists) के रात्रि ठहराव की व्यवस्था की। विकट भौगोलिक परिस्थितियों में हर साल सैंकड़ों लोग अलग-अलग समय में बर्फबारी या बरसात में घाटी में फंसते हैं, जिन्हें चाचा-चाची ही शरण देते हैं।

इस बार भी 300 पर्यटकों का सहारा बने। आप इस बात की कल्पना  भी नहीं कर सकते कि बुजुर्ग दंपत्ति ने चार दिन तक 300 यात्रियों के रात्रि ठहराव व खाने-पीने की व्यवस्था कैसे की होगी। चूंकि इस बार विपदा कठिन थी, लिहाजा रेस्क्यू ऑपरेशन (Recue Operation) भी आसान नहीं था। राजस्व मंत्री (Revenue Minister of HP) जगत सिंह नेगी ने पर्यटकों तक पहुंचने के लिए जान का जोखिम उठाया।

सोचिए, आपकी जान मुश्किल में हो….इस दौरान एक फरिश्ता (angel) आपको बचा ले तो क्या आप उन्हें भूल पाएंगे, निश्चित तौर पर नहीं। वीरवार सुबह जब पर्यटकों को रेस्क्यू करने के बाद कोकसर (Koksar) की तरफ भेजने का ऑपरेशन शुरू हुआ तो हरेक टूरिस्ट चाचा-चाची से गले मिलकर भावुक हो रहा था। चाचा-चाची भी पर्यटकों को मुस्कुराते हुए विदाई दे रहेे थे। चार दिन तक चाचा-चाची का आश्रय मिलने की वजह से ही जीवन सुरक्षित बच पाया।

भारत के अलग-अलग कोनों से आए पर्यटकों के साथ विदेशी भी थे। बता दें कि कई देशों की सरकारें कठिन समय में नागरिकों को सुरक्षित रखने पर चाचा-चाची को सम्मानित भी कर चुकी हैं। चंद्रताल घाटी (Chandertal Valley) में दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं होती। बातल में चाचा-चाची का ही एक ढ़ाबा सैलानियों के लिए ठहरने व खाने की व्यवस्था करता है। वैसे तो चाचा-चाची पहले भी पर्यटकों के मसीहा बन चुके हैं, लेकिन इस बार पर्यटकों की संख्या काफी थी, साथ ही आपदा भी बड़ी थी।

बुजुर्ग दंपत्ति ने कहा कि हरेक पर्यटक की अपने बच्चों की तरह देखभाल की। बुजुर्ग चाचा ने कहा कि ये याद भी नहीं है कितने लोग फंसे। एक पर्यटक ने कहा कि हमें पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर माता-पिता मिल गए। पर्यटकों का कहना था कि विकट परिस्थिति में चाचा-चाची ने इतनी सेवा कि, ऐसे माता-पिता भी नहीं कर सकते। युवा पर्यटक ने कहा कि मुझे दादा-दादी मिल गए हैं। युवक ने कहा कि मुझे भी इनकी तरह ही सेवा करनी है।