
रतन टाटा एक ऐसी शख़्सियत हैं जिनके हेटर्स ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे. वो एक सफ़ल बिज़नेसमैन ही नहीं है बल्कि दुनियाभर के लोगों के लिए एक Idol हैं. टाटा ग्रुप को आगे बढ़ाने के साथ ही उन्होंने समाज की बेहतरी के लिए भी काफ़ी काम किया. Tata Sons के Chairman Emeritus रतन टाटा की पूरी लाइफ़ ही एक मोटिवेश्नल स्पीच या सेल्फ़-हेल्प बुक्स की तरह है. रतन टाटा की लाइफ़ से जुड़ा कोई भी किस्सा अपने आप में ही एक सीख है. आज ऐसा ही एक किस्सा लेकर आए हैं, जब उन्हें अपनी रेज़्यूम IBM के दफ़्तर से प्रिंट करना पड़ा था.
IBM से मिला था जॉब ऑफ़र
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ये उन दिनों की बात है जब रतन टाटा ने लॉस एंजेलेस में ही सेटल होने का प्लान बना लिया था. गौरतलब है कि दादी, लेडी नवजबाई (Lady Navajbai) की तबीयत खराब होने के बाद उन्हें भारत लौटना पड़ा. बहुत कम लोगों को ये बात पता होगी कि रतन टाटा ने आर्किटेक्चर ऐंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से हासिल की. जब वो भार लौटे तब उन्हें IBM से नौकरी का ऑफ़र मिला.
JRD टाटा हुए खफ़ा
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टाटा ग्रुप के तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा (JRD Tata) के कानों तक भी रतन टाटा को IBM की नौकरी मिलने की खबर पहुंची. उन्हें ये अच्छा नहीं लगा कि रतन टाटा, टाटा ग्रुप को छोड़कर कहीं और नौकरी के लिए जा रहे हैं. जेआरडी टाटा को ये सुनकर खुशी नहीं हुई. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने रतन टाटा को फ़ोन किया और कहा, ‘तुम भारत में रहकर IBM के लिए नौकरी नहीं कर सकते.’
IBM के दफ़्तर में प्रिंट किया रेज़्यूम
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रतन टाटा ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया, ‘मैं IBM के ऑफ़िस में था. मुझे याद है उन्होंने मुझे फ़ोन किया और रेज़्यूम मांगा जो मेरे पास नहीं था. IBM ऑफ़िस में इलेक्ट्रिक टाइपराइटर्स हुआ करते थे, मैं वहीं बैठ गया और अपना रेज़्यूम टाइप करके दे दिया.’
तो कुछ इस तरह रतन टाटा को 1962 में टाटा ग्रुप में नौकरी मिली थी. इसी साल उन्होंने 6 महीने तक जमशेदपुर प्लांट के टाटा इंजीनियरिंग ऐंड लोकोमोटिव कंपनी (अब टाटा मोटर्स) में ट्रेनिंग की. 1963 में वो टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी (तब TISCO, अब टाटा स्टील) में चले गए.
1969 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में टाटा ग्रुप के रेसिडेंट रिप्रीज़ेंटेटिव का पद संभाला. 1970 में वो भारत लौटे और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TSC) जॉइन किया. अगले साल यानि 1971 में उन्हें नेशनल रेडियो ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स (Nelco) का डायरेक्टर इन-चार्ज बनाया गया. 1974 में उन्हें टाटा सन्स का डायरेक्टर बनाया गया.