यदि किसी व्यक्ति के द्वारा किए जाने वाले कार्यों में अनावश्यक बाधाएं आती हैं, कार्य बनते-बनते बिगड़ जाते हैं, तो उस व्यक्ति को कार्य करने से पहले, वह कार्य, गणेशजी को समर्पित कर देना चाहिए। ऐसा करने से बाधाओं का निवारण होकर उचित मार्ग प्रशस्त होते हैं। आइए जानते हैं गणेशजी के बारे में खास बातें….
गणेशजी की प्रथम पूजा के संबंध में पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। भगवान शंकर द्वारा गणेशजी का सिर काटे जाने पर माता पार्वती बहुत क्रोधित हुईं। गज का सिर लगाने के बाद भी जब वह शिवजी से रूठी रहीं तो भगवान ने उन्हें वचन दिया कि उनका पुत्र गणेश कुरूप नहीं कहलाएगा बल्कि उसकी पूजा सभी देवताओं से पहले की जाएगी। एक अन्य कथा में वर्णन आता है कि भगवान श्रीगणेशजी ने राम नाम की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त किया है, मतान्तर से यह भी कहा जाता है कि गणेशजी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद प्राप्त किया।
गणेशजी एक महान लेखक एवं आदि ज्योतिषी हैं। महाभारत की रचना में उन्होंने वेद व्यासजी की सहायता की थी और स्कंद पुराण के अनुसार शिवजी की आज्ञा से गणेशजी महाराज एक ज्योतिषी रूप में काशी नगरी के प्रत्येक घर में जाकर अपनी मधुर वाणी से भविष्य बताते हैं। इसलिए ज्योतिष के प्रत्येक कार्यों में उनका स्मरण एवं उल्लेख आवश्यक है।
ऋग्वेद में वर्णित है,
”न ऋते त्वम् क्रियते किं चनारे” (ऋग्वेद)
”हे गणेश तुम्हारे बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जाता।”
अतः गणेशजी महाराज का स्मरण और स्तुति कर उनका आर्शीवाद प्राप्त कर समस्त विघ्न बाधाओं का नाश करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। गणेशजी बुद्धि-विवेक के देवता हैं, इसलिए लक्ष्मीजी के साथ उनका पूजन होता है, लक्ष्मी चंचल है, मेहनत, मशक्कत, उपाय और यत्न द्वारा वह व्यक्ति के पास आ तो जाती हैं लेकिन अधिक समय तक टिकती नहीं है। केवल बुद्धि का सदुपयोग करके ही धन-लक्ष्मी द्वारा व्यक्ति पुण्यार्जन के साथ जीवन की सुख-सुविधाओं, वैभव का आनंद ले सकता है।