परिस्थितियां इंसान को योद्धा बना देती हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह ज़िंदगी ने रेखा लोहनी पांडे को हालातों से लड़ने वाली एक लड़ाका बना दिया. रेखा ने ना केवल अपनी मेहनत से अपने घर के बिगड़ते हालात संभाले, बल्कि वह अब उत्तराखंड की स्टार भी बन चुकी हैं. उनकी चर्चा अब राज्य के बड़े मंत्रीगण कर रहे हैं. परिवहन मंत्री चंदन रामदास ने भी फोन कर उनकी तारीफ करते हुए हर संभव मदद का आश्वासन दिया.
मिलिए उत्तराखंड की पहली महिला टैक्सी ड्राइवर से
रेखा ने समाज की रवायतों को तोड़ बड़ी उपलब्धि हासिल की है. एक तरफ जहां महिलाओं को ड्राइविंग जैसे क्षेत्र में बहुत कम आंका जाता वहीं रेखा उत्तराखंड की पहली महिला टैक्सी ड्राइवर बनी हैं. बड़ी बात ये है कि रेखा उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुकी हैं, इसके बावजूद उन्हें ड्राइवर बनने में कोई शर्म महसूस नहीं की. वकालत की पढ़ाई कर चुकी रेखा को अपने हालातों के कारण टैक्सी ड्राइवर बनना पड़ा.
पति की तबीयत बिगड़ने के बाद लिया फैसला
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के गरुड़ क्षेत्र के भेटा की रहने वाली रेखा लोहनी पांडे का ससुराल अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में है. उन्हें रानीखेत से हल्द्वानी के बीच टैक्सी चलाते हुए दो महीने हो गए हैं. अपना परिवार पालने के लिए रेखा ने टैक्सी का स्टीयरिंग थाम लिया और उत्तराखंड की पहली महिला टैक्सी ड्राइवर बन गईं. दरअसल, रेखा की ज़िंदगी में ये मोड़ तब आया जब उनके पति की अचानक तबीयत खराब हो गई. रेखा के पति मुकेश चंद्र पांडेय फौज से रिटायर हो चुके हैं. पति की सेहत खराब होने के बाद परिवार की जिम्मेदारी रेखा ने अपने कंधों पर उठा ली.
हमारे सहयोगी एनबीटी की रिपोर्ट के अनुसार, रेखा के पति ने फौज से रिटायर होने के बाद ट्रैवल का काम शुरू किया था. वह ही टैक्सी चलाते थे लेकिन अचानक से बीमार पड़ने के बाद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ने लगी. इसके बाद इस टैक्सी को चलाने के ड्राइवर रखा लेकिन ऐसा करने के बाद उन्हें नुकसान उठाना पड़ा. जिसके बाद रेखा ने तय किया कि वह खुद ही इस काम को संभालेंगी. इसी सोच के साथ उन्होंने जब टैक्सी चलानी शुरू की तो शुरूआत में उन्हें थोड़ी मुश्किल हुई. अपने ही करीबियों से उन्हें ताने सुनने पड़े. लेकिन रेखा इन तानों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ती रहीं.
तीन बेटियों की मां रेखा के लिए घर की चारदीवारी से निकल कर टैक्सी चलाना इतना आसान नहीं था. पति की बीमारी के दौरान उन्हें हर रोज सुबह-सुबह टैक्सी लेकर निकलना पड़ता था. रानीखेत और हल्द्वानी के बीच सवारियां तलाशने में सारा दिन बिताने के साथ उन्हें बीमार पति की देखरेख की जिम्मेदारी के साथ घर के कामकाज की ड्यूटी भी निभानी पड़ती थी. समय के साथ पति की सेहत भी सामान्य हो गई है.
उच्च शिक्षित हैं रेखा
डबल एमए, मास्टर्स इन सोशल वर्क और वकालत की पढ़ाई कर चुकी रेखा ने यह काम मजबूरी में नहीं चुना. उन्होंने ये फैसला यह सोच कर लिया कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है, आत्मनिर्भरता सबसे बड़ी चीज है. रेखा ने अपने जैसी अन्य महिलाओं को ये संदेश दिया है कि वे घर की दहलीज तक सीमित नहीं रहें. खुद को पहचान कर अपने लिए जगह बनाएं. वो जो करना चाहती हैं, उन्हें करना चाहिए. जब वे आत्मनिर्भर बनेंगी तो उनके साथ उनका परिवार, समाज और देश भी सशक्त होगा.
रेखा की मेहनत और लगन ने उन्हें अब अकेला नहीं रहने दिया. बहुत से लोग आज उनके साथ खड़े हैं और हर उनतक तरह की मदद पहुंचाने की पेशकश कर रहे हैं. उत्तराखंड के परिवहन मंत्री चंदन रामदास ने भी उन्हें हर मदद का भरोसा दिया है. यह तक कहा है कि अगर उन्हें परिवहन विभाग से संबंधित कोई दिक्कत या परेशानी हो तो वह उन्हें फोन कर सकती हैं. वह हर समस्या का समाधान करेंगे.