उत्तराखंड: अल्मोड़ा में जमीन के नीचे छिपा है एक शहर! ASI रामगंगा नदी के किनारे जल्द शुरू करेगा तलाश

उत्तराखंड के अल्मोड़ में जमीन के नीचे छुपे एक बड़े शहर की तलाश अभियान जल्द शुरू हो सकती है। दरअसल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) अल्मोड़ा जिले की गेवाड़ घाटी में रामगंगा नदी के किनारे एक प्राचीन शहर के संभावित अवशेषों की तलाशने की योजना बना रहा है। अल्मोड़ा में 9वीं सदी के मंदिर भी मिले हैं।

Almora Ancient City
अल्मोड़ा पौराणिक शहर
देहरादून: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) जल्द ही अल्मोड़ा जिले की गेवाड़ घाटी में रामगंगा नदी के किनारे समतल जमीन के नीचे एक प्राचीन शहर के संभावित अवशेषों की तलाश की कवायद शुरू करेगा। ASI के देहरादून सर्किल के अधीक्षण पुरातत्ववेत्ता मनोज सक्सेना का कहना है कि एक्सपर्ट्स की एक टीम दस किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्रफल में संभावित पुरातत्व अवशेषों को तलाशने के लिए जनवरी के पहले या दूसरे सप्ताह में दौरा करेगी।

उन्होंने बताया कि गेवाड़ घाटी में जमीन के नीचे प्राचीन शहर के अवशेष के अस्तित्व के बारे में अनुमान इस बात पर आधारित है कि क्षेत्र में नौवीं, दसवीं, चौदहवीं और पन्द्रहवीं सदी के असंख्य मंदिर मौजूद हैं जो कत्यूरी शैली में बने हैं। इतने सारे मंदिर मानवीय आबादी के बिना संभव नहीं हैं। सक्सेना ने बताया कि अनुमान का दूसरा आधार इस स्थान का नदी के किनारे स्थित होना है क्योंकि ज्यादातर प्राचीन सभ्यताएं नदियों के किनारे ही विकसित हुई थीं, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अभी यह कवायद तलाश के स्तर पर ही है।

90 के दशक में मंदिर मिले, शिवलिंग भी निकला था

क्षेत्रीय राज्य पुरातत्व अधिकारी डॉ. चंद्र सिंह चौहान ने कहा कि उन्होंने क्षेत्र में कई छोटे ‘देवस्थानम’ (छोटे मंदिर) खोजे हैं जो एक से दो फीट ऊंचे हैं। 1990 के दशक में एक सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें 9वीं शताब्दी में निर्मित वक्रतुंडेश्वर (गणेश) का एक मंदिर और नाथ संप्रदाय के सात अन्य मंदिरों की खोज की गई थी।

1993 में सर्वेक्षण करने वाली टीम में शामिल रहे प्रफेसर राकेश चंद्र भट्ट ने कहा, ‘खुदाई के दौरान, हमें अंत्येष्टी स्थल मिले जिनमें कमरे और बड़े जार थे। इनमें मृतकों के अवशेष रखे गए थे। हमें चित्रित मिट्टी के बर्तन और कटोरे भी मिले। जो मेरठ के हस्तिनापुर और बरेली के अहिच्छत्र में गंगा के दोआब में पाए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों के समान हैं। ये पहली-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं। कुछ समय पहले इसी क्षेत्र में 1.2 मीटर ऊंचा और करीब 2 फीट व्यास वाला एक बड़ा शिवलिंग भी खोजा गया था, उस समय उन्हें कोई मानव बस्ती नहीं मिली