इस बार भाई बहन के प्यार का प्रतीक पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन कुछ खास होने वाला है

या यूं कहें कि इस बार की राखी कुछ स्पेशल रहने वाली है,क्योंकि इस बार रक्षाबंधन पर्व पर प्रकृति को भी उपहार मिलेगा। कहीं हवा के बीच मधुर संगीत सुनाने वाली चीड़ की पत्तियां भाई की कलाई पर सजेंगी तो कहीं पूजा में इस्तेमाल होने वाली कुशा घास से बनी राखियां भाई की कलाई पर सजने वाली है। इन राखियों का बंधन पर्यावरण रक्षण के लिए भी प्रेरित करेगा। कुशा घास की बनी राखियां भी कई संदेश देंगी। प्रदेश की महिलाओं ने इस दिशा में प्रयास किया है। अगर हम इनकी बनाई राखियां खरीदें तो यह रक्षाबंधन स्वावलंबन और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी किसी त्योहार से कम नहीं होगा।

 

● आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल रही महिलाएँ
सोलन में भी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने आत्मनिर्भर बनने की राह पर चलकर इको फ्रेंडली राखियां बनाई है,इन राखियों को महिलाओं द्वारा चीड़ की पत्तियों जिसे लोग आज वेस्ट मानते है उससे बनाया जा रहा है वहीं यह त्यौहार और पवित्र बने इसके लिए कुशा घास और मौली के धागों का इस्तेमाल महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। राखियां सस्ती होने और आकर्षक होने के साथ साथ लोगों को यह पसन्द भी आ रही है,और लोग इसे खरीद भी रहे है।

 

● जंगलों से इकट्ठा करके चीड़ की पत्तियां और कुशा घास लाती है महिलाएं
स्वंय सहायता समूह की महिलाएं पिछले 2-3 वर्षों से लगातार इको फ्रेंडली राखियां बना रही है,जंगलों से चीड़ की पत्तियां इकट्ठी करके महिलाएं इससे कई उत्पाद बना रही है चाहे वो घरों में सजावट के लिए हो या फिर रोजाना इस्तेमाल की,लेकिन इस बार इनके उत्पाद के रूप में राखियां बहुत चर्चा में है। वहीं चीड़ की पत्तियों के साथ साथ महिलाएं कुशा घास जिसे पूजा में इस्तेमाल किया जाता है उसकी राखियां भी बनाई जा रही हैं।