इसराइली हमलों से उत्तरी ग़ज़ा के सारे अस्पताल ठप, डब्ल्यूएचओ ने दी ये जानकारी
इसराइल पर सात अक्टूबर को हुए हमास के हमले के बाद जवाबी कार्रवाई से ग़ज़ा में हालात बहुत ख़राब हो गए हैं.
ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़, इन हमलों में अब तक बीस हज़ार फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है.
इसके साथ ही उत्तरी ग़ज़ा में स्वास्थ्य तंत्र बिलकुल ठप हो चुका है.
अब से थोड़ी देर पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कि उत्तरी ग़ज़ा में अब कोई अस्पताल नहीं बचा है, जो काम करने की स्थिति में हो.
ग़ज़ा के दक्षिण की तरफ़ भी भीषण जंग जारी है, वहां इसराइल ने फ़लस्तीनियों से कहा है कि वो ख़ान यूनिस शहर के आसपास की जगह खाली कर दें.
फ़लस्तीनी इलाक़े में मौजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉक्टर रिचर्ड पीपरकॉन ने ग़ज़ा के हालात के बारे में विस्तार से बताया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने क्या कहा?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि पूरे ग़ज़ा में करीब 36 अस्पताल हैं, जिसमें से केवल नौ काम कर रहे हैं. ये सभी ग़ज़ा के दक्षिणी हिस्से में हैं. उत्तर में कोई अस्पताल नहीं है जो काम कर रहा हो.
अल-अहली एकमात्र अस्पताल बचा था, जो किसी तरह से काम कर रहा था, लेकिन अब वहां भी नए मरीज़ भर्ती नहीं किए जा रहे हैं.
अल-शिफ़ा, अल-अवदा और अल-शहाबा अस्पताल में भी यही हाल है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है, ”अल अहली अस्पताल का अब केवल ढांचा ही बचा है. दो दिन पहले उत्तरी ग़ज़ा में ये एकमात्र अस्पताल था, जहां घायलों की सर्ज़री हो रही थी और यहां के इमरजेंसी वार्ड में बड़ी संख्या में लोग आ रहे थे.
लेकिन अब यहां का ऑपरेशन थिएटर काम नहीं कर रहा है, क्योंकि न तो ईंधन हैं, न बिजली, न मेडिकल सप्लाई और न स्वास्थ्यकर्मी या डॉक्टर और सर्ज़न.
अब यह अस्पताल काम करना पूरी तरह बंद कर चुका है. अब यहां बस कुछ लोग हैं, जो इसकी छत के नीचे सिर छिपाए हुए हैं.
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वकील को हथकड़ी पहनाकर फंसी असम पुलिस, कोर्ट ने दिया 5 लाख का मुआवजा देने का आदेश
Copyright: Guwahati High Courtगुवाहाटी हाई कोर्ट ने असम पुलिस को बिना उचित कारण के एक वकील को हथकड़ी लगाने के मामले में 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है.
इस मामले में हुई कई सुनवाई के बाद बुधवार को गुवाहाटी हाई कोर्ट के न्यायाधीश देवाशीष बरूआ की एकल पीठ ने कहा कि पुलिस द्वारा उक्त वकील को बिना उचित कारण के हथकड़ी लगाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है.
यह मामला 2016 में कार पार्किंग को लेकर हुई मारपीट से जुड़ा है.
असम पुलिस के एक होम गार्ड द्वारा एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता मोनोजीत बिस्वास ने 5 अक्टूबर 2016 को उनके साथ मारपीट की थी, क्योंकि उन्होंने याचिकाकर्ता को अपने घर के पास कार पार्क करने से रोका था.
होम गार्ड की एफआईआर के आधार पर बिस्वास के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 294, 325, 341 और 353 के तहत मामला दर्ज किया गया.
उसी दिन पेशे से वकील बिस्वास ने भी होम गार्ड के ख़िलाफ़ धारा 294, 323, 392 और 511 के तहत एक जवाबी एफआईआर दायर की जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके साथ भी मौखिक और शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया गया था.
इस मामले के संदर्भ में याचिकाकर्ता मोनोजीत बिस्वास ने बीबीसी से कहा,”इस पूरे मामले में मेरी लड़ाई पुलिस व्यवस्था में हथकड़ी लगाने को लेकर थी.यह कार पार्किंग से जुड़ा एक छोटा मामला था और मैं खुद चलकर पुलिस स्टेशन में हाजिर हुआ था.”
“लेकिन बावजूद इसके मुझे हथकड़ी पहना कर कोर्ट ले जाया गया. मुझे हथकड़ी में जेल भेजा गया. जबकि हथकड़ी लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बहुत पहले का आदेश है जिसकी पूरी तरह अनदेखी की गई थी. आप सामान्य मामलों में किसी को इस तरह हथकड़ी नहीं लगा सकते.”
याचिकाकर्ता मोनोजीत का कहना है कि उन्होंने यह मामला किसी व्यक्तिगत पुलिस अधिकारी के ख़िलाफ़ नहीं किया था बल्कि उस व्यवस्था के ख़िलाफ़ किया था जिसमें ऐसे छोटे मामलों में हथकड़ी पहना कर व्यक्ति की सामाजिक छवि और इज्जत को खत्म कर दिया जाता है.
गाड़ी पार्किंग को लेकर मारपीट के इस मामले में पुलिस द्वारा आरोप पत्र दायर करने के बाद कोर्ट ने मोनोजीत को साल 2020 में बरी कर दिया था.
याचिकाकर्ता मोनोजीत ने हाई कोर्ट का रुख करने से पहले अपने बुनियादी मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए असम मानवाधिकार आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी.लेकिन उनके मामले में जांच अधिकारी की मौत हो जाने से आयोग ने इसमें आगे सुनवाई नहीं की.
इसके बाद मार्च 2021 में मोनोजीत ने गुवाहाटी हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दर्ज करवाई.
उसी याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में कहा “याचिकाकर्ता एक वकील है और याचिकाकर्ता को हथकड़ी लगाना और उसे अदालत में ले जाकर परेड करना.”
“उसके बाद हथकड़ी के साथ जेल में वापस भेजना, वह भी बिना उचित कारण बताए, न केवल गारंटीकृत संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता के मानवाधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह वकालत के पेशे को चलाने के लिए उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा को भी अपमानित करता है.”
इस फैसले को सुनाते हुए हाई कोर्ट ने असम सरकार को याचिकाकर्ता को 2 महीने के भीतर 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है.