यूं ही नहीं कहा जाता हिमाचल को देवभूमि…
हिमाचल के अलग-अलग क्षेत्र देव स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। अनेकों देवी-देवताओं का पुरातन इतिहास आज भी साक्षात् दर्शन और आभास करवाता है। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल सिरमौर के दुर्गम क्षेत्र शिलाई के अंतर्गत गांव बिड़ला गांव में जाहरवीर गोगा जी महाराज का सुन्दर और भव्य मन्दिर बना है। बिड़ला गांव में जाहरवीर गोगा जी महाराज का मन्दिर
जाहरवीर गोगा जी महाराज के प्रति लोगों की आस्था और अटूट विश्वास इस स्थान पर देखने को मिलता है। गोगा जी महाराज के दर्शनों के लिए दूर दूर से भक्तजन आते हैं। यहां सबकी मुरादें पूरी होती हैं। इतिहास के अनुसार जाहरवीर गोगा महाराज को उनके मूल निवास स्थान राजस्थान से लाया गया और इस मंदिर में स्थापित किया गया। मन्दिर पुजारी बस्ती राम और बड़े बुजुर्ग के अनुसार इस मंदिर ओर देवता का इतिहास आज भी गाकर दोहराया जाता है।
गोगा महाराज जी को नागों का देवता भी कहा जाता है। इस मंदिर की एक अलग पहचान इसलिए भी है। कहा जाता है कि व्यक्ति को सांप काटने के तुरंत बाद अगर इस मंदिर में लाया जाए तो उसका ज़हर स्वतः ही नष्ट हो जाता है और उस व्यक्ति पर सांप के डसने का प्रभाव नहीं होता है। मंदिर के नजदीक एक गांव बसा है, जिसमें अधिकांश घर पंडितों के हैं, जो इस मंदिर की देखरेख, पूजा-अर्चना और रखरखाव करते आ रहे हैं। मन्दिर के सामने एक सुन्दर और भव्य माता का मंदिर भी बना है, जो स्थानीय भाषा में माता कुजियाट के नाम से प्रसिद्ध है।
हर वर्ष जन्माष्टमी के दिन मंदिर में एक भव्य समारोह किया जाता है। भक्तजन मंदिर में जन्माष्टमी के दिन रात्रि जागरण करते हैं। इस दौरान जाहरवीर गोगा जी महाराज साक्षात दर्शन देवता के रूप में दर्शन देते हैं। लोहे के बने शस्त्र, जिन्हें स्थानीय भाषा में कोरडे के रूप में जाना जाता है को आग में तपाकर गोगा महाराज जी के सन्मुख साक्षात् दर्शन और देव वचन दिए जाते हैं। स्थानीय भाषा (बार) में जाहरवीर गोगा जी का इतिहास ओर गुणगान किया जाता है।
जन्माष्टमी से पूर्व देवता को हर गांव में परिक्रमा करवाई जाती है। बिड़ला, पनजाहा, सोनल, दिगवा, फैलाच, मागनल, चनकौली, टैक, मिल्ला इत्यादि अनेकों गांव में देव भ्रमण करने के बाद अंतिम में बिड़ला गांव में देव जागरण होता है।
ये भी है इतिहास…
पुरातन इतिहास के अनुसार गोगा जी के माता-पिता के पास लंबे समय तक संतान नहीं हुई। इसी के चलते एक बार वो गुरु गोरखनाथ के पास पहुंचे। गुरु गोरखनाथ हनुमानगढ़ जिले (राजस्थान) के “गोगामेडी टीले” पर तपस्या कर रहे थे। गुरु गोरखनाथ ने गोगा जी के माता-पिता को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
किवदंती के अनुसार गुरु गोरखनाथ ने रानी को “गोगल नाम” का एक फल खाने के लिए कहा था। कुछ समय बाद रानी बाछल देवी गर्भवती हो गई और उनकी कोख से भादवा माह की “कृष्णा नवमी” के दिन गोगा जी चौहान का जन्म हुआ। कहा जाता है कि गोगल फल खाने से गोगा जी का जन्म हुआ, इसलिए उनका नाम “गोगाजी” रखा गया।
लोक कथाओं में कहा जाता है कि जिस दिन गोगा जी का जन्म हुआ, उसी दिन उसी गांव में “भंगी के घर, ब्राह्मण के घर तथा हरिजन के घर एक-एक पुत्र” पैदा हुए। यह सभी आगे चलकर गोगाजी के घनिष्ठ मित्र बने तथा गुरु गोरखनाथ के शिष्य भी बने।
जाहरवीर गोगा जी महाराज का बिड़ला गांव का ये मंदिर अपने आप में एक अनूठी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। भक्तजन मंदिर को शक्ति का प्रतीक मानते हैं।
-एक स्वतंत्र लेखक (हेमराज राणा)